संयमित शारीरिक गतिविधि रोकेगी अचानक मौत
पिछले दिनों गुजरात में नवरात्रि उत्सव मनाने के दौरान एक दर्जन से अधिक अचानक होने वाली मौतों की खबर आई है। मरने वालों की उम्र किशोरवय से लेकर वयस्कों तक रही। गरबा नृत्य करते वक्त वे अचानक गिरे और प्राण पखेरू उड़ गए। इस त्रासदी ने फिर से सवाल उठाया है— क्या अत्यधिक शारीरिक व्यायाम या थकावट से अचानक मौत हो जाती है? पिछले कुछ सालों में, मशहूर गायक के प्रस्तुति देते वक्त और लोकप्रिय हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव व्यायाम करते समय मर गए। यह देखा गया है कि सघन व्यायाम करते समय ऐसी मौतों का जोखिम ज्यादा होता है। इसलिए, अतिशयी व्यायाम कुछ लोगों की अप्रत्याशित मृत्यु का कारण बनता है। आमतौर पर आरामतलब रहे लोग जब एकाएक भारी व्यायाम करने लगते हैं, तो मौत का जोखिम 50 गुणा अधिक हो जाता है। हालांकि विरले मामलों में, प्रशिक्षण अथवा प्रतिस्पर्धा के दौरान भी खिलाड़ी मरते देखे गए हैं। ज्यादातर मामलों में, अचानक मौत दिल की हालत से जुड़ी होती हैं। इस तरह से एकदम गिरने और मृत होने के पीछे कारण समझने की तुरंत जरूरत हैं ताकि बचाव के लिये रोधक उपाय किए जा सकें।
मेडिकल दृष्टि से तथ्य यह है कि सामान्य व्यायाम दिल के रोगों से बचाव करता है और इसको एक महत्वपूर्ण दिल-सुरक्षा गतिविधि माना जाता है। लेकिन अत्यधिक व्यायाम करने पर कोरोनरी धमनी में जमा एथिरोस्क्लेरोटिक प्लाक (थक्का) फट जाता है, और 30 साल या उससे अधिक उम्र वालों की अचानक मौत हो जाती है। वे लोग जो अस्वास्थ्यकारी गतिविधियां जैसे कि धूम्रपान, अत्यधिक शराब सेवन या आरामतलब जीवनशैली जीते हैं, उनकी धमनियों में चर्बी का थक्का बन जाता है। इससे धमनी में पैदा हुआ संकुचन सामान्यतः रक्त प्रवाह में महसूस करने लायक रुकावट नहीं बनाता, इससे वे लोग बिना लक्षणों वाले किंतु जोखिमज़दा वर्ग में होते हैं। अत्यधिक व्यायाम या गतिविधि करने पर थक्का, जिसकी प्रवृति्त रक्त प्रवाह का दबाव बढ़ने से फटने की होती है, इसकी झिल्ली फटने से गाढ़ा पदार्थ धमनियों में जमा होकर थ्रोम्बोसिस और अवरोध बना देता है, नतीजतन हृदयाघात और यहां तक कि अचानक मौत हो जाती है। जिन लोगों को पहले से हृदयरोग है, उन्हें भारी व्यायाम से दूर रहना चाहिए। 30 साल से ऊपर की उम्र के वे लोग, जिनका पारिवारिक इतिहास हृदयरोग का है या अस्वास्थ्यकर जीवनशैली जीते हैं, उन्हें सघन व्यायाम करने से पहले अपने दिल की हालत का ऐतिहातन परीक्षण और आकलन करवाना चाहिए।
कोरोनरी आर्टरी ऑब्स्ट्रक्शन बच्चों और किशोरवय में कम ही होती है। वे बच्चे, जो गरबा नृत्य करते वक्त मरे हैं, उनमें एक की उम्र 12 साल और एक की 17 वर्ष थी। इस आयु वर्ग में हृदयाघात की वजह ज्यादातर अनजाने रहे हाइपरट्रोपिक कार्डियोमायोपैथी या पुश्तैनी अर्रिहिथमिक डिस्ऑर्डर हो सकती है। आमतौर पर इस किस्म की व्याधि परिवार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है, इसलिए ऐसी स्थिति वाले छोटे बच्चों या किशोरों को सघन शारीरिक व्यायाम करने से पहले दिल की जांच करवा लेनी चाहिए। हालांकि, कई बार किसी का फिटनेस लेवल पता हुए भी कुछ मामलों में, बहुत अधिक या तेज-तेज व्यायाम करने से शरीर में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन बन सकता है। कदाचित सामान्य व्यक्ति में भी खतरनाक वेंट्रिकुलर अर्रिहिथमिया बन जाए। कुछ किस्म के नृत्य, जैसे कि ब्रेक-डांस या सघन एरोबिक डांसिंग शारीरिक रूप से बहुत थकाऊ होते हैं। इसलिए इन्हें करने के पहले इनके गंभीर असर के बारे में पता होना चाहिए। इसके लिये बचाव के उपाय, जैसे कि बीच-बीच में रुककर अत्यधिक थकावट से बचना, शरीर में पानी की मात्रा उचित बनाए रखना और थकावट महसूस होने के बावजूद अचानक से या बहुत भारी व्यायाम न करना। आगे, यदि किसी को चक्कर आएं या मितली जैसी आने को हो या व्यायाम करते वक्त सांस में दिक्कत होने लगे तो तुरंत रुक जाना अति आवश्यक है।
हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने बताया है कि उनमें भी अचानक हृदयाघात और मौतें देखी गई हैं, जिन्हें कोविड-19 का संक्रमण हुआ था। जिनमें तीव्र कोविड लक्षण बने या कुछ दिन अस्पताल में रहना पड़ा था, उन्हें जोखिम ज्यादा है। हालांकि इस अवलोकन की पुष्टि करने के लिए कोई निश्चित वैज्ञानिक सुबूत फिलहाल नहीं हैं। ऐसे मामलों में हुई मौतों के बाद किए गए देह-परीक्षणों (ऑटोप्सी) से अचानक मृत्यु की वजहें पहचानने में मदद मिल सकेगी। यह मालूम नहीं है कि क्या देह-परीक्षण उन लोगों के हुए हैं जिन्हें महामारी लहरों में कोविड हुआ और अब अचानक मौत हुई। वास्तव में, अप्रत्याशित मौतों में 30 फीसदी संख्या युवाओं की थी, रिवायती देह-परीक्षण से कारणों की स्पष्ट व्याख्या नहीं हो पाएगी। इसके लिए मॉलिकूलर ऑटोप्सी, जिसमें डीएनए सिक्वेंसिंग होती है, परीक्षण विधि ऐसे मामलों में छिपी चैनलोपैथी डिसऑर्डर को पहचानने में कारगर साधन हो सकती है।
एहतियाती उपाय के अलावा, ऐसे मामले सामने पर जल्द की गई सीपीआर विधि (मुंह से मुंह में सांस भरना और छाती को हथेलियों से दबाना ताकि श्वास और धड़कन चालू हो सके) बहुत काम का जीवन-रक्षक उपाय है। इन मामलों में समय की अहमियत बहुत होती है और सीपीआर देने में प्रत्येक मिनट की देरी होने पर पीड़ित के बचने की संभावना 10 फीसदी कम होती जाती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि लोगों को वक्त रहते जान बचाने हेतु आपातकालीन जीवन रक्षक उपाय करने सिखाए जाएं। इसके लिए समाज को प्रशिक्षित करने और मामला घटित होने पर आसपास के लोगों को जीवन-रक्षक संहिता अमल में लाने की काबिलियत बनवाई जाए। प्रभावशाली पुनर्जीवन उपायों के लिए बहुत जरूरी है तुरंत पहचान, त्वरित पहुंच, जल्द सीपीआर और शीघ्र डिफाइब्रिलेशन उपाय, और ये सब बहुत अहम हैं। अतएव, एक ऑटोमैटेड डिफाइब्रिलेटर और पुनर्जीवन-प्रदाय टीम मौके पर उपलब्ध होना सबसे महत्वपूर्ण है। जहां कहीं बहुत सारे लोग हों, जैसे कि हवाई अड्डा, शॉपिंग मॉल्स और बड़ी रिहायशी कालोनियां, वहां पर चल-ऑटोमैटेड डिफाइब्रिलेटर स्थापित किए जाएं।
हृदयाघात होने पर बचने की संभावना तय करने में त्वरित उपाय समय पर करना बहुत अहमियत रखता है। यदि समुचित पुनर्जीवन-प्रदाय उपाय पहले 4-6 मिनट में न मिल पाए तो मस्तिष्क-घात या मस्तिष्क-मृत्यु का जोखिम बहुत बढ़ जाता है। भारत में अधिकांश लोगों को यह मालूम नहीं है कि यकायक किसी के गिरने पर क्या करना होगा। बेहतर परिणाम पाने का एक ही तरीका है कि आसपास इकट्ठा हुए लोगों में कोई प्रभावशाली सीपीआर कर पाए, डिफाइब्रिलेशन सहित। इस तरह समय रहते उपाय करने से बहुत- सी मौतें बचाई जा सकती हैं, इसलिए अचानक हृदयाघात के मामलों में बचाव नीति और प्रभावी पुनर्जीवन उपाय, दोनों ही अति महत्वपूर्ण हैं।
लेखक पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के पूर्व निदेशक हैं।