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मानवीय मूल्यों के हनन पर रहस्यपूर्ण खामोशी

06:26 AM Nov 20, 2023 IST
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राजेश रामचंद्रन

हमारे समाज में अंदरखाते कितनी विद्रूपता है इसकी झलक, अपनी पूरी वीभत्सता के साथ, हाल ही में उजागर हुई है। बल्कि, दृश्यावली हर गुजरते दिन के साथ बदतर होती जा रही है। हरियाणा के जींद में एक वरिष्ठ माध्यमिक कन्या विद्यालय की लगभग 50 बच्चियों के साथ यौन-उत्पीड़न हुआ, स्कूल के प्रधानाचार्य ने कुछ के साथ छेड़छाड़ की, तो कुछेक का कथित बलात्कार। उसे लैंगिक अपराधों से बाल संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के प्रावधानों के तहत सामान्य एवं गहन स्तर का यौन-उत्पीड़न करने की धाराओं में गिरफ्तार कर लिया गया है। साथ ही, उस पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत महिला अस्मिता पर हमला करने और गलत ढंग से रोककर रखने वाली धाराएं भी जोड़ी गई हैं।
यह कहानी इतनी विचित्र है कि तफ्सील से विवेचना की जरूरत है। सबसे पहले कुछ स्कूली छात्राओं द्वारा राष्ट्रीय महिला आयोग को चिट्ठी लिखी बताई जाती है। जाहिर है छात्राओं ने अपने असली नाम नहीं लिखे होंगे। यह पत्र शायद गत 31 अगस्त को लिखा गया। जब 25 अक्तूबर को जिला प्रशासन ने जांच-पड़ताल शुरू की– ठीक उसी दिन आरोपी प्रधानाचार्य जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से अनुमति लिए बगैर 50 छात्राओं के साथ अमृतसर यात्रा पर निकल गया। इस पर मीडिया वालों को संदेह है कि ऐसा शायद अपने बचाव की आड़ बनाने के इरादे से किया गया। वापसी पर अतिरिक्त मुख्य सचिव ने आरोपों में दम भांपकर प्रधानाचार्य को बर्खास्त कर दिया।
इसके बाद उपायुक्त द्वारा नियुक्त यौन उत्पीड़न समिति द्वारा की गई तफ्तीश में पाया गया कि प्रथम दृष्टया आरोप बेवजह नहीं लगते। गत 4 नवम्बर को प्रधानाचार्य को गिरफ्तार कर लिया गया। आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजने के बाद और इल्जाम सामने आने लगे। इस मुद्दे पर केवल जनवादी महिला समिति और संयुक्त किसान मोर्चा ही ऐसे संगठन हैं, जो प्रदर्शन कर रहे हैं और अपनी ओर से इस भयावह कांड की जांच-पड़ताल करवा रहे हैं। एक स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सिक्किम नैन द्वारा प्रधानाचार्य पर 30 बच्चियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाया गया है। एक अवयस्क के साथ किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध बलात्कार से इतर नहीं हो सकता। इसलिए, यदि कार्यकर्ता प्रधानाचार्य द्वारा बलात्कार किए जाने को इंगित कर रहा है, तो पूरा मामला एक अलग मोड़ ले सकता है, क्योंकि अभी तक उस पर बलात्कार की धारा नहीं लगाई है। न ही बलात्कार को लेकर स्थानीय पुलिस ने जांच की है।
इससे बदतर, 30 सितम्बर को ग्यारहवीं की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। बेबस छात्रा, जो कि गरीब तबके से थी, उस दिन विद्यालय आई थी, उसने हताश होकर खुदकुशी कर ली। शव का पोस्ट-मॉर्टम तक नहीं हुआ, न ही अब तक पुलिस ने आत्महत्या के लिए मजबूर करने के स्थानीय कार्यकर्ताओं के आरोपों पर जांच शुरू की है। बताया जाता है कि इस विद्यालय की दो और छात्राओं ने भी विगत में आत्महत्या की थी। किसी ने घटनाओं को समय के क्रम से जोड़कर देखने या इन सब अजीब घटनाओं पर विस्तृत रिपोर्ट देने की जरूरत नहीं समझी, न तो पुलिस ने और न ही प्रशासन या फिर विद्यालय प्रबंधन ने। इन सभी से किए गए प्रत्येक सवाल के जवाब में केवल टालमटोल वाले जवाब मिले।
