आत्मतत्व की शुद्धि का मंत्र देती मौनी अमावस
राजेंद्र कुमार शर्मा
शास्त्रों में वर्णित है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है। हृदय से की गई हरि भक्ति ही वास्तविक भक्ति है।
माघ मास की अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदियों में देवताओं का निवास होता है इसलिए इस दिन गंगा और संगम स्नान का विशेष महत्व है। यह मास भी कार्तिक के समान पुण्य मास है। इसी कारण भक्तजन एक मास तक गंगा तट पर कुटिया बनाकर गंगा स्नान व ध्यान करते है।
संगम स्नान का महत्व
संगम में स्नान के संदर्भ में एक अन्य कथा का भी उल्लेख आता है, जब सागर मंथन से भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए उस समय देवताओं एवं असुरों में अमृत कलश के लिए खींचा-तानी शुरू हो गयी इससे अमृत की कुछ बूंदें छलक कर प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में जा गिरीं। यही कारण है कि यहां की नदियों में स्नान करने पर अमृत स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
कैसे बढ़ाते हैं पुण्य
मान्यता है कि यदि मौनी अमावस्या अगर सोमवार के दिन पड़ती है, तब इसका महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। और सोमवार के साथ महाकुम्भ भी लगा हो तब इसका महत्व अनन्त गुणा हो जाता है।
शास्त्रों में कहा गया है सतयुग में जो पुण्य तप से मिलता है, त्रेता में ज्ञान से, द्वापर में हरि भक्ति से और कलियुग में दान से, वही पुण्य माघ मास में संगम स्नान से हर युग में प्राप्त होता है। इस दिन को पवित्र नदियों में स्नान के पश्चात अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन, गौ, भूमि, तथा स्वर्ण दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है।
माघ अमावस को मौनी अमावस्या
इस तिथि को मौनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है अर्थात् मौन अमावस्या। चूंकि इस व्रत में व्रत करने वाले को पूरे दिन मौन व्रत का पालन करना होता इसलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है। इसी तिथि को संतों की भांति चुप रहें तो उत्तम है। हृदय के भीतर हरि जाप निरंतर चलते रहना चाहिए। यही है आत्म तत्व की शुद्धता का मूल मंत्र। अगर संभव नहीं हो तो अपने मुख से कोई भी कटु शब्द न निकालें।
किस देव को समर्पित
इस तिथि को भगवान विष्णु और शिव जी दोनों की पूजा का विधान है। वास्तव में दोनों एक ही हैं जो भक्तों के कल्याण हेतु दो स्वरूप धारण करते हैं, इस बात का उल्लेख स्वयं भगवान ने किया है। इस दिन पीपल के पेड़ में अर्घ्य देकर परिक्रमा की जाती है और दीप दान करते हैं। साल में यही एकमात्र ऐसी अमावस्या है जिसमें मौन व्रत कर जप, तप, पूजा पाठ करने से पितृ, शनि दोष से छुटकारा मिलता है।
क्या करें
इस दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान करें। यदि आप गंगा स्नान नहीं कर सकते हैं, तो पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
स्नान के बाद सूर्य देवता को अर्घ्य जरूर दें। ध्यान रहे स्नान करने से पहले तक कुछ बोलें नहीं।
मौनी अमावस्या के दिन ज्यादा से ज्यादा ध्यान, प्रार्थना व अन्य धार्मिक क्रिया करें। इस दिन दान जरूर करें। जरूरतमंद लोगों की मदद करें। नि:स्वार्थ कार्य करना इस दिन शुभ फलदायी होता है। मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाएं ताकि शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध हो जाएं।
क्या वर्जित
मौनी अमावस्या का उपवास करने वाले को शृंगार नहीं करना चाहिए, पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। तामसिक भोजन का त्याग करें, देर तक न सोएं, स्नानादि के पश्चात ही भोजन करें।
अमृत योग दिवस
हिन्दू धर्म में गंगा को सबसे पवित्र नदी माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा का जल अमृतमय हो जाता है। इस विश्वास के कारण, हिन्दू पंचांग में मौनी अमावस्या का दिन गंगा स्नान के लिये सबसे उपयुक्त दिन होता है। प्रयागराज में मौनी अमावस्या को गंगा स्नान दिवस को अमृत योग दिवस और कुम्भ पर्व दिवस के रूप में जाना जाता है। साधक पूरे दिन एक भी शब्द का उच्चारण न करते हुए, पूरे दिन उपवास का पालन करते हैं। मान्यता है इससे पितृदोष और शनि दोष से राहत मिलती है।
शुभ मूहर्त
पंचांग के अनुसार मौनी अमावस्या तिथि की शुरुआत 9 फरवरी को सुबह 8 बजकर 2 मिनट से होगी। अगले दिन 10 फरवरी को सुबह 4 बजकर 28 मिनट पर इसकी समाप्ति होगी। हिंदू धर्म में व्रत, त्योहार सूर्योदय तिथि से मान्य होता है। मौनी अमावस्या की तिथि 9 फरवरी को सूर्योदय बाद शुरू हो रही है लेकिन इस पूरे दिन अमावस्या तिथि रहेगी। ऐसे में मौनी अमावस्या का स्नान, पूजा-पाठ 9 फरवरी को करना उत्तम होगा।