कम आय वर्ग को भी मिले जीडीपी वृद्धि का लाभ
मधुरेन्द्र सिन्हा
इस महीने के तीसरे हफ्ते में वह खुशनुमा खबर आई जिसकी सरकार को भी उम्मीद नहीं थी। भारत के सकल विकास की दर (जीडीपी) 2022-23 की चौथी तिमाही (जनवरी से मार्च) में 6.1 फीसदी रही जबकि तीसरी तिमाही में यह महज 4.4 फीसदी थी। बाजारों में अनुमान था कि चौथी तिमाही में हमारी अर्थव्यवस्था 5.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी। लेकिन केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (एनएसओ) के आंकड़ों ने वित्त मंत्री के चेहरे की मुस्कान वापस ला दी। वित्त वर्ष 2022-2023 में विकास की दर 7.2 फीसदी रही।
जीडीपी के इन शानदार आंकड़ों ने निराशावादी आर्थिक विशेषज्ञों की भविष्यवाणी को खारिज कर दिया। इनमें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी थे जिन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि अगर यह 5 फीसदी की दर से भी बढ़ जाये तो भाग्यशाली होगा। इन आंकड़ों ने सत्तारूढ़ दल को बहुत बड़ा मौका दिया अपने आलोचकों की धुलाई करने का। साथ ही मोदी सरकार को एक विश्वास दिलाया कि उसकी आर्थिक नीतियां सही हैं। ध्यान रहे कि जनवरी महीने में अपनी रिपोर्ट में दुनियाभर में आर्थिक मंदी का हवाला देते हुए आईएमएफ ने कहा था कि 2023 में भारत की जीडीपी की दर 6.1 फीसदी रहेगी जो दुनिया में सबसे ज्यादा होगी। उसकी यह भविष्यवाणी सही निकली।
इस खबर की खास बात यह रही कि कृषि क्षेत्र ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। पूरे साल में उसकी विकास दर 4 फीसदी की रही। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बढ़ोतरी पिछले साल की इसी तिमाही के 0.6 से उछलकर 4.5 फीसदी हो गई, जिसने जीडीपी को महत्वपूर्ण बढ़ावा दिया। सर्विस सेक्टर 9.5 फीसदी की दर से बढ़ा जबकि हॉस्पिटेलिटी सेक्टर ने भी बढ़िया प्रदर्शन किया। हवाई यात्रा करने वालों की संख्या में भी महत्वपूर्ण बढ़ोतरी हुई, जिससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है। कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में 10 फीसदी से भी ज्यादा की तेजी रही और इसने ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा दिया है। कमर्शियल बैंकों की स्थिति भी ठीक रही और ऋण के उठाव में पिछले साल अप्रैल की तुलना में 2.8 गुना बढ़ोतरी देखी गई। यानी कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था के हर हिस्से में तेजी रही, जिससे यह सकारात्मक परिणाम सामने दिख रहे हैं। इतना ही नहीं, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मोरगैन स्टेनली ने अपनी रिपोर्ट इंडिया इक्विटी स्ट्रैटेजी एंड इकोनॉमिक्स : हाउ इंडिया हैज ट्रांसफोर्म्ड इन लेस दैन ए डिकेड में कहा है कि भारत ने पिछले दस सालों में बहुत तरक्की की है और यह एशिया में तरक्की का वाहक बनेगा। उसने कहा है कि अगले दशक के अंत में भारत की जीडीपी 2032 तक 7.9 खरब डॉलर की होगी। फिलहाल यह 3.1 खरब डॉलर की है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की पर कैपिटा इनकम अभी के 2200 डॉलर से बढ़कर 2032 तक 5,200 डॉलर हो जायेगी।
जीडीपी की दर में यह बढ़ोतरी उत्साहवर्धक है। लेकिन भविष्य की चिंताएं भी सामने हैं। सबसे बड़ी चिंता निर्यात की है। हालांकि हमारा आयात भी घटा है लेकिन निर्यात उस स्तर पर नहीं आया है जिसे देखकर उत्साहित हुआ जा सके। रूस-यूक्रेन युद्ध तथा जर्मनी जैसे कुछ देशों में मंदी का आना भारत के लिए चिंता का विषय है। हमारे निर्यात का सबसे बड़ा हिस्सा अमेरिका को जाता है लेकिन वहां की आर्थिक स्थिति चरमराई हुई है और मंदी की आहट गाहे-बगाहे सुनाई देती रहती है।
लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों तथा कम इनकम ग्रुप के लोगों की मांग में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। यह वर्ग बहुत बड़ा है। यहां देखने लायक बात है कि भारतीय अर्थव्यवस्था खपत पर आधारित है और जितनी खपत बढ़ेगी उतना ही ग्रोथ होगा और इस बार ऐसा ही हुआ। खपत बढ़ने से ही कारखानों के पहिये तेजी से दौड़ने लगे हैं। लेकिन अभी जो आंकड़े आ रहे हैं वे बता रहे हैं कि कम इनकम ग्रुप वाले लोग कम खरीदारी कर रहे हैं। इसका उदाहरण है। कम कीमत वाली कारों और बाइक की बिक्री में अभी भी तेजी नहीं आई है जबकि महंगी कारों तथा महंगी बाइक की बिक्री तेजी से बढ़ी। अगर हम कोविड आने के पहले यानी 2018-19 के आंकड़े देखें तो पायेंगे कि अभी तक इनकी बिक्री उस स्तर पर नहीं पहुंची। उदाहरण के लिए एंट्री लेवल स्कूटरों की बिक्री अभी 2018-19 की तुलना में 28 फीसदी कम है। इसी तरह मोटरसाइकिलों की बिक्री में 38 फीसदी गिरावट आई है। इतना ही नहीं, इनके निर्यात में भी कमी आई है।
इस तरह की गिरावट सस्ती कारों की बिक्री में भी आई है। यह ट्रेंड चिंताजनक है। भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता संघ (सियाम) के अनुसार एंट्री लेवल कारों की बिक्री अपने चरम से गिर गई है और महंगी गाड़ियों खासकर एसयूवी की बिक्री बढ़ गई है। यह जताता है कि कम आय वर्ग के लोगों की क्रय शक्ति घटी है। खपत का ऐसा ही कुछ दृश्य मोबाइल फोन मार्केट में देखने को मिल रहा है जहां महंगे स्मार्टफोन की बिक्री तो बढ़ी है लेकिन सस्ते की बिक्री 2021 की तुलना में 10 फीसदी कम है। इसकी तुलना में एप्पल आई फोन तथा महंगे फोन की बिक्री तेजी से बढ़ी है जबकि सस्ते फोन की बिक्री पिछले पांच सालों से जस की तस है। इससे पता चलता है कि उस वर्ग के लोगों की क्रय क्षमता में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।
एक और चिंता अल नीनो की भविष्यवाणी ने बढ़ा दी है। विदेशी मौसम विशेषज्ञों द्वारा बताया जा रहा है कि इस साल यह आ सकता है। इससे मानसून पर असर पड़ेगा और खेती के सीजन में बारिश कम हो सकती है। इसका असर हमारी खेती पर पड़ेगा और अनाजों का उत्पादन कम होगा, जिससे कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर घट जायेगी, जिसने इस बार हमारी अर्थव्यवस्था को तेजी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
देश में महंगाई की दर घटी है। लेकिन कई जरूरी चीजों के दाम बढ़े हैं, उनके कारण भी कम इनकम ग्रुप के लोगों की क्रय शक्ति घटी है। स्कूलों में फीस का बढ़ना आम बात है। इसका भी असर मध्यम वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति पर पड़ रहा है। महंगाई का असर एफएमसीजी की बिक्री पर पड़ा है और कम आय के लोग इनकी कम खरीदारी कर रहे हैं।
चिंताएं तो हैं लेकिन कुल मिलाकर हालात ऐसे नहीं हैं कि बहुत चिंता की जाये क्योंकि काफी चीजें ऐसी हैं जो न तो सरकार के हाथों में है और न ही खरीदारों के। इसलिए सरकार उन चीजों पर ज़ोर लगाये जो उसके बस में है- मसलन निर्यात और ग्रामीण आय। महंगाई को नियंत्रण में रखना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती रहेगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।