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सामुदायिक सहिष्णुता और समरसता का मॉडल

06:41 AM Aug 19, 2023 IST

सूरजभान भारद्वाज व महाबीर जागलान

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देश की राजधानी दिल्ली के समीप तीन प्रांतों, हरियाणा, राजस्थान व उत्तर प्रदेश में फैला मेवात क्षेत्र एक साझी संस्कृति की पहचान रखता है। भारत के विभाजन के समय जब देश के अनेक हिस्से साम्प्रदायिक हिंसा से ग्रस्त थे तब भी मुस्लिम बहुल ये इलाका साम्प्रदायिक दंगों से मुक्त था। जब मुस्लिम लीग के बहकावे में आकर कुछ लोग पाकिस्तान की ओर पलायन कर रहे थे तो इस इलाके के एक जाने-माने नेता चौधरी मोहम्मद यासीन खान के आग्रह पर स्वयं गांधी जी मेवात वासियों से पाकिस्तान न जाने की अपील करने मेवात के एक गांव घासेड़ा पहुंचे थे। इसके फलस्वरूप सरहद पार कर पाकिस्तान पहुंचे हजारों मेवाती वापस भारत लौट आए। पाकिस्तान से उनके लौटने का एक कारण वहां की सांस्कृतिक कट्टरता और परिस्थिति में न ढल पाना भी माना जाता है।
आजादी के पिछले 75 साल में अनेक सांप्रदायिक दंगे हुए, लेकिन अयोध्या में विवादास्पद ढांचे के गिराने और 2002 की गुजरात हिंसा के बाद भी इस क्षेत्र में प्रतिक्रिया नहीं हुई। अभी 31 जुलाई को नूंह कस्बे के पास कुछ धार्मिक शोभा यात्रियों और स्थानीय युवकों की टोलियों के बीच हुई हिंसक झड़पें भी साम्प्रदायिक दंगे का रूप नहीं ले पाई, स्थानीय बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के बीच सामाजिक सौहार्द बना रहा।
दरअसल, हरियाणा में खेती और पशु पालन व्यवसाय से जुड़े कुछ कृषक समुदाय धर्म से सम्बद्ध होते हुए भी आमतौर पर संस्थागत धर्म के अनुपालन से परहेज करते रहे हैं। साल 1840-42 में जब मेवात में परिवार गणना की गई तो एक ब्रिटिश अधिकारी ने लिखा कि यहां एक-तिहाई परिवारों को यह पता ही नहीं कि वो मुस्लिम हैं या हिन्दू। मेव अपनी वंशावली चन्द्रवंशी राजपूतों से जोड़ते हैं। मेवात में सामाजिक समारोहों में स्थानीय बोली में ‘पान्डून को कड़ो’ गाया जाता रहा है जिसमें महाभारत के नायकों अर्जुन और भीम का उल्लेख अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले योद्धाओं के रूप में किया जाता था। मेव संस्कृति में न्याय और अन्याय से सम्बद्ध कला प्रस्तुतियों को विशेष महत्व दिया जाता रहा है। यहां अली बक्स के सांग जिन्हें स्थानीय बोली में तमाशा कहा जाता था, बहुत लोकप्रिय रहे हैं। इनमे कृष्ण लीला और नल दमयंती के किस्से बहुत चाव से सुने जाते थे। कंस के अत्याचारों और श्रीकृष्ण द्वारा उसके वध के मंचन बहुत जनप्रिय होते थे।
मेव समाज धार्मिक संकीर्णता से दूर रहा है और 20वीं सदी तक इस पर इस्लामी तौर-तरीकों का असर आंशिक ही रहा। इस सन्दर्भ में 1902 की एक घटना उल्लेखनीय है। भिवाड़ी और तिजारा के बीच बसे गांव टपुकडा में हनुमान जी का मेला लगता था। कुछ मेव चौधरियों ने उस स्थान पर मस्जिद बनाने का फैसला लिया और वहां मस्जिद बनानी शुरू कर दी। इसके लिए उन्होंने हर घर से एक रुपया लेने का फैसला किया। लेकिन मेवों ने यह कहकर पैसे देने से इंकार कर दिया कि वे हनुमान जी के मेले स्थल पर मस्जिद नहीं बना सकते और वहां मस्जिद कभी नहीं बन पाई। बहुत लम्बे समय तक मेवों में शादी में निकाह की रस्म काजी करवाता था व बाकी रस्में हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार होती थी। फसल उपज से जुड़े होली और दीवाली त्योहार मेव वैसे ही मनाते थे जैसे हिन्दू।
मेव समुदाय के राजनीतिक इतिहास में भी साम्प्रदायिकता नहीं झलकती। जिआउद्दीन बरनी ने 13वीं सदी की घटनाओं के आधार पर लिखा कि बलबन और अलाउद्दीन खिलजी जैसे ताकतवर सुल्तान भी मेवों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने में असफल रहे। हसन खां मेवाती की सरदारी में मेव बाबर के खिलाफ पहले पानीपत में लड़े और फिर खानवा की लड़ाई में। अकबर ने सूझबूझ से मेवों को डाक व्यवस्था के माध्यम से प्रशासन से जोड़ा। भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में मेवों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया तो उन्हें कुचलने के लिए सेना भेजी गई लेकिन वो भी मेवात पर नियंत्रण नहीं स्थापित कर पाए। लगातार विरोध के कारण ब्रिटिश सरकार ने मेवों को आपराधिक जनजाति भी घोषित कर दिया। इसके बावजूद वो वतन प्रेमी नागरिक बने रहे और इसका सबूत है 1947 में उनका धर्म के नाम पर देश के बंटवारे का विरोध और भारत में रहने का फैसला।
आज हरियाणा का मेवात क्षेत्र बेहद पिछड़ा इलाका है। नीति आयोग ने 2018 में नूंह को पिछड़े जिलों की सूची में सबसे ऊपर रखा है। विकास के लगभग हर सूचकांक में नूंह जिला हरियाणा में सबसे पिछड़ा है। 2011 के आंकड़ों के अनुसार यहां सिंचाई के साधनों की कमी के कारण फसल उत्पादकता बहुत कम है तथा रोज़गार की कमी की वजह से लोगों की पशुपालन पर निर्भरता बहुत अधिक है। पिछले कुछ वर्षों से गौरक्षा के नाम पर यहां कई ऐसे कटुतापूर्ण मामले सामने आये जिससे यहां की ग्रामीण अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। वर्तमान में अनेक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से जूझता मेवात भी देश में सामुदायिक सहिष्णुता और भाईचारे का मॉडल रहा है।
आज मेवात को लेकर संकीर्ण राजनीति की जा रही है। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने भी प्रशासन की एक वर्ग के खिलाफ कार्रवाई का स्वत: संज्ञान लिया है। जैसा हाल नूंह में हुई हिंसा में देखने को मिला कुछ स्थानीय युवक भी साम्प्रदायिक धारणाओं से भ्रमित हो जाएं। यदि मेवात जैसा इलाका हिंसा से जरा सा भी प्रभावित होता है तो क्षेत्र में शांति से रह रहे दोनों समुदायों के लिए ही नहीं, पूरे देश और वर्तमान विकास के मॉडल के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी। गुरुग्राम में अनेक बड़ी विदेशी कंपनियों के दफ्तर हैं। कई विदेशी और देशी कम्पनियां दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे कॉरिडोर में पूंजी लगाने की इच्छुक होंगी जिसका एक हिस्सा मेवात में पड़ता है। क्या सामाजिक सौहार्द के बिना किसी क्षेत्र में विकास संभव है?

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