आंगनवाड़ी कर्मियों की उपेक्षा
कोरोना काल से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के स्वास्थ्य, शिक्षा, बाल पालन पोषण के साथ-साथ परिवार नियोजन, प्रसूताओं को दुग्ध आहार के प्रति जागरूक बनाना, टीकाकरण में मदद करना आदि काम काबिले तारीफ हैं। अफसोस कि इन्हें काम के अनुसार वेतन, स्थायी सरकारी कर्मचारियों वाली सुविधाएं नहीं मिलतीं। सरकार की वादा-खिलाफी के विरुद्ध अनिश्चितकालीन हड़ताल के चलते असंख्य शिशु माताओं को स्वास्थ्य की हानि उठानी पड़ रही है। सरकार को आंगनवाड़ी कर्मचारियों की जायज़ मांगों के साथ न्याय करना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
मान और मानदेय
छह वर्ष की आयु तक के बच्चों के शारीरिक-मानसिक और बौद्धिक विकास की जिम्मेवारी आंगनवाड़ी कर्मियों की समझी जाती है। इनकी माताओं के स्वास्थ्य की देख-भाल, उचित पोषाहार की व्यवस्था, सुरक्षित प्रसूति और उन्हें परिवार नियोजन, स्वास्थ्य व पोषण से संबंधी शिक्षा तथा मातृ-दुग्धाहार के प्रति जागरूक बनाना भी इन का दायित्व है। लेकिन इन्हें स्वयंसेवक का दर्जा देकर केवल एक निश्चित मानदेय दिया जाता है। इनकी लम्बे समय से अनदेखी हो रही है। सरकार को इनके कुशल प्रशिक्षण और नियमित वेतनमान की व्यवस्था करनी चाहिए। आंगनवाड़ी कर्मियों की न्यूनतम योग्यता भी उनकी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी के अनुरूप निर्धारित की जानी आवश्यक है।
शेर सिंह, हिसार
आंगनवाड़ी केन्द्रों में प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ, साफ-सफाई, स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी और पोषाहार देने का काम कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाता है। इन कर्मियों को कम मानदेय पर काम करना पड़ता है। परिवार नियोजन की योजनाओं, व्यापक टीकाकरण अभियान का रिकार्ड रखने में इन कर्मियों की महती भूमिका होती है। एक निर्धारित आयु पूर्ण करने के बाद इनको एक तरह से सेवामुक्त कर दिया जाता है और सेवानिवृति के बाद कोई लाभ भी नहीं दिया जाता। अर्जित अवकाश और चिकित्सा अवकाश आदि की भी कोई सुविधा नहीं मिलती। इन कर्मियों को भी सरकारी कर्मचारियों के समान सुविधाएं दी जानी चाहिए।
जगदीश श्योराण, हिसार
शीघ्र पूरी हो मांगें
बालक और माताओं के कल्याणार्थ चल रही बहुउद्देश्यीय योजना में संलग्न आंगनवाड़ी कर्मियों से जिस प्रकार की शासन को अपेक्षाएं होती हैं, उसी तरह बच्चे और माताओं की भी शासन से काफी अपेक्षाएं होती हैं। उल्लेखनीय है कि दोनों के बीच की कड़ी है आंगनवाड़ी कर्मी। यह कड़ी ही समाज को बेहतर और स्वस्थ बच्चे के भविष्य की नींव रखते हैं। अपेक्षाएं पूरी होने और लक्ष्य तक पहुंचने हेतु संलग्न आंगनवाड़ी कर्मियों की समस्यायों का समाधान कर उन्हें संतुष्ट रखना जरूरी है। विशेषकर महिला कर्मी की संख्या अधिक तथा राष्ट्रीय स्तर की योजना होने से इनकी मांगें प्राथमिकता से पूरी करना आवश्यक है।
बीएल शर्मा, तराना, उज्जैन
आंगनवाड़ी अर्थात् आंगन आश्रित महिलाओं व बच्चों के पोषण व स्वास्थ्य के लिए संचालित की गई एक सरकारी संस्था है। स्वस्थ व कुपोषण रहित भारत निर्माण के दृष्टिगत संस्था के कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। लेकिन लंबे समय से इन आंदोलनरत कर्मियों की अनदेखी हो रही है। बढ़ती महंगाई के दृष्टिगत मानदेय राशि अपर्याप्त होना, भुगतान समय पर निश्चित न होना, पद की अनियमितता एवं घोषणाओं का समुचित क्रियान्वयन संभव न हो पाना रोष का मूल कारण है। कोरोना काल में भी कर्तव्यनिष्ठ रहे कार्यकर्ता अपनी समस्याओं के प्रति व्यवस्था की उदासीनता से क्षुब्ध हैं। सरकार को जल्द से जल्द समाधान करना चाहिए।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
मांगें पूरी करें
आंगनवाड़ी एक सरकारी संस्था है जो कि छह साल से कम आयु के बच्चों के, स्वास्थ्य, शिक्षा, पालन पोषण का ध्यान रखने के साथ-साथ महिलाओं तथा बच्चों के लिए परिवार नियोजन, प्रसूताओं को मातृ दुग्ध आहार के प्रति जागरूक बनाना, टीकाकरण में मदद करना आदि काम करती हैं। अफसोस की बात है कि इन्हें इनके काम के अनुसार वेतन नहीं मिलता, काम के घंटे निर्धारित नहीं हैं, नौकरी भी पक्की नहीं है, और न ही सरकारी कर्मचारियों वाली सुविधाएं मिलती हैं। इसलिए अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंगनवाड़ी कर्मी हड़ताल पर हैं। इसके फलस्वरूप 8 करोड़ माताओं और शिशुओं के हितों को नुकसान पहुंच रहा है। सरकार को आंगनबाड़ी कर्मचारियों की जायज़ मांगों को अविलंब पूरा करना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
कोई भी आंदोलन, चाहे वह किसानों का हो या आंगनवाड़ी वर्करों का, यदि लंबा चलता है तो सरकार की योग्यता पर एक प्रश्नचिन्ह लग जाता है। आंगनवाड़ी वर्कर समाज में सबसे संवेदनशील वर्ग है, जिसके कार्य तो बेहद संजीदा हैं, मगर वेतन बहुत कम है। सरकार को इनकी मांगों के प्रति नरमी दिखाकर आंदोलन को सम्मानजनक तरीके से समाप्त कराना चाहिए। आंगनवाड़ी वर्कर छोटे बच्चे और गर्भवती महिलाओं को संभालती हैं। लंबे समय से अपना घर-परिवार छोड़कर संघर्षरत हैं। सरकार और कर्मचारी दोनों ही इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना