वित्तीय स्थायित्व पर ध्यान दें नवउद्यम
भारतीय नवउद्यम क्षेत्र (स्टार्टअप्स) सकते में है। इसका प्रतीक चेहरा बनी कंपनी आज गहरे वित्तीय संकट में फंस चुकी है। 10 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के साथ डेकाकॉर्न श्रेणी में आती इस कंपनी की मूल्यांकन कीमत आज अवमूल्यन उपरांत रसातल में है। एक वक्त 22 बिलियन डॉलर मूल्य छू चुकी बायजूस कंपनी स्टार्टअप्स सूची में कई साल लगातार शीर्ष स्थान पर बनी रही। लेकिन अब नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में इसके खिलाफ अनेकानेक मामले चले हुए हैं और देसी एवं विदेशी निवेशक इसके संस्थापक बाइजू रविन्द्रन को प्रबंधन से निकाल बाहर करने को उतावले हैं।
इसी बीच, देशव्यापी मौजूदगी वाली कंपनी पेटीएम को भी फरवरी में करोड़ों उपभोक्ताओं के लिए अपनी लोकप्रिय वॉलेट सुविधा बंद करनी पड़ी है। इसके पीछे रिजर्व बैंक का सख्त आदेश है, जिसमें बताया गया कि यह रोक उसके दिए पूर्व आदेशों की लगातार उल्लंघना के कारण लगानी पड़ी है। पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा, जिन्हें आमतौर पर देश में डिजिटल पेमेंट का सूत्रधार माना जाता है, को आलोचना की लहर थामने को पेटीएम पेमेंट बैंक का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा है।
फिलहाल, बायजूस घोर वित्तीय संकट में फंसा एक स्टार्टअप है। कभी सफलता के झंडे गाड़ने वाली इस एडटेक कंपनी की गाथा जानी-पहचानी है। बायजूस ने अपनी शुरुआत वर्ष 2011 में मूलतः एक ऑफलाइन शिक्षा-प्रदाता उद्यम के रूप में की थी और 2015 में ऑनलाइन पढ़ाई करवाने का नूतन इंटरएक्टिव तरीका ईजाद किया। कोविड-19 महामारी आने से इसको काफी लाभ हुआ, जब ऑनलाइन शिक्षा एक फौरी जरूरत बनी। इसने स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक की सभी कक्षाओं की ट्यूशन प्रदान करनी शुरू की और इस काल में करोड़ों छात्रों ने इसकी सेवाओं का उपयोग किया।
अपार सफलता होते देख, देसी एवं विदेशी निवेशकों ने कंपनी के शेयरों में खुलकर धन लगाना शुरू किया, जैसे कि नामी वेंचर कैपिटल कंपनियां- सीक्योइया कैपिटल, प्रोसेस एंड ब्लैकरॉक और कत्तर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी इत्यादि। वर्ष 2022 में बायजूस का मूल्यांकन बढ़कर 22 बिलियन डॉलर छू गया। तब इसने अन्य क्षेत्रों में विशेषज्ञता वाली एडटेक कंपनियों का तेजी से अधिग्रहण करना शुरू किया। नतीजतन, ऑफलाइन पढ़ाई करवाने में मशहूर ‘आकाश’ नामक कंपनी के अलावा ‘द ग्रेट लर्निंग’ और ‘एपिक’ जैसी नामी कंपनियों को बायजूस की ‘थिंक एंड लर्न’ नामक इकाई ने खरीद लिया। इन घटनाओं के संदर्भ में, विश्लेषकों का दावा है कि अधिग्रहण करने में सुव्यवस्थित ढंग अपनाने की कमी रही, लेकिन उस वक्त किसी ने इसको लेकर आलोचना की हो, याद नहीं पड़ता।
परंतु कोविड उपरांत काल में बायजूस का सितारा मद्धम पड़ने लगा। मीडिया रिपोर्टें आने लगीं कि बायजूस के मार्केटिंग विभाग के लोग ऑनलाइन ट्यूशन कोर्स थोपने के लिए जोर-जबरदस्ती वाले तरीके अपना रहे हैं। उधर विद्यालयों में सामान्य शिक्षा शुरू होने से होम-स्कूलिंग का कारोबार घटने लगा। ऑनलाइन शिक्षा की मांग सिकुड़ने लगी, जिससे न केवल बायजूस बल्कि कोविड महामारी में चोखी कमाई करने वाला पूरा एडटेक क्षेत्र प्रभावित होने लगा। जैसे-जैसे कंपनी का घाटा बढ़ने लगा, वित्तीय कुप्रबंधन और फिजूलखर्ची के आरोप लगने शुरू हुए और उप-सेवा प्रदाता कंपनियों को भुगतान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कोविड काल में, बायजूस ने भारतीय क्रिकेट टीम का प्रायोजन किया और लायोनेल मैसी जैसे फुटबॉल सुपरस्टार को ब्रांड एम्बेसडर बनाने पर खर्च किया। निवेशकों का आरोप है कि वित्तीय मामलों में अपारदर्शिता बरती गई, जिसके चलते लेखा-परीक्षक कंपनी डेलोइट्टे को काम छोड़ना पड़ा। निवेशक अब कंपनी के प्रबंधन से रविन्द्रन और उनके परिवार को पूरी तरह हटाना चाहते हैं, जबकि रविन्द्रन कंपनी का मुख्य कार्यकारी अधिकारी बने रहने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
