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ड्रग कनेक्शन भी है मणिपुर संकट का

06:56 AM Aug 04, 2023 IST
मधुरेन्द्र सिन्हा

जहां पंजाब में ड्रग की समस्या दो-तीन दशक पुरानी है, वहीं मणिपुर में इसका इतिहास बेहद पुराना है। तीन देशों चीन, बांग्लादेश और म्यांमार की सीमाएं इससे लगती हैं। इसमें म्यांमार ऐसा देश है जो अफीम की खेती और उसकी तस्करी के लिए बदनाम रहा है। यह उस कुख्यात ड्रग तस्करी क्षेत्र का हिस्सा है जिसे अंतर्राष्ट्रीय जगत में गोल्डन ट्रायंगल कहा जाता है। इसमें लाओस, थाईलैंड और म्यांमार तीन देश शामिल हैं। इसका इतिहास बहुत पुराना है। दो नदियों रूआक और मेकॉन्ग के संगम के बीच के दस लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ यह इलाका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा अफीम उत्पादक क्षेत्र है। यहां से अफीम तस्करी के जरिये पहले चीन में भी पहुंचाई जाती थी लेकिन कम्युनिस्टों के सत्ता पर काबिज होने के बाद से उसकी तस्करी उस देश में कम हो गई। लेकिन भारत, बांग्लादेश और थाईलैंड में बाकायदा इसकी सप्लाई होती रही।
साठ के दशक में तो वियतनाम युद्ध के दौरान तस्करी से वहां पहुंचा हुआ अफीम अमेरिकी सैनिकों में बेहद पॉपुलर हो गया था। इतना ही नहीं, अफीम और हेरोइन भी वहां अमेरिकी युद्धक विमानों में, जो युद्ध का सामान ट्रांसपोर्ट करते थे, भरकर कैलिफोर्निया भेजा जाने लगा। इससे तस्करों के वारे-न्यारे हो गये। इस खेल में कई बड़े-बड़े गैंग सक्रिय हो गये और डॉलर बरसने लगे। लेकिन वियतनाम युद्ध खत्म होते ही यह धंधा चौपट हो गया।
कालांतर में तस्करों ने भारत की ओर ध्यान लगाया। बड़े पैमाने पर अफीम भारत आने लगी। यह इलाका बेहद दुर्गम है, इसके बावजूद तस्कर उधर से आसानी से आने लगे। लेकिन बाद में मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में अफीम की खेती होने लगी। दूर-दराज के इलाकों में अफीम के खेत लहलहाने लगे। पहले तो सरकारें देखकर इसे अनदेखा कर देती थीं लेकिन बीरेन सिंह की भाजपा सरकार ने इस पर निशाना साधा। उस समय यह पता चला कि कुल 15,400 एकड़ भूमि में अफीम की खेती होती है। यह अफीम हेरोइन बनाने के काम में आता है और वहां कुछ इलाकों में बनाया भी जाता है। इसके अलावा उपयुक्त ज़मीन के कारण मणिपुर में बढ़िया क्वालिटी का अफीम पैदा होता है। यहां अफीम की खेती अन्य अनाजों या सब्जियों की तुलना में आसानी से होती है और उससे भी बड़ी बात यह है कि इसकी फसल साल में दो बार होती है।
दरअसल, इस बार जब फसल कटने का समय आया तो नारकोटिक्स विरोधी एजेंसियों ने फसलें नष्ट करनी शुरू कर दीं जिससे हजारों एकड़ में लगी फसल बर्बाद हो गई। जिसका गुस्सा इस जातीय हिंसा में देखने को मिला। मणिपुर में नारकोटिक्स विरोधी एजेंसियों ने हजारों एकड़ में लगी अफीम की फसल को जलाना शुरू कर दिया, इससे स्थानीय लोगों में सरकार के खिलाफ काफी रोष पैदा हो गया। बाद में चलकर जातीय हिंसा का यह एक बड़ा कारण भी बना और मैतेई-कुकी तथा अवैध रूप से बसे मुिस्लमों के बीच दंगों का भी।
