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संकट में ईरान के रहबर बने मोखबर

08:17 AM May 24, 2024 IST
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अरुण नैथानी

ईरान फिलहाल बड़े नेतृत्व व आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। यूं तो पहले से ही यह इस्लामिक देश अमेरिका और इस्राइल के निशाने पर रहा है। परमाणु कार्यक्रम पर अंकुश लगाने के लिये सख्त अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों से बचते-बचाते ईरान जैसे-तैसे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश ही कर रहा था। मगर 20 मई के हेलीकॉप्टर दुर्घटना में राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी व विदेश मंत्री समेत कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मौत, इस देश के लिये वज्रपात जैसी है। ऐसे में कार्यपालिका प्रमुख के रिक्त पद को भरना तात्कालिक चुनौती थी। ईरानी संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार विधिवत चुनाव होने तक उप-राष्ट्रपति मोहम्मद मोखबर देजफुली को ही राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है। दरअसल, ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद प्रधानमंत्री पद खत्म कर दिया गया था। फिर चुना गया राष्ट्रपति ही उपराष्ट्रपति का मनोनयन करता रहा है। इस पद पर बैठा व्यक्ति लगभग प्रधानमंत्री जैसे कार्यपालिका के दायित्वों को निभाता है। उपराष्ट्रपति को शासन प्रमुख के निधन के बाद राष्ट्रपति की तमाम शक्तियां व दायित्व केंद्रीय नेतृत्व की सहमति के बाद मिल जाते हैं। ईरानी संविधान के अनुसार पचास दिन के भीतर ही राष्ट्रपति का चुनाव संपन्न हो जाना चाहिए।
दरअसल, मोहम्मद मोखबर एक उच्च शिक्षित तथा क्रांति के विचार पोषक रहे हैं। उन्हें आर्थिक मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है। ऐसे वक्त में जब परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने की वजह से ईरान पर सख्त प्रतिबंध लगे हैं तो मोहम्मद मोखबर ने ईरानी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये भरसक प्रयास किये हैं।
ईरान के खुजेस्तान प्रांत के देजफुल शहर में 1955 में जन्मे मोहम्मद मोखबर देजफुल को उपनाम उनके शहर के नाम पर ही मिला है। गंभीर धार्मिक रुझान वाले परिवार में उनके पिता इस्लामिक उपदेशक की भूमिका में भी रहे हैं। अपने शहर में आरंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद वे उच्चशिक्षा के लिये अहवाज गए। बताते हैं कि उन्होंने इलेक्ट्रिकल अभियांत्रिकी के साथ ही प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिग्री भी हासिल की। बाद में मैनेजमेंट व आर्थिक विकास में डॉक्टरेट भी की। ईरानी मीडिया के अनुसार मोहम्मद मोखबर ने बाद में अंतर्राष्ट्रीय कानून में पीएचडी भी हासिल की। कालांतर में वे इस्लामिक क्रांति से जुड़े वैचारिक संगठनों से जुड़े रहे। जिसमें तत्कालीन सरकार के विरुद्ध सक्रिय मंसूरुन ग्रुप के सक्रिय सदस्य थे। फिर खुजेस्तान में इस्लामिक रिपब्लिकन गार्ड्स कोर में खासे एक्टिव रहे। उनकी सक्रियता ईरान-इराक युद्ध के दौरान भी रही। युद्ध के बाद वे कई बड़ी दूरसंचार कंपनियों में शीर्ष पदों पर रहे। सीमित अंतराल के लिये खुजेस्तान के डिप्टी गवर्नर की भूमिका भी रही। आर्थिक व प्रबंधन में गहरी पकड़ के चलते मोहम्मद मोखबर को सिना बैंक व ईरान सेल कंसोर्टियम में निदेशक मंडल जैसे बड़े पद मिले।
कालांतर में इस्लामिक गणराज्य की आर्थिकी रीढ़ कहे जाने वाली संस्था ‘फरमान इमाम’ के मुख्यालय के प्रमुख की नियुक्ति के रूप में बड़ी सफलता पायी। दरअसल, ‘फरमान इमाम’ की स्थापना इस्लामिक क्रांति के सूत्रधार आयतुल्लाह खुमैनी की रणनीति के तहत हुई थी। इस संस्था और मोहम्मद मोखबर के कद का पता इस बात से पता चलता है कि कुछ साल पहले अमेरिका ने इन पर प्रतिबंध लगाए थे। दरअसल, इस संस्था के कब्जे में इस्लामिक क्रांति के बाद जब्त अरबों की संपत्ति है। जो सीधे ईरान के सर्वोच्च धर्मगुरु अयातोल्लाह खामेनई के सुपरविजन में संचालित होती है। इस संस्था की अकूत संपदा की किसी ईरानी विभाग द्वारा निगरानी नहीं हो सकती है और संस्था का दखल कई महत्वपूर्ण आर्थिक क्षेत्रों में है। उल्लेखनीय है कि मोखबर डेढ़ दशक तक फरमान इमाम कार्यकारी अधिकारी रहे।
दरअसल, ईरान के सुप्रीम नेता से करीबी संबंध और आर्थिक मामलों में गहरी पकड़ के चलते मोखबर ईरान के उपराष्ट्रपति बने थे। उन्होंने तमाम कट्टरपंथी नेताओं को मात देकर इस पद को हासिल किया था। वे जहां एक ओर सर्वोच्च धर्मगुरु अयातोल्लाह खामेनई के विश्वासपात्र रहे वहीं दिवगंत राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के भी भरोसेमंद रहे हैं। दरअसल, ईरानी संविधान के अनुसार राष्ट्रपति ही उपराष्ट्रपति की नियुक्ति करता है, यह पद जनता द्वारा चयनित नहीं होता। यद्यपि वे पर्दे के पीछे से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन उनकी आर्थिक नीतियों की सफलता को लेकर कई तरह के किंतु-परंतु होते रहे हैं। सवाल फरमान इमाम की आर्थिक नीतियों व काम करने के तौर-तरीकों तथा दर्जनों कंपनियों की मिल्कियत को लेकर भी उठते रहे हैं। संस्था सेवा कार्यों के लिये बरकत फाउंडेशन तथा नॉलेज फाउंडेशन भी चलाती है।
दरअसल, मोखबर तब भी सुर्खियों में आए थे जब कोरोना महामारी के दौर में बरकत फाउंडेशन के तत्वावधान में ईरानी वैक्सीन प्रोजेक्ट को सिरे चढ़ाने के प्रयास हुए थे। इन प्रभावशाली व बड़ी संस्थाओं में निर्णायक भूमिका के साथ ही वैक्सीन ने उन्हें देश में नायकत्व प्रदान किया। ईरानी सर्वोच्च धार्मिक नेता की सहमति से चली योजना को लेकर कई किंतु-परंतु भी सामने आए। मोखबर ने अपनी बेटी को पहली वैक्सीन लगाकर देश के लोगों का भरोसा हासिल करने का प्रयास किया।
दरअसल, मोहम्मद मोखबर ने अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों से उपजे संकट से देश को बाहर निकालने का सतत प्रयास किया। कालांतर में उनके योगदान व अनुभव के चलते ही उन्हें रेजिस्टेंट इकॉनमी का सर्वेसर्वा बनाया गया। वहीं ईरानी सत्ता के सूत्रधारों के साथ बेहतर रिश्तों के चलते वे पर्दे के पीछे के खेल के मंजे खिलाड़ी भी माने जाते हैं। बहरहाल, हेलीकॉप्टर हादसे के बाद उन्हें ईरान में एक बड़ी जिम्मदेारी निभाने का मौका मिला है।

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