निष्काम कर्मयोग
भारत पर्वों व उत्सवों की धरा है। ऋतु-चक्र के साथ ही देश में त्योहारों की शृंखला शुरू हो जाती है। ग्रीष्म ऋतु की तमस और वर्षा ऋतु की शिथिलता के बाद रक्षाबंधन से पर्व-त्योहारों की शृंखला दीपावली तक जनमानस में नयी ऊर्जा का संचार कर जाती है। नयी फसल के आने और त्योहारों की उमंग में खरीदारी आर्थिकी को नयी ऊंचाई देती है। इसी बीच कृष्ण जन्माष्टमी की उमंग आमजन के जीवन में नया उल्लास भर जाती है। समाज में एकरसता तोड़ने का यह पर्व सामूहिकता में उल्लास का ही पर्याय है। श्रीकृष्ण लोकजीवन के देव हैं। उनकी लीलाओं से आम आदमी खुद को जुड़ा महसूस करता है। लीलाएं आम जनजीवन के करीब हैं तो वे राजधर्म की मर्यादा निभाने में भी पीछे नहीं हैं। बचपन में उनकी बालुसलभ लीलाएं आम बालक की तरह हैं तो उसमें देवत्व-चमत्कार भी विद्यमान है। कहीं वे बाल-गोपालों के साथ बालसुलभ क्रीड़ाएं करते हैं तो कहीं असुरों का खात्मा करके जीवन में वीरता-साहस का संदेश भी देते हैं। मर्यादाओं को तोड़ने वालों को सबक भी सिखाते हैं तो देशकाल परिस्थितियों के हिसाब से कई बार मर्यादाओं का अतिक्रमण भी कर जाते हैं। उनके जीवन-व्यवहार से आम आदमी खुद को जोड़ता है। उनका गोवंश का चराने जाना, माखन खाना और शरारतें उनके आम होने का भी अहसास कराती हैं। वहीं गोकुल के लोगों की रक्षा करना उनके देवत्व-दायित्व को भी दर्शाता है।
देश में जन्माष्टमी पर होने वाले तमाम छोटे-बड़े आयोजनों से लाखों लोगों का जुड़ना जननायक की जन-स्वीकार्यता को ही दर्शाता है। स्कूल-कालेजों में छात्र-छात्राओं का उत्साहपूर्वक कृष्ण-राधा का स्वरूप धारण करना नयी पीढ़ी में उनकी गहरे अनुराग को ही बताता है। साल भर देश में कहीं न कहीं कृष्ण लीलाओं का मंचन होता रहता है। निस्संदेह हाल के दिनों में कोरोना की काली छाया ने ऐसे आयोजनों को बाधित किया है, लेकिन इससे लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ है। सही मायनो में दैनिक जीवन में भी श्रीकृष्ण जीवन का गहरा संदेश देते हैं। ‘योग कर्मसु कौशलम्’ के उद्घोष के जरिये वे योग की सरल व्याख्या करते हैं। यानी कार्यों को कुशलता से करना ही योग है। महाभारत में वे बताते हैं कि कर्म-संन्यासी से कर्मयोगी श्रेष्ठ है। वे अर्जुन से कहते हैं कि तपस्वी से योगी बड़ा है, ज्ञानी से भी योगी बड़ा है, इसलिए योगी बनो। श्रीकृष्ण व्यक्ति को निष्काम कर्मयोगी होने का संदेश देते हैं। तत्काल फल की इच्छा के बिना निरंतर लक्ष्य के लिये प्रयासरत रहने का उपदेश देते हैं। वे आपातकाल में मर्यादा को भी परिभाषित करते हैं। सही मायनो में कृष्ण लीलाओं में व्यावहारिक जीवन के गहरे निहितार्थ निहित हैं। उनकी लीलाएं जीवन की एकरसता को खत्म करके नयी ऊर्जा व उमंग का संचार करती हैं। महाराष्ट्र समेत देश के विभिन्न भागों में मटकी फोड़ने की परंपरा आस्था, उल्लास, शरीर सौष्ठव और सामूहिकता में समाहित जीवन की झांकी दिखाती है। तभी साल-दर-साल जन्माष्टमी का उत्साह कम नहीं होता।