हरियाणवी संस्कृति के आयामों का आईना
प्रद्युम्न भल्ला
हिंदी साहित्य में निबंध लेखन की समृद्ध परंपरा रही है। हरियाणा प्रदेश के रचनाकारों ने भी इस विधा में अपनी गहरी छाप छोड़ी है। इसी कड़ी में सत्यवीर नाहड़िया का ताजा प्रकाशित निबंध संग्रह है, जिसमें उनके 32 निबंध संकलित हैं।
शुभ तारिका के अंक में हमारी बात के अंतर्गत उर्मि कृष्ण लिखती हैं-यही संस्कृति ऐसी धारा है जो युगों-युगों से मनुष्य के साथ आज तक बहती आई है और आदमी की राक्षसवृत्ति को सुधारती भी आई है। इस दृष्टि से यदि अवलोकन किया जाए तो नाहड़िया के इस निबंध संग्रह के अधिकतर निबंध हमारे हरियाणा की संस्कृति के विभिन्न आयामों को उल्लेखनीय ढंग से रेखांकित करते हैं। इसी संग्रह की भूमिका में लिखा गया है कि भले ही संकलन में संग्रहित सभी निबंध विशुद्ध लोक संस्कृति का प्रतिनिधित्व न करते हों लेकिन हरियाणा के जनजीवन को समझने के लिए अपरिहार्य हैं। इसमें संस्कृति पक्षों से उत्तर गौरवशाली सैन्य परंपरा, राष्ट्रीय आंदोलन, सामाजिक चेतना अभियानों, गौरक्षा, अध्यात्म और जनजीवन से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर ज्ञानवर्धक जानकारी उपलब्ध है, जिसे हरियाणवी जनजीवन से रूबरू होने के लिए पढ़ना जरूरी है।
यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि नाहड़िया द्वारा रचित निबंधों में जहां हरियाणा के लोकजीवन में समृद्ध अतीत रखने वाली सांग परंपरा, रागनी विधा और लोक भाषा के गहनों का जिक्र है वहीं मां बोली हरियाणवी को अपेक्षित प्रतिष्ठा न मिल पाने की वजहों की पड़ताल भी है। गोधन संरक्षण का उल्लेख करते हुए लेखक रोचक जानकारी देता है और इसी प्रकार यहां के संत परंपराओं, तालाबों के अतिरिक्त यहां के रोजमर्रा के त्योहार और शिक्षा के अतिरिक्त, इतिहास, संघर्षों और खेल भावना की गाथाओं को भी नाहडि़या ने बड़े सुंदर ढंग से सहेजा है।
पुस्तक में सभी पहलुओं का रोचकता से वर्णन है जो कहीं भी बोझिलता पैदा नहीं करता। हरियाणा से जुड़े हर व्यक्ति के लिए यह पुस्तक एक अनिवार्य ग्रंथ है, जिससे उसको हरियाणा की संस्कृति की पूर्ण जानकारी मिलती है। निबंधों की भाषा अत्यंत सरल और सहज है। इसमें कहीं भी नीरसता नहीं है।
पुस्तक में वर्णित स्थानों के महत्व की जानकारी के साथ-साथ यदि उन स्थानों के रंगीन आकर्षक चित्र भी दिए जाते तो और भी सुंदर बन पड़ता। जो स्थल अपनी सुंदरता खो चुके हैं या जहां जीर्णोद्धार अपेक्षित है, उस तरफ भी इस पुस्तक को पढ़ने के बाद निश्चित रूप से इससे जुड़े विभाग का ध्यान जाएगा, ऐसी भी आशा जगती है।
पुस्तक : हरियाणवी लोक संस्कृति के आयाम लेखक : सत्यवीर नाहड़िया प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन, मेरठ पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 175.