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अब समझौते को क्रियान्वित करने का वक्त

06:42 AM Dec 16, 2023 IST
डॉ. शशांक द्विवेदी

दुबई में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन या कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (कॉप-28) का 28वां संस्करण कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। कॉप शिखर बैठकों का मूल उद्देश्य ऐसे बाध्यकारी समझौतों को अंजाम देना था जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करने में मदद करे। पेरिस समझौते के बाद के दौर में इसमें काफी बदलाव आया है।
जलवायु परिवर्तन पर कॉप सम्मलेन विकासशील और कमजोर देशों के लिए बढ़ते जलवायु प्रभावों के बीच सामूहिक रूप से अपनी जरूरतों के बारे में आवाज उठाने का एक महत्वपूर्ण मंच है। कॉप-28 में पृथ्वी के तापमान में बढ़ोतरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के दीर्घकालिक लक्ष्य को बरक़रार रखा गया है, 2015 में पेरिस में हुए समझौते में क़रीब 200 देशों में इसे लेकर सहमति बनी थी। संयुक्त राष्ट्र में जलवायु पर नज़र रखने वाली संस्था, इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, 1.5 डिग्री सेल्सियस वह अहम लक्ष्य है, जिससे जलवायु परिवर्तन के ख़तरनाक असर को रोका जा सकता है।
कॉप-28 में जलवायु और स्वास्थ्य को लेकर एक व्यापक समझौता हुआ। वैश्विक स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को 2030 तक तीन गुना करने के लक्ष्य को 20 देशों का समूह अपने नई दिल्ली घोषणापत्र में ही आगे बढ़ा चुका है। दूसरा लक्ष्य था 22 देशों द्वारा 2050 तक नाभिकीय ऊर्जा को तीन गुना करने का लक्ष्य। नाभिकीय ऊर्जा संबंधी घोषणा पर काफी मतभेद देखने को मिले। यूरोपीय संघ के भीतर भी दो प्रमुख शक्तियों फ्रांस और जर्मनी का नजरिया इस विषय पर एकदम अलग-अलग है। वास्तव में नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन में इजाफा किए बिना उत्सर्जन में कमी का कोई लक्ष्य हासिल नहीं होगा। आज भी वर्षों से बंद पड़े संयंत्रों और सीमित निवेश के बाद 30 देशों में करीब 400 नाभिकीय रिएक्टर अभी भी दुनिया की कुल बिजली का 10 फीसदी उत्पादित कर रहे हैं। दुनिया के कम कार्बन वाले उत्पादन में उनकी हिस्सेदारी 25 फीसदी है।
कॉप-28 जलवायु सम्मेलन के पहले दिन हानि और क्षति निधि को संचालित करने पर सहमति बनी, जो एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यूएई और जर्मनी दोनों ने 100-100 मिलियन डॉलर देने का वादा किया, वहीं यूके ने 50.5 मिलियन डॉलर देने का वादा किया। दुनिया के सबसे बड़े उत्सर्जक अमेरिका ने इस फंड में 17.5 मिलियन डॉलर देने का वादा किया। हालांकि विशेषज्ञों ने इसे कई मायनों में अभूतपूर्व बताया, लेकिन उन्होंने बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए इसके अपर्याप्त होने की चिंता भी जताई है। जलवायु परिवर्तन से संबंधी वैश्विक बातचीत में पहली बार 134 देशों ने खेती, खाने-पीने की चीजों और जलवायु कार्रवाई से जुड़ी ऐतिहासिक घोषणा पर दस्तख्त किए हैं। घोषणा में उन क्षेत्रों में खाने-पीने की चीजों के उत्पादन, परिवहन और खान-पान के तरीकों को बदलने के लिए राष्ट्रीय एक्शन प्लान बनाने की बात कही गई है जो दुनियाभर में लगभग एक-तिहाई उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।
दुबई में संपन्न जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 28वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप-28) में पहली बार बदलाव दिखा। बैठक के दौरान कम से कम 134 देश टिकाऊ खेती, बेहतर खाद्य प्रणाली पर दस्तख्त करने के लिए एक साथ आए। इन देशों में 5.7 अरब से ज्यादा लोग रहते हैं। साथ ही, दुनिया भर में खाने-पीने की चीजों की खपत का लगभग 70 प्रतिशत यहीं होता है। यही नहीं, लगभग 50 करोड़ किसान भी यहीं रहते हैं और वैश्विक खाद्य प्रणाली से कुल उत्सर्जन का 76 प्रतिशत भी यहीं से होता है। दुबई में हुई खेती-बाड़ी से जुड़ी घोषणा से खाद्य और कृषि संगठन रिजनरेटिव खेती को बढ़ावा देने के लिए एकजुट होंगे। साल 2030 तक 16 करोड़ हेक्टेयर भूमि को रिजनरेटिव खेती के तहत लाया जाएगा। साथ ही आने वाले समय में 2.2 बिलियन डॉलर का निवेश किया जाएगा और दुनिया भर में 36 मिलियन किसानों को इसमें शामिल किया जाएगा। रिजनरेटिव खेती समय के साथ मिट्टी को ख़राब करने के बजाय उसे बहाल करने और उसकी सेहत को बेहतर रखने के उपाय करती है।
दरअसल, खेती जलवायु परिवर्तन की एक अहम वजह है। कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक-तिहाई (21-37 प्रतिशत की सीमा में) खेती और उससे जुड़ी प्रणालियों, खेती और भूमि के इस्तेमाल, भंडारण, परिवहन, पैकेजिंग, प्रसंस्करण, खुदरा और खपत से होता है। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत की भूमिका एक दर्शक से बढ़कर अब मजबूती से अपनी बात कहने, अगुवाई करने और अमल में लाने वाले देश की हो गई है।
पेरिस में कॉप-21 में 2030 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को 2005 के स्तर से 33-35 फीसद कम पर लाने का वादा किया। इसने नॉन-फॉसिल फ्यूल पावर सोर्स की क्षमता बढ़ाने और एक कार्बन सिंक बनाने का भी वादा किया। ‘पंचामृत’ स्ट्रेटजी, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में कॉप-26 में पेश किया था, का मकसद 2030 तक 500 गीगावॉट नॉन-फॉसिल एनर्जी क्षमता, 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी, 2030 तक 50 प्रतिशत रिन्यूबल एनर्जी क्षमता, 2030 तक कार्बन इनटेंसिटी में 45 फीसद की कमी, और 2070 तक नेट-जीरो।

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लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।

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