आंतरिक सुरक्षा के लिए सबक है मणिपुर संकट
बीएल वोहरा
मणिपुर में मैतेयियों पर हमला करने के लिए कुकी विद्रोहियों द्वारा रॉकेट और बम ले जाने में सक्षम ड्रोनों का इस्तेमाल किया जाना, सूबे की अशांति में एक नया खतरनाक आयाम दर्शाता है। इनका इस्तेमाल न केवल मैतेयी बल्कि पूर्वोत्तर के अन्य उग्रवादी संगठनों के अलावा जम्मू-कश्मीर एवं भारत भर में सक्रिय उग्रवादियों, विद्रोहियों, नक्सलियों और अंदरूनी-बाहरी ताकतों को भी नया तरीका सुझाएगा।
जहां इन ड्रोनों का इस्तेमाल ज्यादातर हमास और हिजबुल्लाह जैसे अत्यधिक संगठित उग्रवादी समूहों द्वारा इस्राइल के खिलाफ किया जाता है वहीं इस्राइल, रूस और यूक्रेन जैसे देशों की सेना भी युद्धों में करती आई हैं। लेकिन अब अपराधियों के हाथों में, ये घातक हथियार का रूप धर सकते हैं।
मणिपुर सरकार, सुरक्षा बल और केंद्रीय सरकार, यह सभी, हिंसा की अप्रत्याशित ताजा लहर से घिरे पाए गए हैं। या तो खुफिया एजेंसियां इस इजाफे का अनुमान लगाने में विफल रहीं या फिर प्रतिक्रिया यथेष्ट नहीं रही, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि, केंद्र सरकार के पास इस खतरे का मुकाबला करने के लिए तमाम संसाधन हैं। सेना, असम राइफल्स और भारतीय वायु सेना को तुरंत एकीकृत अभियान से इस नए खतरे पर लगाम लगानी चाहिए। उम्मीद है कि वे जल्द ही ऐसा करेंगे भी। लेकिन मणिपुर पुलिस को प्रशिक्षित करना और सुसज्जित करना एक चुनौती होगी, क्योंकि यह पूरी तरह से अलग खेल है। राज्य पुलिस की विगत कारगुजारी का लेखा-जोखा खराब रहने के कारण उसे पुनर्गठित करना होगा। आंतरिक और बाहरी, दोनों तरह की खुफिया एजेंसियों को भी अपने काम में काफी चुस्ती लानी होगी।
कुकी उग्रवादी हाल के हमलों को अंजाम देने में इसलिए सक्षम हुए हैं क्योंकि उन्हें नशा माफिया से भारी मदद मिलती है, जो पिछले साल से मणिपुर में चल रही उथल-पुथल के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। चूड़ाचांदपुर और आसपास के इलाकों में अफीम की खेती में उछाल आया है जो कि मुख्य रूप से कुकी करते हैं- क्योंकि म्यांमार में सेना द्वारा बढ़ाए दबाव के कारण उनके रिश्तेदारों की मणिपुर में आमद हुई है। मणिपुर तस्करी के लिए कुख्यात ‘गोल्डन ट्राइंगल’ के छोर पर स्थित है और इस कारोबार का रास्ता भारत एवं अन्य देशों के लिए यहीं से होकर गुजरता है। इसलिए, नशा माफिया मणिपुर पर संपूर्ण नियंत्रण चाहता है। कुकियों की गतिविधियों की वित्तीय सहायता करने को उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है। पिछले वर्ष मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया वह आदेश, जिसमें राज्य सरकार से मैतेयियों के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर विचार करने और आगे यह सिफारिश केंद्र सरकार को पहुंचाने के लिए कहा गया था, इसका उपयोग जान-बूझकर अर्थ गलत पेश करके कुकी-मैतेयी के बीच संघर्ष की चिंगारी भड़काने में किया गया।
कुकी अब न केवल एक अलग राज्य चाहते हैं, बल्कि एक अलग देश, ‘कुकीलैंड’ चाहते हैं, इसमें वे संपूर्ण पूर्वोत्तर और बांग्लादेश का कुछ इलाका बताते हैं। दूसरी ओर, नागा लोग भी अपने लिए अलग राष्ट्र के रूप ‘ग्रेटर नागालैंड’ बनाना चाहते हैं, जिसमें मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार के कुछ हिस्से दर्शाते हैं। फिर, असम का ‘उल्फा’ (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम) भी यही कुछ चाहता है।
चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान अपने हितों की पूर्ति हेतु इन टकरावों को हवा दे रहे हैं। चीन पहले ही अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताता रहा है। गौरतलब है कि 1962 में चीन ने भारत पर दो तरफ से हमला किया था–एक था, नॉर्थईस्ट फ्रंटियर एजेंसी इलाके में (जिसमें फिलहाल अरुणाचल प्रदेश और असम के कुछ हिस्से हैं) और दूसरा मोर्चा लद्दाख क्षेत्र के आसपास खोला था। जिस वक्त पाकिस्तान वजूद में आ रहा था, तब भी कुछ मुस्लिम नेताओं की मांग थी कि पूर्वोत्तर पूर्वी पाकिस्तान में शामिल किया जाए। उनके मुताबिक असम इस नए देश का ‘नैसर्गिक विस्तार’ है। यह विचार अभी भी बांग्लादेश में कहीं न कहीं जिंदा है।
निस्संदेह, पूर्वोत्तर भारत की नाजुक रग है। कई शक्तिशाली देशों की भारत को कमज़ोर करने में दिलचस्पी है। केंद्र सरकार द्वारा सालों तक पूर्वोत्तर, विशेषकर मणिपुर, की उपेक्षा करना एक तथ्य है। पिछले साल शुरू हुए संघर्ष को ढंग से नियंत्रित करने में विफलता ने दुश्मनी निभाने वाली शक्तियों को उत्साहित किया है। इसलिए ये तत्व अब पूर्वोत्तर के अलावा संपूर्ण भारत को अस्थिर करने के लिए एकजुट होने लगे हैं।
मणिपुर में बिगड़ते हालात- जिसने न केवल राज्य के निवासियों बल्कि पूरे देश के लोगों को परेशान कर रखा है, चिंता का विषय है। अन्य देश अवश्य ही भारत के घटनाक्रम पर नज़र रखे हुए होंगे। वे इंतजार में होंगे कि देखें भारत इससे कैसे निपटता है। भारत जैसी उभरती हुई शक्ति को स्थिति अपने हाथ से निकलना और अधिक गवारा नहीं करना चाहिए। वक्त आ गया है कि देश अपनी पूरी ताकत से जवाब दे और इस क्षेत्र के मामलों में अधिक दिलचस्पी लेकर काम करे।
कुकी उग्रवादियों की गतिविधियों पर काबू पाना, हज़ारों हथियारों की बरामदगी एवं कुकी-मैतेयी के बीच शांति बहाली फिलहाल सर्वोच्च प्राथमिकता हो। इसके अलावा, संकट के हल में, तमाम राजनीतिक, सैन्य, कूटनीतिक, आर्थिक और न्यायिक उपायों का उपयोग किया जाए। सामान्य स्थिति बहाल होने तक मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए। राजनीतिक नेतृत्व में बदलाव भी इस क्रम में जरूरी है। नौकरशाही एवं पुलिस तंत्र में भी आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है। केंद्र सरकार द्वारा कड़ी निगरानी और सहायता जरूरी है ताकि चीजों को और अधिक बिगड़ने से रोकना सुनिश्चित हो सके।
केंद्रीय स्तर पर, आंतरिक सुरक्षा के लिए एक अलग से मंत्रालय की स्थापना किए जाने की सख्त जरूरत है। आखिरकार, गृह मंत्रालय (एमएचए) के पास बहुत सारे कामों का बोझ है। आंतरिक सुरक्षा की निरंतर निगरानी वक्त की दरकार है। अन्य मुद्दों के अलावा, पूर्वोत्तर, जम्मू-कश्मीर, नक्सल प्रभावित राज्यों की स्थिति, विदेशों में अलगाववादियों की गतिविधियां, साइबर अपराध, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से उभर रहे नए सुरक्षा खतरे, बांग्लादेश से आव्रजन इत्यादि मामलों में निरंतर ध्यान बने रहना एक आवश्यकता है। भारत जैसे विशाल देश में, जहां कई हिस्से समस्याग्रस्त हैं, गृह मंत्रालय देश की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय को अपने रोजमर्रा के अन्य कई कामों में एक रूप में लेना गवारा नहीं कर सकता।
लेखक केंद्रीय गृह सचिव और मणिपुर में राज्यपाल रहे हैं।