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पुरुष भी सजग रहकर टालें रोग के जोखिम

07:24 AM Jan 31, 2024 IST
पुरुष भी सजग रहकर टालें रोग के जोखिम
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महिलाओं की तरह पुरुषों को भी ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है लेकिन वे अकसर रोग के शुरुआती लक्षण नजरअंदाज करते हैं। जो प्राय: एडवांस स्टेज पर ही डिटेक्ट होता है। इसी विषय पर मेरठ स्थित कैंसर अस्पताल के डायरेक्टर एंड चीफ सर्जीकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. उमंग मित्तल से रजनी अरोड़ा की बातचीत।

पिछले दिनों फ्लोरिडा के रहने वाले 43 साल के जैक यारब्रो को अपने सीने में एक गांठ महसूस हुई। लेकिन उन्होंने इसे अनदेखा किया। उसका मानना था कि ब्रेस्ट कैंसर तो महिलाओं को होता है। कुछ महीने बाद गांठ का आकार बड़ा होने पर उसने डॉक्टर को कंसल्ट किया। डायग्नोज होने पर पता चला कि कैंसर लिम्फ नोड्स और फेफड़ों तक फैल गया था। उपचार में देरी होने के कारण रेडियल मास्टेक्टॉमी करके उसके सीने, एरिओला मसल्स और लिम्फ नोड को निकालना पड़ा। कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी लेनी पड़ी।

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रोग की आशंका

महिला हो या पुरुष- जन्म से ही उनमें छोटे ब्रेस्ट टिश्यू होते हैं। प्रोजेस्ट्रोन और एस्ट्रोजन हार्मोन्स की वजह से महिलाओं में किशोरावस्था से ही यहां टिश्यू विकसित होने लगते हैं। पुरुषों में महिलाओं की तरह टिश्यूज का विकास तो नहीं होता। लेकिन पुरुषों में ब्रेस्ट टिश्यू होते ही हैं जिनकी वजह से महिलाओं से अपेक्षाकृत कम, लेकिन ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना बनी रहती है। ब्रेस्ट कैंसर सीने की कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास और स्वस्थ कोशिकाओं का कैंसरस कोशिकाओं में बदलना है। ज्यादातर पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर की सख्त गांठ निप्पल के पीछे होती है क्योंकि ब्रेस्ट टिश्यू वहीं होता हैं। चूंकि पुरुषों में ब्रेस्ट टिश्यू बहुत कम होते हैं, जब तक उसकी गांठ का पता चलता है तब तक कैंसर सेल्स काफी फैल चुके होते हैं या एडवांस स्टेज तक पहुंच जाते हैं। जो जोखिमकारक होता है।

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ये कहते हैं आंकड़े

डब्ल्यूएचओ के अनुसार ब्रेस्ट कैंसर के कुल मामलों में पुरुषों को करीब एक प्रतिशत ही होता है। विडंबना है कि पुरुषों में होने वाले ब्रेस्ट कैंसर को लेकर जानकारी बहुत कम है। आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर की गांठ का साइज काफी बड़ा होता है, फिर भी जानकारी की कमी में 40 प्रतिशत पुरुष ब्रेस्ट कैंसर का एडवांस स्टेज में उपचार कराते हैं।
2019 में जामा ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित रिसर्च के हिसाब से ब्रेस्ट कैंसर भले ही महिलाओं में अधिक मिलता है। लेकिन जागरूकता के अभाव में समय पर इसका उपचार न कराने की वजह से मृत्यु दर महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में
अधिक है।

ये हैं जोखिम

पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर होने के कई कारण होते हैं। जैसे- उम्र का बढ़ना, मोटापे की वजह से शरीर में मेटाबॉलिक सिंड्रोम की समस्या होना, फैमिली हिस्ट्री, टेस्टोस्टरोन हार्मोन के बजाय एस्ट्रोजन हार्मोन की अधिकता, लिम्फोमा, प्रोस्टेट कैंसर जैसी बीमारी की वजह से पहले रेडिएशन थेरेपी दी गई हो, जेनेटिक डिसऑर्डर, खराब जीवनशैली, एल्कोहल का सेवन करना।

इस तरह के हैं लक्षण

खास अंग का आकार बढ़ना। निप्पल के नीचे या आसपास कड़ापन महसूस होना। ब्रेस्ट में दर्द के साथ गांठ होना। ब्रेस्ट की ऊपरी त्वचा में गड्ढा सा महसूस होना। त्वचा सख्त, पपड़ीदार या जख्म होना या रंग बदलना। ब्रेस्ट निप्पल का अंदर चले जाना। निप्पल में खुजली, रैशेज होना। बगल में लिम्फनोड में गांठ महसूस होना या दर्द होना। इसके अलावा हर समय थकान रहना, हड्डियों में दर्द या सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

निदान का तरीका

चूंकि कैंसर एक जानलेवा बीमारी है। व्यक्ति को अगर इस तरह के लक्षण महसूस हों, तो बिना देर किये ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर को जरूर कंसल्ट करना चाहिए। सबसे पहले डॉक्टर फिजिकली एग्जामिन करते हैं ताकि गांठ का पता चल सके। फिर निडल बायोप्सी यानी सूई डालकर गांठ का छोटा टुकड़ा लेकर लैब में टेस्ट किया जाता है। बायोप्सी टेस्ट से पता चलता है कि गांठ कैंसरस है या नहीं। निदान के दौरान यह भी देखा जाता है कि कैंसर सेल्स के हार्मोन रिसेप्टर्स का स्टेटस क्या है यानी पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर के पीछे महिलाजन्य हार्मोन्स की अधिकता का कितना हाथ है। जिनका इलाज हार्मोन थेरेपी में एंटी प्रोजेस्ट्रान थेरेपी से इलाज किया जा सकता है। मरीज की स्थिति के हिसाब से मेमोग्राम, अल्ट्रा साउंड, पीईटी-सिटी स्कैन, सिटी स्कैन, एमआरआई कराई जाती है। इन टेस्ट से पता चलता है कि कैंसर सेल्स से ब्रेस्ट का कितना हिस्सा प्रभावित है और कैंसर किस स्टेज का है। यानी क्या कैंसर सेल्स दूसरी ब्रेस्ट, फेफड़ों, लिवर, पेट जैसे शरीर के दूसरे अंगों तक भी फैल चुका है।

बात उपचार की

मरीज की स्थिति के आधार पर 4 तरह से इलाज किया जाता है- सर्जरी : ऑपरेशन करके कैंसर की गांठ निकाल दी जाती है। कीमोथेरेपी : इसमें कैंसर की कुछ दवाइयां सलाइन या टैबलेट के जरिये दी जाती हैं। हार्मोन थेरेपी: सेंसेटिव होने के कारण मरीज को हार्मोन थेरेपी दी जाती है। रेडिएशन थेरेपी: इसमें हाई एनर्जी एक्स-रे या गामा रेज़ से कैंसर टिशू को जला दिया जाता है। जरूरी है कि ब्रेस्ट कैंसर के प्रति सतर्क रहें। स्वयं परीक्षण करते रहें और कोई आशंका हो, तो नजरअंदाज न करें। पुरुषों में शुरुआत में ही कैंसर के लक्षणों को पहचानना और तुरंत डॉक्टर को कंसल्ट करना फायदेमंद है। इसके साथ ही स्वस्थ व सक्रिय जीवनशैली रखें, पौष्टिक आहार लें, निकोटिन या एल्कोहल के सेवन से बचें, समय पर सोएं-जागे, एक्टिव रहें, भरपूर नींद लें।

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