आभासी दुनिया में नेह भेंट
विकास नैनवाल ‘अंजान’
सोशल मीडिया की दुनिया को आभासी दुनिया कहा जाता है लेकिन इस आभासी दुनिया ने मुझे कई ऐसे लोगों से भी मिलाया है जिनसे अगर मैं न मिलता तो शायद मेरा जीवन इतना समृद्ध न हो पाता। कई ऐसे लोगों से मिलना हुआ जिनसे शायद मैं अपने अंतर्मुखी स्वभाव के कारण कभी मिल न पाता। ऐसे व्यक्तियों की सूची तो बहुत बड़ी है। यह पोस्ट एक ऐसे ही शख्स के बारे में है। यह हैं योगेश मित्तल जी। योगेश मित्तल जी लेखक हैं जिन्होंने कहानी, कविता, सत्य कथा, उपन्यास, बाल उपन्यास इत्यादि लिखे हैं। अपने जीवन के 70 वसंत देख चुके योगेश मित्तल जी से मेरा पहला परिचय इनके लेखों की वजह से हुआ। यह लेख फेसबुक के एक समूह में प्रकाशित होते थे और शब्दों के कालीन पर बिठाकर हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाते थे जिसको देखने की इच्छा हमारे मन में न जाने कब से कुलबुला रही थी। वह दुनिया थी उन लेखकों, प्रकाशकों, कवर आर्टिस्टों की जिन्होंने लोकप्रिय लेखन के जगत में अपना योगदान दिया है। उन्होंने कुछ लेख, कविताएं ‘दुई बात’ के लिए भी लिखीं।
इतना सब होने के बाद भी अब तक मिलना नहीं हो पा रहा था। इसका एक कारण यह भी था कि कोरोना के वक्त मेरी शादी हुई और फिर मैं उत्तराखंड में कभी पौड़ी और कभी देहरादून ही रहा। खैर लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार योगेशजी से मिलने की घड़ी आई। योगेश जी ने जिस सोसायटी के विषय में कहा था उसके बाहर अब मैं खड़ा था। जब मैंने एक व्यक्ति से फोटो स्टेट की दुकान के विषय में पूछा तो वह बोले, ‘क्या प्रेत लेखन के लेखक से मिलने आए हैं?’ दुकान पर पहुंचा तो योगेश जी व्यस्त थे क्योंकि ग्राहक वहां पर मौजूद थे। मैं उनके पैर छूने के लिए झुका तो उन्होंने आगे बढ़कर हाथ मिला लिया और मुस्कराकर मुझे बैठने के लिए कहा। हम लोग दो घंटे साथ रहे। उन्होंने अनेक लोगों से परिचय कराया। यह उनकी दुनिया थी और देखकर लग रहा था कि वह यहां पर खुश हैं, संतुष्ट हैं। पुस्तकों, लेखकों की चर्चा के साथ ही कई किस्से सुनने को मिले। कुछ किस्से जो पहले केवल फेसबुक पोस्ट के माध्यम से पढ़े थे उन्हें उनके मुख से सुनने का मौका मिला और वह उतने ही रोचक लगे जितना कि पढ़ते हुए लगे थे। उनसे किताबें भी मिलीं। मैंने झोले में रखी, उनके साथ फोटो खिंचाई और विदाई ली।
साभार : दुई बात डॉट कॉम