पिछले हफ्ते स्थितियां आमने-सामने की बन गईं जब प्रोसेस नीत निवेशकों ने कंपनी की असामान्य आम बैठक बुलाकर रवीन्द्रन को ओहदे से हटाना चाहा। फिलहाल उच्च न्यायलय के एक फैसले ने इस प्रकार के किसी निर्णय पर रोक लगा रखी है। इसी बीच, प्रताड़ना और कुप्रबंधन की शिकायतों ने एनसीएलटी को सुनवाई जल्द करने के लिए उत्प्रेरक का काम किया तो वहीं कॉर्पोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री ने भी अपनी ओर से कंपनी के खिलाफ जांच शुरू कर दी है। अन्य शब्दों में, जिस कंपनी ने कभी डेकाकॉर्न का खिताब अर्जित किया, आज वह गहन वित्तीय संकट में है। इस प्रसंग से स्टार्टअप बिरादरी के लिए सामान्य तौर पर और एडटेक सेक्टर के लिए विशेष तौर पर बहुत सारे सबक सीखने को हैं। प्रथम, स्टार्टअप्स वेंचर्स के लिए एक दक्ष प्रबंधन के अतिरिक्त निवेशकों-संस्थापकों के बीच निकट संबंध बनाए रखना जरूरी है। द्वितीय, अधिग्रहण हेतु बहुत बड़ी मात्रा का निवेश प्राप्त करते वक्त वित्तीय विशेषज्ञों द्वारा सावधानीपूर्वक आकलन करना अत्यंत जरूरी है। तृतीय, संस्थापकों की भले ही किसी विधा विशेष में महारत हो, जैसे कि रविन्द्रन की पढ़ाने में है, जरूरी नहीं उनके पास यथेष्ट व्यापारिक अक्ल भी उतनी हो। यहां पर अनुभवी और विश्वसनीय परामर्शदाताओं के मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।
पेटीएम की तरह इस मामले में भी, नियामक संस्था द्वारा निर्धारित नियमों की पालना करना बहुत महत्व रखता है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने विशेष तौर पर कहा है कि पेटीएम पेमेंट बैंक के लेनदेन को निलंबित करने वाला सख्त निर्णय तब लेना पड़ा जब कंपनी खातों की निगरानी संबंधित उसके सिलसिलेवाराना दिशा-निर्देशों की पालना करने में विफल रही। पेटीएम ने केवाईसी (उपभोक्ता शिनाख्त प्रमाण) नियमों को लागू करने में जो ढुलमुलता दिखाई, उसका लाभ उठाकर किन्हीं तत्वों द्वारा काला धन इधर-उधर करने की सूचनाएं आने लगीं। स्टार्टअप्स की चकाचौंध करने वाली आरंभिक सफलता से किंचित संस्थापकों में दुस्साहस भर जाता है कि कायदे-कानून की उल्लंघना करके वे बच निकलेंगे। पेटीएम पर हुई कार्रवाई सही मायने में सुस्पष्ट संकेत है कि नियामक संस्था को नियम तोड़ने देना गवारा नहीं ताकि आगे चलकर कहीं यह एक विराट वित्तीय घपला न बन जाए।
बायजूस वाला प्रसंग तब प्रस्फुटित हुआ जब 2021 में स्टार्टअप्स के लिए शरद ऋतु निवेश सत्र चल रहा था। नव-उद्यमों के लिए निवेश की सिकुड़न फिलहाल पूरी दुनिया पर भारी है लेकिन भारत के मामले में यह इस वजह से और अधिक चिंताजनक है क्योंकि अनेकानेक स्टार्टअप्स की मूल्यांकन कीमत बहुत नीचे गिरी है। ट्रैक्सॉन की रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में प्राप्त कुल निवेश फंड घटकर 7 बिलियन डॉलर रह गया, जबकि 2022 में यह 25 बिलियन डॉलर था।
इस सबके परिप्रेक्ष्य में, बायजूस का मामला तमाम स्टार्टअप्स संस्थापकों के लिए नसीहत है। यह प्रसंग वेंचर कैप्टलिस्ट्स के अंदर भारत में निवेश जोखिम संबंधी डर पैदा कर सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि विगत में बहुत से भारतीय स्टार्टअप्स तरक्की करके दक्ष कॉर्पोरेट्स का रूप धर चुके हैं। स्टार्टअप्स के लिए उच्च उपलब्धियां पाने को मददगार निवेश पाने में वित्तीय विशेषज्ञता वाली सलाह की जरूरत आज पहले की अपेक्षा कहीं अधिक है। इस संदर्भ में स्पाइडरमैन फिल्म का संवाद एकदम मौजूं है– अधिक शक्ति मिलने पर अधिक जिम्मेवारी बन जाती है– स्टार्टअप संस्थापक हो या निवेशक, वित्तीय स्थायित्त्व बनाने पर ध्यान पूरी तरह केंद्रित रखना दोनों की जिम्मेवारी है।
लेखिका आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ हैं।