मुहब्बत की दुकान में रेनोवेशन की जरूरत
आलोक पुराणिक
कारोबार धंधे का यह जलवा है कि राजनीतिक विमर्श भी अब कारोबार धंधे की भाषा में हो रहा है। राहुल गांधी की पॉलिटिक्स में मुहब्बत की दुकान का बड़ा रोल रहा है। पर उनकी पार्टी हाल के विधानसभा चुनावों में सिर्फ तेलंगाना के चुनाव को शानदार तरीके से जीत पायी। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में कांग्रेस का असर ज्यादा देखने को नहीं मिला। मुहब्बत की दुकान क्या ज्यादा नहीं चली, ऐसा माना जाये क्या। दुकान का रेनोवेशन जरूरी है क्या। मुहब्बत की दुकान बहुत कामयाब तरीके से हर साल वैलेंटाइन-डे पर चलायी जाती है, इसमें चॉकलेट, टैडी बीयर, वैलेंटाइन गिफ्ट वगैरह की धुआंधार बिक्री होती है। मुहब्बत की दुकान ग्लोबल है वैलेंटाइन-डे के आइटम दुनियाभर में बिकते हैं।
मुहब्बत की दुकान हर फरवरी में चलती है। पर चुनावों में हाल के यह सिर्फ तेलंगाना में चली। क्या माना जाये कि मुहब्बत करने वाले तेलंगाना में ही हैं। लेकिन मुहब्बत की दुकान उत्तर भारत में बिलकुल न चले, यह बात मुहब्बत प्रेमियों के लिए चिंता की बात है। चिंता यह भी है कि उत्तर भारत के मुहब्बत प्रेमी तेलंगाना की तरफ चल निकलें। माइग्रेशन काम के लिए, धंधे के लिए होता है, पर माइग्रेशन मुहब्बत के लिए, यह इतिहास में पहली बार दर्ज होगा।
मुहब्बत और दुकान दोनों अलग-अलग तरह के तत्व हैं। हालांकि, अब मुहब्बत में दुकान का तत्व बहुत ज्यादा आ गया है। पर महाकवि कबीर दास बहुत पहले कह गये थे-प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए यानी प्रेम न तो बाड़ी में उगता या हाट में बिकता। यानी मुहब्बत की तो दुकान हो ही नहीं सकती। पर मुहब्बत की दुकान की बात जिसने कही, उनका भी अपना महत्व है। वैसे कबीरदास की सुनकर कोई फायदा वगैरह नहीं होना। नेताओं से सैटिंग-गैटिंग करके फायदा हो जाता है। सो हम तो नेताओं की सुनेंगे। बाजार का ही उसूल है जहां फायदा हो, वहां की सुन लेनी चाहिए। कल को कोई संकट परेशानी हो जाये तो नेता बचा सकता है, कबीरदास तो न आयेंगे बचाने।
कई बार होता यह है कि आइटम तो ठीक होता है, पर उसे बेचने वाले डीलर सही नहीं होते। लोकल डीलरों को बदलकर कई बार सेल बढ़ जाती है। दुकान मॉडल अब सब जगह काम कर रहा है। पॉलिटिक्स से लेकर हर जगह तक दुकान मॉडल काम कर रहा है। दुकान से ही पॉलिटिक्स चल रही है, दुकान से युद्ध चल रहा है। गाजापट्टी में युद्ध तेज हो गया है। हथियारों की दुकान चल निकली है। मुहब्बत की दुकान चले या नहीं, हथियारों की दुकान हमेशा चलती है। वैलेंटाइन-डे के कारोबारी बताते हैं कि वैलेंटाइन कारोबार फरवरी में होता है। पर हथियारों की दुकान हमेशा ही चलती है। हथियार कंपनियां इतनी उच्च स्तरीय कारोबारी हैं कि वो डिमांड पैदा कर सकती हैं।
कबीरदास ने कहा था प्रेम ना हाट बिकाय-तब शायद उन्हें अंदाज ना था कि कई शताब्दियों के बाद वैलेंटाइन आइटम दे दनादन बिकेंगे।