आस्था के सान्निध्य में मुस्कुराती कुदरत
अलका ‘सोनी’
हमारा देश प्राकृतिक सुंदरता से भरा-पूरा है। इसके राज्य भी अनुपम हरियाली और खूबसूरती से परिपूर्ण हैं। झारखंड, हमारे देश का ऐसा ही एक राज्य है जो प्राकृतिक सुंदरता और संपदा से भरा हुआ है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता बरबस ही पर्यटकों का मन मोह लेती है।
इस हरियाली में जब आस्था का मणिकांचन संयोग होता है तो फिर बात ही कुछ और होती है। ऐसे ही एक संयोग का नाम है ‘रामगढ़’। यह झारखंड के उन 24 जिलों में से एक है जो उसे पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाते हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान, यहां एक सैन्य जिला भी था जिसे रामगहर जिले के नाम से जाना जाता था। अपने हरे-भरे आड़ू, खुबानी, नाशपाती और सेब के बागानों के कारण रामगढ़ को ‘कुमाऊं के फलों का कटोरा’ भी कहा जाता है। इसे दो खंडों में विभाजित किया गया है : मल्ला, जो अधिक ऊंचाई पर स्थित है, और तल्ला, जो नीचे की ओर स्थित है। दादी प्वाइंट भी वहां स्थित है। रामगढ़ में घूमने के लिए बहुत सारी जगहें हैं।
छिन्नमस्तिके मंदिर
यहां स्थित विशिष्ट स्थलों में से एक है ‘छिन्नमस्तिके मंदिर’ जो कि झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किमी की दूरी पर रजरप्पा में स्थित है। इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी प्रतिमा की पूजा होती है। माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसलिए हर साल हजारों की संख्या में देश भर से भक्त यहां मां के दर्शन के लिए आते हैं। बता दें कि देवी का ये मंदिर 51 शक्तिपीठों में दूसरा बड़ा शक्तिपीठ है।
हमारा देश भारत अनूठी संस्कृति, परम्पराओं और रीति-रिवाजों का देश है। बात अगर भारत के मंदिरों की करें, तो यहां के मंदिरों का इतिहास अद्भुत है। हर मंदिर अपने आप में अनूठा है।
इस मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। छिन्नमस्तिका देवी की प्रतिमा के कटे हुए सिर को देखकर लोगों के मन में सवाल उठता है कि देवी मां ने अपने कटे हुए सिर को हाथों में क्यों उठाया हुआ है?
इसके पीछे की दिलचस्प कहानी। एक कहानी के अनुसार, एक बार जब देवी मां अपनी सहेलियों के साथ गंगा नदी में स्नान करने गई, तो कुछ समय वहां रुकने के कारण उनकी दो सहेलियां भूख से व्याकुल हो उठी। दोनों सहेलियों की भूख इतनी तेज थी कि दोनों का रंग तक काला पड़ गया। वह मां से भोजन की मांग करने लगीं। मां ने उनसे धैर्य रखने को कहा, लेकिन वे भूख से तड़प रही थीं। माता ने अपनी सहेलियों का हाल देखकर अपना ही सिर काट दिया। जब उन्होंने अपना सिर काटा, तो उनका सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा। उसमें से रक्त की तीन धाराएं बहने लगीं। दो धाराओं को देवी मां ने सहेलियों की तरफ दे दिया।
तब से वे इसी रूप में यहां स्थापित हैं। छिन्नमस्ता देवी की पूजा खासतौर से शत्रुओं पर जीत प्राप्त करने के लिए की जाती है। मां का रूप उग्र है। इसलिए तंत्र-मंत्र की क्रियाओं में भी इनकी पूजा करने की परंपरा है। मंदिर के भीतर देवी छिन्नमस्तिका की मूर्ति अद्भुत है। उनकी प्रतिमा कमल के फूल पर स्थापित है। उनकी तीन आंखेें हैं। देवी के पैरों के नीचे विपरीत मुद्रा में कामदेव और रति शयन अवस्था में विराजे हैं। देवी मां के बाल खुले और बिखरे हैं। वे सर्पमाला और मुंडमाला धारण किए हुई हैं।
लोटस मंदिर
लोटस मंदिर रामगढ़ में रजरप्पा में स्थित है। यह छिन्नमस्तिका मंदिर के पास में ही बना हुआ है। यह मंदिर बहुत सुंदर है और मंदिर का आकार लोटस के समान है। मंदिर मार्बल से बना हुआ है और बहुत ही आकर्षक लगता है। यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के अंदर दुर्गा जी की बहुत ही सुंदर प्रतिमा के दर्शन करने के लिए मिलते हैं।
रजरप्पा जलप्रपात
पतरातु घाटी
पलानी वॉटरफॉल
कैसे पहुंचें
फ्लाइट
बिरसा मुंडा हवाई अड्डा, रांची में निकटतम हवाई अड्डा है। प्रत्यक्ष लिंक दिल्ली, पटना, मुंबई और कोलकाता जैसे प्रमुख शहरों में उपलब्ध हैं। रामगढ़ के बजाय आप नियमित आधार पर रांची हवाई अड्डे के लिए उड़ान भर सकते हैं। रांची पहुंचने के बाद, आप या तो कैब किराए पर ले सकते हैं या रजरप्पा के लिए बस पकड़ सकते हैं। जहां मंदिर स्थित है।
ट्रेन
रांची से रामगढ़ तक 6 सीधी ट्रेनें हैं। ये ट्रेनें आरएनसी बीएसबी एक्सप्रेस (18611), झारखंड एसजे एक्स (12873), राउ मुरी जाट एक्सप (18109), बीएसबी आरएनसी एक्सप्रेस (18612), एसबीपी बीएसबी एक्सप्रेस (18311) आदि हैं। ट्रेन का न्यूनतम समय रांची से रामगढ़ पहुंचने के लिए 2 घंटे है। ट्रेन से रजरप्पा पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका रामगढ़ रेलवे स्टेशन के लिए सीधी ट्रेन है जो मंदिर से लगभग 28 किमी की दूरी पर स्थित है। स्टेशन से, आप रजरप्पा के लिए सीधी बस या सीधी टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
सड़क मार्ग
छिन्नमस्तिका मंदिर, बस या अपने निजी वाहन से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। रांची से रजरप्पा, रामगढ़ होकर सीधे जा सकते हैं। जो कि डेढ़ घंटे का सफर होता है। वैसे ओरमांझी से गोला होकर व नामकुम से मुरी-सिल्ली होते हुए भी रजरप्पा पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं।