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समय के सदुपयोग से पूरे होंगे नये लक्ष्य

07:16 AM Jan 01, 2024 IST
क्षमा शर्मा

अपनी खट्टी-मीठी यादों के साथ 2023 विदा हो गया। हर रोज की आपाधापी, एक-एक दिन का बीतना, महीनों में बदलना और फिर साल की विदाई के रूप में आना। कहते हैं न कि समय को किसी पिंजरे में बंद नहीं किया जा सकता, न उसे पकड़ा जा सकता है। हां, उसके अच्छे और सार्थक उपयोग के तरीके ढूंढ़े जा सकते हैं। हर दिन कुछ ऐसा किया जा सकता है, जिससे समय का सदुपयोग भी हो और हमें संतुष्टि भी मिले। इन दिनों अक्सर लोग, हर दूसरा आदमी यह कहता पाया जाता है कि करना तो हम यह भी चाहते हैं, वह भी चाहते हैं लेकिन कर नहीं पाते, क्योंकि समय नहीं मिलता। अब सोचने की बात यह है कि जिन्हें देखकर हम सोचते हैं कि अमुक तो इतना सब कुछ कर लेते हैं, और हम उनके मुकाबले कुछ नहीं कर पाते, आखिर उनके पास भी तो समय हमारे बराबर ही है। रात-दिन को मिलाकर चौबीस घंटे ही।
इस मामले में अपनी परिचित एक महिला का उदाहरण देना सही मालूम पड़ता है। इस महिला का कहना था कि उसने अपनी नींद का समय तय कर रखा है, वह रात को दस बजे तक सो जाती है। इससे पहले सवेरे की तैयारी कर देती है जैसे कि सब्जी काटना, आटा गूंदना, दाल चुनकर रखना, बच्चों से उनका बस्ता लगवाना। उनकी यूनिफार्म निकालना, उनके मोजे जूतों में रखवाना, पानी की बोतल और लंच बाक्स अपनी जगह पर रखना। रात को सारा परिवार मिलकर खाना खाता है। परिवार में आपसी सामंजस्य और मेल-मिलाप के लिए जरूरी है कि सब इकट्ठे बैठकर खाना खाएं। बच्चे नौ बजे तक सो जाते हैं। इसके बाद यह महिला कोई टीवी प्रोग्राम देखती है। अगले दिन की तैयारी में जो कुछ बचा हो उसे पूरा करती है, पति से बातें करती है, हंसती, खिलखिलाती है।
रात को दस बजे सोने के बाद यह सवेरे पांच बजे उठती है। दोनों पति-पत्नी योग करते हैं। उससे पहले यह दाल और सब्जी बनने रख देती है। जितनी देर दोनों योग करते हैं, दाल, सब्जी बनकर तैयार हो जाती है। दाल-सब्जी की तैयारी रात को सोने से पहले ही कर दी गई थी, इसलिए कोई दिक्कत भी नहीं होती। इसके बाद दोनों चाय पीते हैं। बच्चों को उठाते हैं। पति बच्चों को नहलाने-धुलाने, तैयार करने में मदद करते हैं। महिला बच्चों का नाश्ता और स्कूल ले जाने का टिफिन तैयार करती है। जब तक पति बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हैं, वह दोनों के लिए दफ्तर ले जाने का खाना और नाश्ता तैयार कर देती है। पति कालेज में पढ़ाते हैं, इसलिए दोपहर में बच्चों के आने से पहले वह लौट आते हैं। उनका होमवर्क करा देते हैं। खाना गर्म करके तीनों साथ खा लेते हैं।
सवेरे रसोई का काम खत्म होने से पहले ही पति आकर घर की साफ-सफाई का जिम्मा संभालते हैं। महिला रसोई को संवारती है। दोनों के नहाने के बाद कपड़े वाशिंग मशीन में डालती है। जब तक नाश्ता करते हैं, तैयार होते हैं, कपड़े धुल जाते हैं। निकलने से पहले या तो वह या पति कपड़े सुखा देते हैं और इस तरह शाम तक का काम बिना किसी बाहरी मदद के पूरा हो जाता है। महिला कार ड्राइव करके आफिस चली जाती है। लौटते हुए दफ्तर के पास लगने वाली फल मंडी से बच्चों के लिए फल भी खरीदकर गाड़ी में रख लेती है। उसका कहना है कि जहां वह रहती है, वहां फल बहुत महंगे मिलते हैं और अच्छे भी नहीं होते, इसलिए वह यहां से खरीदती है। बचत भी होती है।
