मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
रोहतककरनालगुरुग्रामआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

कर्म से सार्थक जीवन

06:57 AM Dec 30, 2023 IST
Advertisement

रूस के प्रतिष्ठित विचारक टॉलस्टॉय ने यूरोप यात्रा के दौरान देखा कि उनके लिखे साहित्य से बड़े-बड़े बुद्धिजीवी प्रभावित हैं। अपनी आत्मकथा ‘कन्फेशन’ में उन्होंने लिखा है, ‘प्रतिष्ठा से पुलकित मेरे मन में यह जिज्ञासा पैदा हुई कि कीर्ति, धन, ऐश्वर्य पाकर क्या मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है? मैं विचार करता हूं कि क्या ये सभी चीजें मृत्यु को रोक सकती हैं? मनुष्य के जीवन की सार्थकता क्या है? ये प्रश्न मेरे मन को झकझोरते रहते हैं।’ टॉलस्टॉय ने गीता और अन्य धर्मग्रंथों का अध्ययन किया था। उन्हें अनुभूति होने लगी कि जीवन की सार्थकता कर्म में है। एक किसान मौसम की चिंता किए बिना प्रत्येक दिन खेत में शारीरिक श्रम करता है। यदि मौसम खराब होने के कारण फसल खराब होती है, तब भी वह अपने परिश्रम पर पछतावा नहीं करता है। वह बिना घबराए सभी प्रकार के कष्ट सहने की क्षमता रखता है। टॉलस्टॉय ने कर्म को ही मानव का सच्चा धर्म माना है। वह भारतीय संस्कृति के प्रमुख सूत्रों, सत्य, अहिंसा, करुणा की भावना से बहुत प्रभावित रहे हैं।

प्रस्तुति : सुरेन्द्र अग्निहोत्री

Advertisement

Advertisement
Advertisement