जीते चाहे कोई भी, बरवाला में बनेगा रिकार्ड
राजेश चुघ/निस
बरवाला, 6 अक्तूबर
बरवाला विधानसभा क्षेत्र का चुनाव परिणाम चाहे किसी के भी पक्ष में आए, परंतु बरवाला सीट से इस बार एक रिकार्ड बनना तय है। अगर इस सीट से भाजपा प्रत्याशी रणबीर गंगवा विजयी हुए तो इस विधानसभा से पहली बार कमल खिलने का रिकार्ड बनेगा। अगर कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास घोड़ेला विजयी हुए तो वह ऐसे विधायक बन जाएंगे जो इसी सीट से दूसरी बार चुनाव जीते हो। अगर इनेलो-बसपा की प्रत्याशी संजना सातरोड विजेता बनी तो इस विधानसभा सीट से वह ऐसी पहली महिला होंगी जो विधायक चुनी जाएंगी। तीनों ने ही मजबूती से चुनाव लड़ा है। बरवाला एक ऐसी सीट है, यहा से अब तक एक बार भी भाजपा का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता। देश और प्रदेश में भाजपा की लहर होने के बावजूद 2014 और 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने यहां से सुरेंद्र पूनिया को प्रत्याशी बनाया। परंतु वह दोनों बार ही चुनाव हार गए। एक बार उनको इनेलो के वेद नारंग ने तो दूसरी बार जननायक जनता पार्टी के जोगीराम सिहाग ने पराजित किया। इससे पूर्व भी इस विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी के रूप में जितेंद्र जोग तथा योगेंद्र सिंह ने अपना भाग्य आजमाया। परंतु उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। अब 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हाई कमान ने बरवाला विधानसभा से कमल खिलाने की जिम्मेवारी डिप्टी स्पीकर रहे रणबीर गंगवा को सौंपी। अब देखना है कि क्या भाजपा बरवाला का चुनावी रण रणबीर गंगवा के भरोसे जीत पाएगी या नहीं। इसी प्रकार रामनिवास घोड़ेला बरवाला से 2009 में विधायक चुने गए थे। इसके बाद उन्होंने 2014 और 2019 का चुनाव भी लड़ा। परंतु वे दोनों चुनाव हार गए। उनका 2024 का यह चौथा चुनाव है। अगर वह इसमें विजयी होते हैं तो वह बरवाला सीट से दूसरी बार विधायक बनने का रिकॉर्ड बनाने में कामयाब हो जाएंगे। इसी प्रकार बरवाला से पहले भी महिला प्रत्याशियों ने अपना भाग्य आजमाया। परंतु वह सफल नहीं रही। इस बार भी इनेलो बसपा प्रत्याशी के रूप में संजना सातरोड चुनाव मैदान में है। अब तक हुए तेरह विधानसभा चुनावों में यहां से हमेशा पुरुष ही विधायक चुने गए हैं। महिला प्रत्याशी एक बार भी चुनाव नहीं जीत पाई। यहां का मतदाता अधिकांश बार बाहरी नेताओं पर ही मेहरबान रहा है।
बाहरी जीतते रहे हैं चुनावी दंगल
प्रदेश के गठन के बाद बरवाला का यह 14वां विधानसभा चुनाव है। इससे पूर्व के हुए 13 चुनावों में यहा से कांग्रेस प्रत्याशी सात चुनावों में अपनी जीत दर्ज करा चुके है। यहा से स्थानीय की बजाय बाहरी व्यक्ति ज्यादा बार चुनाव जीत कर विधायक बने हैं। हरियाणा के गठन के बाद यह विधानसभा क्षेत्र आरक्षित था। 1967 में पहले चुनाव में कांग्रेस के प्रभु सिंह, 1968 के अगले चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के ही गोवर्धन दास,1972 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के पीर चंद चुनाव जीते।