एक बार आफिस के टाउन हाल में इस महिला ने जब अपनी दिनचर्या के बारे में बताया, तो सब बहुत चकित हुए। कइयों ने कहा कि तुम इनसान हो या रोबोट। इतने सारे काम कैसे कर लेती हो। थकती नहीं हो। फिर नौकरी भी करने आ जाती हो। संयोग से ये दिन साल के आखिरी दिन ही थे। –बहुत से लोग उसे लेडी राबिन्सन क्रूसो भी कहने लगे।
महिला उनकी बातें सुनकर हंसी। उसने कहा आप लोग हर नए साल के शुरू होने से पहले बहुत से संकल्प लेते होंगे। जिनमें स्वास्थ्य सम्बंधी संकल्प भी होते होंगे। बचत करने की बात होती होगी। परिवार के साथ समय बिताने के बारे में भी सोचते होंगे। योग, एक्सरसाइज भी शिड्यूल में होते होंगे। आप ही बताइए जिस दिनचर्या के बारे में मैंने आपको बताया, उसमें इनमें से कौन-सी चीज छूट गई। मैं और मेरे पति अपने परिवार की देखभाल करते हैं। अपने स्वास्थ्य के बारे में सोचते हैं तभी योग करते हैं। घर की साफ-सफाई भी एक्सरसाइज ही समझिए। जितना समय हम जिम में आने-जाने में खर्च करते, उतने समय में घर के काम भी पूरे हो जाते हैं और हमारी एक्सरसाइज भी। अच्छे स्वास्थ्य के लिए घर का खाना जरूरी माना जाता है इसलिए हम कोशिश करते हैं कि घर का खाना ही खाएं, वही बच्चों को खिलाएं। हां, कभी-कभार की बात और है। यही नहीं, हम बचत के बारे में भी सोचते हैं क्योंकि अभी तो उम्र है कमाने की, एक दिन ऐसा आएगा कि उम्र तो बची रहेगी, लेकिन कमाने के साधन खत्म हो जाएंगे, इसलिए हर एक के लिए बचत जरूरी है। हम वही करते हैं। अपने बच्चों के नाम से भी हमने वे अकाउंट्स खुलवा रखे हैं जिनसे बड़े होकर उन्हें पढ़ने-लिखने में सुविधा होगी। अलग से पैसे का इंतजाम नहीं करना पड़ेगा। हम समय पर सोते हैं और समय पर उठते हैं। और दिलचस्प बात यह है कि हमारे पास कभी भी समय की कमी नहीं पड़ती। सारे काम पूरे होने के बाद भी समय बचा रहता है। साल में दो बार छुट्टियां लेकर हम बच्चों को घुमाने ले जाते हैं।
उस महिला की बात सुनकर एक और स्त्री ने सवाल किया था कि क्या कभी इतने काम से बोर नहीं होतीं।
इस पर स महिला ने कहा था कि काम से बोर आप तब होते हैं, जब आप एक ही किस्म का काम लगातार करते रहें। मेरे पास तो सवेरे से शाम तक सब अलग-अलग तरह के काम हैं। मैं उन्हें इन्जाय भी बहुत करती हूं। पति का सहयोग है, तो कामों में कोई दिक्कत भी नहीं होती। मैं हर साल शुरू होने से पहले सोचती हूं कि इस साल भी उसी तरह से काम करती रहूंगी जिस तरह से पिछले साल किया। और देखिए कि काम पूरे हो जाते हैं। जब मैंने गाड़ी खरीदी थी तो पति ने भी कहा था कि ड्राइवर रख लूं। लेकिन मुझे लगा कि क्यों न खुद चलाना सीखूं। इससे मुझे भी एक नई विद्या आएगी और आना-जाना आसान होगा। अब सारे परिवार को कहीं जाना होता है तो या तो मैं या पति गाड़ी चलाते हैं। इस तरह हम कहीं जा भी पाते हैं और किसी पर निर्भरता भी नहीं है। संसार की सबसे बुरी बात अपने काम के लिए दूसरों पर निर्भरता है।
दफ्तर में इस महिला की बातचीत की इतनी तारीफ हुई थी कि उसे ही सबसे बड़ा इनाम दिया गया था। आप भी चाहें तो आने वाले साल के लिए इस महिला से बहुत कुछ सीख सकते हैं। नए साल के संकल्प ले सकते हैं।

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लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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