मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

1857 की बगावत ही नहीं, सियासी जंग में भी लाल हुई महम की धरती

10:49 AM Sep 22, 2024 IST

ग्राउंड जीरो

दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
महम, 21 सितंबर
महम चौबीसी या चौबीसी का चबूतरा। महम की पहचान के लिए ये दो शब्द ही बहुत हैं। यह ऐसी धरती है, जिसने बड़े-बड़े दिग्गजों को नाकों तले चने चबवा दिए। किसी को भी फर्श से अर्श पर और अर्श से फर्श तक पहुंचाने के लिए भी इस इलाके को जाना जाता है। तभी तो इस हलके को नेताओं की ‘मरोड़’ निकालने के लिए भी जाना जाता है। प्रदेश की यह ऐसी धरती है, जिसने दो बार खूनी संघर्ष देखा है। 1857 के विद्रोह में यहां के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया तो अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों को रोड रोलर के नीचे कुचल दिया।
इसके बाद 1990 का एक काला पन्ना भी महम के इतिहास में दर्ज है। इसी वजह से ‘महम कांड’ का नाम आज भी लोगों के जहन में है। अब चूंकि पूरे प्रदेश के साथ महम में भी चुनावी माहौल गरम है। ऐसे में महम कांड की चर्चा भी गाहे-बगाहे हो ही जाती है। महम का चुनाव इस बार भी पूरी तरह से दिलचस्प हो चुका है। लगातार दूसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रहे मौजूदा विधायक बलराज कुंडू ने इस सीट पर प्रमुख विपक्षी दल – कांग्रेस के समीकरण पूरी तरह से बिगाड़ दिए हैं। महम की पहचान इसके ऐतिहासिक ‘चौबीसी चबूतरे’ से भी होती है। यह ‘चौधर’ का ऐसा केंद्र है, जिसने कई बार समाज को दिशा देने में भी अहम भूमिका निभाई है। सर्वखाप पंचायतों ने इसी चबूतरे से ऑनर किलिंग के खिलाफ अपना फैसला सुनाया था। कन्याओं को गर्भ में ही मार देने की सामाजिक बुराई के खिलाफ भी चबूतरे से आवाज उठती रही है। इतना ही नहीं, चौबीसी के इसी चबूतरे से सामाजिक और राजनीतिक फैसले होते हैं। 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन में जब पूरा प्रदेश चपेट में था तो यहां के लोगों ने इसी भाईचारे का परिचय दिया था। जाट बाहुल्य होने के बाद भी महम विधानसभा क्षेत्र में हर जाति के लोगों के बीच आपसी सौहार्द है। चौबीसी के चबूतरे के फैसला सर्वमान्य होता है। यह चबूतरा किसी जमाने में हिंदू और मुस्लिम भाईचारे और आस्था का भी केंद्र रहा। 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेजी सरकार ने आंदोलनकारियों को यहां के आजाद चौक पर रोड रोलर के नीचे कुचल दिया था। हिंदू परपंरा के अनुसार, उन सभी का संस्कार करने से पहले चबूतरे के पास बने मुरंडा तालाब में स्नान करवाया गया और सभी का सामूहिक संस्कार चबूतरे वाली जगह पर किया गया। इस कस्बे का ताल्लुक शाहजहां से भी है। शाहजहां के सेनापति रहे सैदुक कलाल ने महम में एक बावड़ी बनवाई ताकि उनकी सेना के रुकने व पानी आदि का प्रबंध हो सके। आज के दौर में इसे जानी चोर की बावड़ी कहा जाता है। इसमें कुआं आज भी मौजूद है लेकिन उसका अस्तित्व अब खत्म हो चुका है।

Advertisement

सिरे नहीं चढ़ी चौटाला की जिद

चौ. देवीलाल ने लगातार तीन बार 1982, 1985 (उपचुनाव) और 1987 में महम से विधानसभा चुनाव जीता। महम को देवीलाल का गढ़ कहा जाने लगा। 1989 में देवीलाल वीपी सिंह की सरकार में डिप्टी पीएम बने। उन्होंने ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बना दिया। चौटाला ने महम को सुरक्षित सीट मानते हुए उपचुनाव लड़ने का फैसला लिया। चौबीसी के लोगों ने इस पर एतराज जताया, लेकिन चौटाला यहीं से चुनाव लड़ने की जिद पर अड़ गए। दो बार उपचुनाव की कोशिश हुई, लेकिन दोनों बाद कत्लेआम हुआ और उपचुनाव रद्द करना पड़ा। दूसरी बार तो इनेलो प्रत्याशी का मर्डर ही हो गया। बाद में 1991 के उपचुनाव में जनता पार्टी के सूबे सिंह को 26 हजार से अधिक मतों से शिकस्त देकर आनंद सिंह दांगी ने जीत हासिल की।

महम कांड में गई पिता-पुत्र की कुर्सी

महम कांड की वजह से ही उप प्रधानमंत्री चौ. देवीलाल और मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। चौटाला ने पहली बार 2 दिसंबर, 1989 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वे 171 दिन सीएम की कुर्सी पर रहे। उस समय चौटाला ने महम उपचुनाव को नाक का सवाल बना लिया था। लोकदल वर्करों ने उपचुनाव में बूथ कैप्चरिंग की तो दोबारा मतदान करवाया गया। इस दौरान फिर एेसा ही हुआ तो फायरिंग भी हुई। इसमें 8 लोगों की जान गई। चौबीसी खाप के विरोध के चलते चौटाला विधानसभा नहीं पहुंच सके। एक पुलिस कर्मचारी की जान भी गई। वहीं दूसरी बार की वोटिंग में तीन लोगों की जान गई। दूसरी बार निर्दलीय प्रत्याशी अमीर सिंह का मर्डर होने की वजह से उपचुनाव रद्द करना पड़ा। महम कांड की वजह से देवीलाल को उपप्रधानमंत्री और चौटाला को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा।

