मुख्यसमाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाब
हरियाणा | गुरुग्रामरोहतककरनाल
आस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकीरायफीचर
Advertisement

दुर्भावना से अहित

06:40 AM Sep 07, 2024 IST

एक राजा ने बाग के समीप एक टूटा-फूटा मकान देखा, जो बगीचे की सुंदरता को बिगाड़ रहा था। राजा ने सेवक को वह मकान हटाने की आज्ञा दी। उस मकान में श्याम नाम का एक गरीब आदमी रहता था, जो जंगल से चंदन की लकड़ियां लाकर अपने परिवार का पेट पालता था। लकड़हारा दौड़ा-दौड़ा मंत्री के पास पहुंचा और उसको मकान गिराने वाली बात बताई। मंत्री ने लकड़हारे से पूछा, ‘क्या तुम्हारे मन में कभी राजा के प्रति कोई बुरा ख्याल आता रहा है?’ वह कांपता हुआ बोला, ‘मंत्री जी, मेरे मन में सदा यह विचार आता था कि जिस दिन राजा मरेगा उस दिन राजा की अंत्येष्टि के लिए मेरी सारी चंदन की लकड़ियां एक ही बार में बिक जाएंगी, जिससे मुझे काफी लाभ होगा।’ यह सुनकर मंत्री ने उससे कहा कि, ‘यह राजा के लिए जो दुर्भावना वर्षों से तुम्हारे मन में पल रही थी, वह पलटकर अब तुम्हारे ऊपर ही आन पड़ी है। इससे राजा का तो कुछ बिगड़ा नहीं पर तुम्हारा अहित जरूर होने वाला है।’ लकड़हारे की आंखें खुल गईं। उसने उसी दिन से अपने नकारात्मक विचारों को छोड़कर सभी के कल्याण की भावना मन में रखनी शुरू कर दी। एक तय अवधि के बाद धनात्मक विचारों का परिणाम यह हुआ कि अगली बार दौरा करते समय जब राजा उस मकान के पास से गुजरा तो उसने मकान को ध्वस्त कराने के विचार को नहीं दोहराया।

Advertisement

प्रस्तुति : राजकिशन नैन

Advertisement
Advertisement