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दिल को भी दर्द दे रहा है माइक्रोप्लास्टिक

06:36 AM Aug 22, 2023 IST
डॉ. शशांक द्विवेदी

जीवन को सुविधाजनक बनाने के लिए जब प्लास्टिक का आविष्कार हुआ था तब किसी ने सपने में नहीं सोचा होगा कि यही प्लास्टिक आज मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएगा। सुबह उठने से लेकर रात में सोने तक के क्रम में प्लास्टिक हमारे जीवन का अभिन्न अंग हो गया है लेकिन अब यही प्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक बनकर हमारे शरीर में घुलकर जहर का काम कर रहा है। प्रदूषण के कारण शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के कण मिलने के प्रमाण तो पहले सामने आ चुके हैं, लेकिन अब यह खतरा दिल तक पहुंच गया है।
पिछले दिनों अमेरिका में सर्जरी के पहले और बाद में लिए गए दिल के ऊतकों यानी टिश्यू के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक के कण मिलने की पुष्टि हुई है। शोधकर्ताओं ने 15 लोगों के दिल की सर्जरी के पहले और बाद में टिश्यू के नमूने लिए थे। ज्यादातर नमूनों में हजारों माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए गए। प्लास्टिक के प्रकार व कणों की संख्या मरीजों में अलग-अलग रही। शोधकर्ताओं ने कहा कि किसी के दिल पर माइक्रोप्लास्टिक कणों से पड़ने वाले प्रभाव को समझने के लिए अभी व्यापक शोध की जरूरत है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दिल तक माइक्रोप्लास्टिक का पहुंचना चिंताजनक है।
टिकाऊ होना प्लास्टिक की खूबी थी, लेकिन अब वही इससे खतरे का कारण बन गया है। प्लास्टिक नष्ट नहीं होता है। लंबे समय तक मिट्टी या पानी में पड़े रहने पर भी प्लास्टिक गलता नहीं है। इस कारण प्लास्टिक कचरा संकट बनता जा रहा है। स्थिति यह है कि जल स्रोतों में फेंके जाने वाले प्लास्टिक कचरे के कारण पानी के माध्यम से लोगों के शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के कण पहुंचने लगे हैं। साथ ही हवा के रास्ते भी शरीर में माइक्रोप्लास्टिक पहुंचने लगे हैं। शरीर में माइक्रोप्लास्टिक के कण कैंसर समेत कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। खून में और पेट में माइक्रोप्लास्टिक के कण मिलने की बातें आम हो गई हैं।
यूरोपीय केमिकल एजेंसी के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक्स 5 मिमी से कम लंबाई के किसी भी तरह के प्लास्टिक के टुकड़े हैं। वे ब्यूटी प्रोडक्ट, कपड़े, खाद्य पैकेजिंग और इंडस्ट्रियल प्रोसेस सहित अनेक तरीकों से नेचुरल इकोसिस्टम में प्रवेश करके प्रदूषण और बीमारी का कारण बनते हैं। माइक्रोप्लास्टिक्स के दो टाइप हैं, प्राइमरी माइक्रोप्लास्टिक्स में कोई भी प्लास्टिक के टुकड़े या कण शामिल होते हैं जो पर्यावरण में प्रवेश करने से पहले ही 5.0 मिमी या उससे कम आकार के होते हैं। इनमें कपड़ों के माइक्रोफाइबर, माइक्रोबीड्स और प्लास्टिक पैलेट्स (जिन्हें नर्डल्स भी कहा जाता है) शामिल हैं। पर्यावरण में प्रवेश करने के बाद नेचुरल गैदरिंग के माध्यम से बड़े प्लास्टिक उत्पादों के टूटने से दूसरे माइक्रोप्लास्टिक्स उत्पन्न होते हैं। सेकेंडरी माइक्रोप्लास्टिक्स के सोर्सेज में पानी और सोडा की बोतलें, मछली पकड़ने के जाल, प्लास्टिक बैग, माइक्रोवेव कंटेनर, टी बैग और टायर शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, हर वर्ष दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग उपयोग होते हैं, जो सभी प्रकार के अपशिष्टों का 10 प्रतिशत है। हमारे देश में प्रतिदिन 15000 टन प्लास्टिक अपशिष्ट निकलता है, जिसकी मात्रा निरंतर बढ़ती जा रही है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पूरे विश्व में इतना प्लास्टिक हो गया है कि इस प्लास्टिक से पृथ्वी को पांच बार लपेटा जा सकता है। समुद्र में करीब 80 लाख टन प्लास्टिक बहा दिया जाता है, जिसका अर्थ है कि प्रति मिनट एक ट्रक कचरा समुद्र में डाला जा रहा है। यह स्थिति पृथ्वी के वातावरण के लिए बेहद हानिकारक हो सकती है क्योंकि प्लास्टिक को अपघटित होने में 450 से 1000 वर्ष लग जाते हैं।