वहां हालत ऐसी हो गई है कि सरकार को दो-दो मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है। एक ओर तो सरकारी अमला अवैध अफीम की खेती को नष्ट करता फिर रहा है तो दूसरी ओर म्यांमार से बड़े पैमाने पर आ रहे ड्रग्स को, जिसमें अफीम भी है। केंद्रीय और राज्य का नारकोटिक्स विभाग राज्य में अफीम आने से रोकने की कोशिश कर रहा है। लेकिन इस खेल में बहुत से भागीदारों के होने के कारण यह जटिल हो गया है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है म्यांमार, जहां बड़े पैमाने पर अफीम की खेती होती है और नशीली दवाओं का कारोबार भी होता है। भारत और म्यांमार की सीमा 400 किलोमीटर लंबी है और दुर्गम भी। यही कारण है कि वहां न केवल नशीली दवाओं के तस्कर ही नहीं, सोने के तस्कर भी सक्रिय हैं। नागालैंड, मणिपुर वगैरह में आतंकी कार्रवाई करने के बाद उग्रवादी भी म्यंमार भाग जाते हैं। भारत चाह कर भी उनके खिलाफ कुछ कर नहीं पाता। वहां सैनिक शासन है और सेना नशीली दवाओं के कारोबार में भी दखल रखती है। इसलिए तस्करों को भारत अफीम भेजने में आसानी होती है जहां से पैसे मिलते हैं जिसका हिस्सा वहां के सेना के अधिकारियों तक पहुंचता है। ज़ाहिर है कि इस आकर्षक धंधे में सभी आना चाहते हैं।
दिलचस्प बात यह है कि ज्यादातर कुकी मणिपुर के मूल निवासी नहीं है, फिर भी वे अब जनसंख्या के बल पर अपना अलग प्रशासन चाहते हैं। यह भी झगड़े की एक बड़ी वज़ह है। कुकी लड़ाकू किस्म के कबाइली हैं और उनकी मिजो और नागाओं से झड़पें होती रहती हैं। कई बार तो उनकी लड़ाई कई-कई महीनों तक चली है। ज्यादातर कुकी चिन म्यांमार से अवैध रूप से भारत आये थे और बड़े पैमाने पर मणिपुर में बस गये थे। अभी भी उनका वहां से आना जारी है। वहां के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में उन्हें खोज पाना आसान भी नहीं है।
भारत के पूर्वोत्तर राज्य मैदानी राज्यों की तरह नहीं हैं। यहां के लोग अलग हैं और समस्याएं भी। यहां बरसों से जमकर भ्रष्टाचार होता रहा है और तस्करी भी खूब होती है। म्यांमार से नशीले पदार्थों की तो तस्करी होती ही है, चीन से कपड़ों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की भी। अफीम उपजाने के इस खेल में बहुत से तत्व हैं जिनमें कई सत्ता के नजदीक होने के कारण बचते रहे हैं। यहां तक कि पुलिस वाले और कई कारोबारी भी इस आसान तरीके से पैसा कमाने में जुटे हुए हैं। इनमें से कई पकड़े भी गये हैं लेकिन धंधा है कि बदस्तूर चलता रहता है। अफीम ने मणिपुर को काफी हद तक जंगलविहीन बना दिया है क्योंकि सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जंगल काटकर वहां अफीम की अवैध खेती की जा रही है। इससे पर्यावरण को धक्का तो लग रहा है, इस सुरम्य राज्य की सुंदरता घटती जा रही है।
मणिपुर में थोड़े समय में शांति हो जायेगी लेकिन सवाल यह है कि क्या इसके साथ ही झगड़े की जड़ अफीम की खेती तथा तस्करी मिट जायेगी? इस गंभीर समस्या पर देश के नीति-नियंताओं को गंभीरता से विचार करना होगा।

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लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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