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प्रगाढ़ संबंधों के लिए मोदी की ‘मॉस्को विजिट’ 8 जुलाई को

06:46 AM Jun 25, 2024 IST
प्रगाढ़ संबंधों के लिए मोदी की ‘मॉस्को विजिट’ 8 जुलाई को
फाइल फोटो
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सामरिक महत्व

  • स्टैंडअलोन यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरा कार्यकाल शुरू होने के तुरंत बाद हो रही है
  • यूक्रेन संघर्ष के बीच, भारत पिछले दो वर्षों से रूस के साथ अपने संबंधों की महीन राह पर चल रहा है
  • अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, भारत की रूसी तेल और हथियारों पर निर्भरता इतनी अधिक है कि इसे छोड़ा नहीं जा सकता
  • भारत के रणनीतिक हित इस यात्रा पर हावी रहेंगे, जबकि दोनों देश तेजी से बदलती विश्व व्यवस्था में नयी साझेदारी की तलाश कर रहे हैं

ज्योति मल्होत्रा
ट्रिब्यून न्यूज सर्विस
मॉस्को, 24 जून
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 जुलाई को एक दिन के त्वरित दौरे पर मॉस्को जा रहे हैं। उम्मीद की जा रही है कि यह दौरा भारत और रूस जैसे ऐतिहासिक साझेदारों के बीच जुड़ाव को रेखांकित करेगा, जो तेजी से बदलती नयी विश्व व्यवस्था में नयी साझेदारियां भी तलाश रहे हैं।
मोदी का यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि एक तो यह ‘स्टैंड-अलोन’ यात्रा है, जिसका अर्थ है कि इसे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के साथ नहीं जोड़ा गया, जो अक्तूबर में कज़ान में आयोजित होने की उम्मीद है। दूसरे, यह दौरा मोदी द्वारा तीसरे कार्यकाल के लिए सरकार का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद हो रहा है और उधर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भी मार्च में ही पांचवीं बार चुने गये हैं।
मोदी के आखिरी बार रूस आने के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में भी बहुत कुछ बदल गया है- वह 2019 में व्लादिवोस्तोक में थे, लेकिन आखिरी बार 2015 में माॅस्को गए थे।
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू हुए दो साल हो चुके हैं। लेकिन इस हमले के मद्देनजर, मूल्य-संवेदनशील भारत को रूस के रियायती कच्चे तेल की बिक्री बेहद महत्वपूर्ण रही है। आयातित कच्चे तेल के सबसे बड़े स्रोत के रूप में रूस, सऊदी अरब की जगह ले चुका है।
रूसी तेल व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंध भले ही कड़े कर दिए गये, लेकिन भारत की तेल खरीद हर महीने बढ़ी है। कमोडिटी बाजार विश्लेषक फर्म केप्लर के अनुसार, इस साल मार्च में डिलीवरी की मात्रा फरवरी की तुलना में 6 प्रतिशत बढ़कर 1.7 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गई, जो चार महीने का उच्चतम स्तर है।
अप्रैल और भी बेहतर रहा, क्योंकि भारतीय रिफाइनरियों ने रूस के सरकारी नियंत्रण वाले तेल शिपिंग सिंडिकेट सोवकॉम्फ्लोट के
खिलाफ पश्चिमी प्रतिबंधों को नजरअंदाज कर दिया और प्रतिदिन 1.96 मिलियन बैरल खरीद की। यह पिछले साल जुलाई के बाद से सबसे अधिक है। रूसी आयात भारत में कुल आयातित कच्चे तेल का 40 प्रतिशत से अधिक हो गया।
विडंबना यह है कि भारत इस रूसी कच्चे तेल की एक बड़ी मात्रा को प्रोसेसिंग के बाद लाभ पर यूरोप को फिर से बेचता है, विडंबना इस कारण कि यूक्रेन पर हमले के बाद से यूरोपीय रिफाइनरियों पर सीधे रूसी तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। और फिर रूसी हथियारों और पुर्जों पर भारतीय निर्भरता है, जो हालांकि पिछले कुछ वर्षों में कम हो रही है, लेकिन अभी भी इतनी महत्वपूर्ण है कि इसे छोड़ा नहीं जा सकता। ऐसा इसलिए, क्योंकि पश्चिम की तुलना में रूस से हथियारों की खरीद काफी सस्ती है और भारतीय सशस्त्र बल दशकों से इनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारत पिछले दो वर्षों से अपने रूस संबंधों को लेकर संतुलन बनाकर चल रहा है, जबकि उसे पता है कि अमेरिका इस पर बारीकी से नज़र रख रहा है।
भारत ने यूक्रेन पर रूसी हमले की आलोचना करने से इनकार कर दिया था, केवल सामान्य शब्दों में कहा है कि सभी आक्रमण और सभी युद्ध बुरे हैं। स्विट्जरलैंड में हाल के शिखर सम्मेलन के अंत में जारी यूक्रेन समर्थक बयान पर हस्ताक्षर करने से भारत ने इनकार कर दिया था।
इस बीच, रूस-चीन के बढ़ते संबंधों पर भी नजर रखनी होगी- यह एक ऐसा तथ्य है, जो नयी दिल्ली की नज़रों से कभी नहीं बच सकता।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि जुलाई की शुरुआत में जब राष्ट्रपति पुतिन क्रेमलिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत करेंगे, तो दिल्ली के रणनीतिक हित हावी होंगे।

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