Advertisement

फिर चौटाला हट गए पीछे, सत्ता से बाहर हुआ लोकदल

1991 में विधानसभा के आमचुनाव हुए। इस बार ओपी चौटाला महम के मैदान से पीछे हट गए। कांग्रेस टिकट पर आनंद सिंह दांगी मैदान में आए। वहीं लोकदल ने सूबे सिंह को चुनाव लड़वाया। दो बार के उपचुनाव में हुई हिंसा और कई लोगों की मौत के चलते चौबीसी के लोगों में लोकदल के प्रति गुस्सा था। ऐसे में सूबे सिंह को बड़े अंतर से चुनाव हराया और दांगी विधानसभा पहुंचे। इतना ही, नहीं, लोकदल की सरकार भी सत्ता से बाहर हो गई और भजनलाल के नेतृत्व में कांग्रेस सत्तासीन हुई।

जब छह बार बदले गए मुख्यमंत्री

1987 में देवीलाल ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। 20 जून, 1987 से 2 दिसंबर, 1989 तक यानी 2 लाख 165 दिन देवीलाल मुख्यमंत्री रहे। वीपी सिंह की सरकार में डिप्टी पीएम बनने के बाद ओपी चौटाला को सीएम बनाया। वे 22 मई, 1990 तक यानी 171 दिनों तक मुख्यमंत्री रहे। महम कांड की वजह से कुर्सी छोड़नी पड़ी और बनारसी दास गुप्ता सीएम बने। वे महज 51 दिन मुख्यमंत्री रहे और चौटाला ने फिर ने सीएम की कुर्सी संभाली। लेकिन इस बार वे महज पांच दिन ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रह पाए। उनके बाद मास्टर हुकम सिंह को मुख्यमंत्री बनाया। हुकम सिंह 248 दिनों तक सूबे के सीएम रहे। हुकम सिंह को कुर्सी से हटाकर चौटाला ने फिर मुख्यमंत्री पद संभाला। इस बार भी वे पंद्रह दिन ही कुर्सी पर रह पाए। 6 अप्रैल, 1991 को राष्ट्रपति शासन प्रदेश में लग गया और 23 जून, 1991 तक नई सरकार के गठन तक जारी रहा। 78 दिनों के राष्ट्रपति शासन के बाद पूर्ण बहुमत के साथ कांग्रेस सत्ता में आई और चौ. भजनलाल तीसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।

लाहौर तक जाता था महम का पानी

यहां स्थित मियां जी वाली कुई के पानी का भी अपना ही इतिहास है। अंग्रेजी हुकुमत के समय रोहतक के डीसी के पास इसी कुई का पानी जाता था। यही नहीं, इस कुई का पानी लाहौर (अब पाकिस्तान में) तक भी जाता था। इस कस्बे को पांच हजार साल पुराना भी माना जाता है। इतिहास की कई कहानियां और किस्से महम अपने आप में समेट हुए है। खेल स्टेडियम के पास बनी इस कुई के पास एक मकबरा भी है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह नवाबों के समय की निशानी हो सकती है।

कम नहीं हुआ कुंडू का प्रभाव

निर्दलीय विधायक बलराज कुंडू ने अपनी पार्टी भी बनाई हुई है। कुंडू का प्रभाव कम नहीं हुआ है। लोगों में आज भी उनकी मजबूत पकड़ है। वे पूरी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहे हैं और हुड्डा का गढ़ कहे जाने वाले रोहतक के महम में भी कांग्रेस के सामने चुनौतियां पैदा कर दी हैं। फिलहाल तो महम में भाजपा व कांग्रेस में आमने-सामने का मुकाबला दिख रहा है। वहीं निर्दलीय राधा अहलावत मुकाबले को त्रिकोणीय व भाजपा के दीपक हुड्डा मल्टी कार्नर फाइट बनाने की जुगत में हैं। हुड्डा परिवार को भी महम में पूरा जोर लगाना पड़ रहा है।

ये हैं मैदान में

बात अगर राजनीति की करें तो 2019 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के आनंद सिंह दांगी को भाजपा से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े बलराज कुंडू ने चुनाव हराया था। समाजसेवी के रूप में इलाके में अपनी पहचान बना चुके बलराज कुंडू एक बार फिर चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस ने उनके मुकाबले पूर्व मंत्री आनंद सिंह दांगी के बेटे बलराम दांगी को टिकट दिया है। वहीं भाजपा ने भारतीय कबड्डी टीम के कप्तान रहे दीपक हुड्डा पर भरोसा जताया है। भाजपा टिकट पर चुनाव लड़ चुके शमशेर सिंह खरकड़ा अपनी पत्नी राधा अहलावत के लिए टिकट मांग रहे थे। टिकट नहीं मिलने पर राधा अहलावत निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं।

बलराज कुंडू

बलराज कुंडू ने जिला परिषद पद से इस्तीफा देकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। भाजपा से टिकट कटा तो बगावत करके निर्दलीय प्रत्याशी बतौर मैदान में उतरे और जीते।

बलराम दांगी

बलराम दांगी पूर्व मंत्री आनंद सिंह दांगी के बेटे हैं और इस बार कांग्रेस की टिकट पर महम से प्रत्याश्ाी हैं।

दीपक हुड्डा

भाजपा ने भारतीय कबड्डी टीम के पूर्व कप्तान दीपक हुड्डा को मैदान में उतारा है।

राधा अहलावत

राधा अहलावत निर्दलीय मैदान में हैं।

Advertisement