सुबह उठकर ब्रश करने से लेकर दिनभर के कई कामों में हम तरह-तरह से प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं। सब्जियों की थैली से लेकर फूड्स पैक करने के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही पानी पीने की बोतल, कॉफी-चाय कप, प्लास्टिक फेस मास्क, टी बैग्स, वेट टिश्यू, वाशिंग पाउडर, घर में रंगने के लिए इस्तेमाल होने वाले कलर और कई कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में भी प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है। इन सब में ऐसा माइक्रोप्लास्टिक होता है जो आपके दिमाग तक भी पहुंच जाता है। प्लास्टिक से हमारे शरीर को कई नुकसान होते हैं, रेड ब्लड सेल्स के बाहरी हिस्से से चिपक जाते हैं और ऑक्सीजन फ्लो को पूरी तरह बाधित कर सकते हैं, जिससे शरीर के टिश्यू में ऑक्सीजन में कमी आ सकती है। इसके अलावा इससे इम्यून सिस्टम पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। यह धीरे-धीरे आपके शरीर को कमजोर बना सकता है और आपकी प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है। यह गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए भी हानिकारक हो सकता है। इसके अलावा यह फेफड़ों, हार्ट, ब्रेन, डाइजेस्टिव सिस्टम को प्रभावित करता है। माइक्रो और नेनो प्लास्टिक मानव शरीर की संरचना पर असर डाल सकते हैं।
जनरल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार 80 प्रतिशत व्यक्तियों के खून में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। रिपोर्ट में एक और बात सामने आई है कि मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक घूम सकता है और शरीर के कई महत्वपूर्ण हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है। जिसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है। वैज्ञानिकों ने इस बात पर चिंता जताई है कि अगर स्थिति यही रहती है तो यह ह्यूमन बॉडी सेल्स को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव के कारण शख्स की मौत कम उम्र में भी हो सकती है। इस शोध में 22 अलग-अलग लोगों के खून के नमूने लिए गए थे और इनमें से अधिकतर लोगों के खून में पीईटी प्लास्टिक, जो आमतौर पर पीने की बोतलों में पाया जाता है। इसमें एक-तिहाई मात्रा में पॉलीस्टाइनिन होता है, जिसका प्रयोग भोजन और अन्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसमें पॉलीइथाइलीन था, जिसका इस्तेमाल प्लास्टिक बैग बनाने में किया जाता है। माइक्रोप्लास्टिक का आकार 0.0007 एम.एम. होता है, जो शरीर में आसानी से आवागमन कर सकते हैं।
इस बात में कोई शक नहीं है कि प्लास्टिक हमारी सेहत के लिये ख़तरनाक है, ऐसे में हमें प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करने का संकल्प लेना चाहिए। मसलन प्लास्टिक के बैग्स को संभाल कर रखें। इन्हें कई बार इस्तेमाल में लाएं। प्लास्टिक के पैकेज्ड फूड से बचना होगा, प्लास्टिक की प्लेट में कोई भी भोज्य पदार्थ का प्रयोग न करें, साथ ही सतर्कता बरतनी होगी कि प्लास्टिक शरीर में किसी भी रूप में न पहुंचे।

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लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर हैं।

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