द ट्रिब्यून ने भयावह दिखाई देने वाली इस कहानी की तह तक जाने का प्रयास किया है, जब एक अध्यापक अपनी छात्राओं के लिए दरिंदा बन गया। लेकिन अब तक कुछ विशेष हाथ नहीं लग पाया। नए प्रधानाचार्य ने अपने पूर्ववर्ती पर लगे आरोपों को हवा में उड़ाया है, और यहां तक दावा किया कि एक बार उसके खिलाफ भी शिकायत हुई थी लेकिन कुछ निकला नहीं। संयोगवश ऐसी सूचनाएं हैं कि जींद में प्रधानाचार्य बनने से पहले भी आरोपी का पिछला इतिहास यौन-उत्पीड़न के इल्जामों से सना है। ऐसा लगता है यौन-उत्पीड़न की शिकायतें हरियाणा के विद्यालयों में अमूमन आती हैं और इस किस्म की शिकायतों के बावजूद शिक्षा विभाग दागी अध्यापकों को कन्या विद्यालयों में नियुक्त करने से नहीं टलता।
ऐसा भी नहीं कि कथित कांड की सारी जिम्मेवारी शिक्षा विभाग या विद्यालय को उठानी पड़े। एक भी स्थानीय राजनेता ने इस मामले में मुंह खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई, न ही स्थानीय मंत्री ने, यहां तक कि किसी विपक्षी नेता ने भी। चुप्पी की यह साजिश चहुंओर पसरी है। वैसे भी हरियाणा में सत्तासीन और विपक्षियों के बीच भाईचारा है। हाल ही में ज़हरीली शराब ने 20 लोगों की जान ली, कथित आरोपियों मे एक विपक्षी दल का नेता और एक सत्तासीन दल के बड़े नेता का पुत्र है। इस पर भी सब शांत रहे। पंजाब और हरियाणा में अवैध शराब से मौतों की घटनाएं समय-समय पर होती रहती हैं और ‘शराबी थे, मर गए’ कहकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है, जबकि ऐसा है नहीं।
यदि हाल ही में यमुनानगर की घटना का उदाहरण लें तो मुख्य आरोपी, जिसकी पूरी संभावना सत्ताधारी और विपक्षी नेताओं का मुखौटा होने की है, उसके पास 22 शराब ठेकों के लाइसेंस हैं। वह खुलेआम एक्सट्रा न्यूट्रल एल्कोहल (ईएनए) मिली शराब बेचता रहा, यह गिरोह जहां कहीं भी उपलब्ध हो लाकर मिला देता था। जब ईएनए की बजाय मिथाइल एल्कोहल या डीनेचर्ड स्पिरिट खरीदकर मिलाई जाए, तो परिणाम में मौतें होती हैं। यह सीधी-सी बात है। इसलिए, शराब उत्पादन इकाइयां, लाइसेंसशुदा ठेका चलाने वाले, एक्साइज़ अफसर और कुछ भ्रष्ट राजनेताओं की चौकड़ी वाला कराधान घोटाला अंततः शराब-त्रासदी बनाता है। मौतों का दोष उन परिवारों पर मढ़ दिया जाता है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी देसी दारू बनाने का धंधा करते हैं।
लेकिन जींद की 50 छात्राओं की किस्मत को घालमेल वाली पड़ताल पर नहीं छोड़ा जा सकता। यह मामला विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण बन जाता है कि न केवल बच्चियों के साथ बलात्कार और खुदकुशी जैसे गंभीर आरोप लग रहे हैं बल्कि इसलिए भी कि वह सम्पूर्ण व्यवस्था ठप हो चुकी है, जो अगर चाहती तो ऐसी घटनाएं रुक सकती थीं। जाहिर है विद्यालय प्रबंधन समिति, जिला बाल कल्याण समिति, बाल अधिकार संरक्षण आयोग और अन्य तमाम संबंधित विभाग और कानूनी संस्थाएं अपना फर्ज निभाने में विफल रहे हैं।
यदि जींद के एक विद्यालय में व्यवस्था तंत्र ठप रहा तो अन्य सरकारी विद्यालयों में स्थिति कैसे अलग हो सकती है? सरकारी स्कूलों का एक अन्य दुखद तथ्य यह है कि वहां अधिकांश विद्यार्थी समाज के पिछड़े वर्ग– चाहे आर्थिक रूप से या सामाजिक रुतबे में– से होते हैं। इस श्रेणी के विद्यार्थियों को जहां इस प्रकार की ज्यादतियां सहनी पड़ती हैं वहीं उनके अभिभावक भी बेबस बने रहते हैं। अपने बच्चों की भांति वे भी कभी सामाजिक उत्पीड़न का शिकार बन चुके होते हैं, यह उन्हें चुपचाप हताशा सहने को विवश करता है। फिर वे पुलिस द्वारा अपनी बच्चियों से पूछताछ को सामाजिक तौर पर कलंक मानकर भी शिकायत नहीं करते, इससे प्रत्येक के लिए मामला दबाना आसान बन जाता है। परंतु बतौर एक समाज, हम पितृसत्तात्मक व्यवस्था द्वारा बच्चों का मुंह बंद करवाना और दरिंदों को आसानी से छूट निकलने देकर, बच्चों को उनके हाल पर नहीं छोड़ सकते।

लेखक प्रधान संपादक हैं।

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