भगवान राम ने हरिद्वार, गया और पिहोवा में किया था दशरथ का श्राद्ध
कौशल सिखौला
मां सीता और प्रभु राम जब वनवास में थे तो उनके वियोग में महाराजा दशरथ का निधन हो गया था। वन से लौटने के बाद गुरु वशिष्ठ की आज्ञा पर राम और मां सीता पिता का पितृ श्राद्ध करने हरिद्वार सहित तीन स्थानों पर गए। हरिद्वार, बिहार स्थित गया और कुरुक्षेत्र के समीप पिहोवा आज भी श्राद्ध स्थल बने हुए हैं। इन तीनों स्थानों पर भगवान राम ने सीता सहित बैठकर पितृतर्पण किया और पुरोहित से पिंडदान संपन्न कराया। इस श्राद्ध यात्रा में उनके साथ भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न भी अयोध्या से चले। पर वे गया और पिहोवा न जाकर हरिद्वार आए और उत्तरांचल की यात्रा पर रवाना हो गए।
भगवान राम द्वारा श्राद्ध करने का यह प्रसंग सकंद पुराण में मिलता है। पौराणिक विद्वान पंडित हरिओम जयवाल शास्त्री बताते हैं कि हर की पैड़ी से सटा कुशावर्त घर आज भी श्राद्ध केंद्र बना हुआ है। यह स्थल भगवान दत्तात्रेय की तपस्थली है। अयोध्यानंदन श्रीराम और जानकी ने इसी घाट पर बैठकर पितृ पिंड और श्राद्ध तर्पण किए थे। यह कार्य उन्हें तीर्थ पुरोहित द्वारा ही संपन्न कराया गया था।
कुशावर्त घाट का भगवान राम के पूर्वज राजा भगीरथ से भी सीधा संबंध रहा है। स्मरणीय है कि इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर की चार पीढ़ियां गंगा को स्वर्ग से उतारने में लगी हुई थीं। अंत में भगवान राम के पुरखे राजा भगीरथ गंगा को शिव की जटाओं के रास्ते धराधाम पर लाने में सफल हुए। गंगा जब हरिद्वार के कुशावर्त पहुंची तब ऋषि दत्तात्रेय कुशासन पर बैठे तपस्या कर रहे थे। गंगा उनके दंड, कमंडल आसान साथ लेकर आगे बढ़ी। तभी ऋषि की तपस्या भंग हो गई। उन्होंने अपने तपोबल से गंगा को बढ़ने से रोक दिया और गंगा वहीं आवर्तमय होकर बहने लगी। तब भगीरथ और गंगा ने विनती कर ऋषि को मनाया, उनसे क्षमा मांगी। तब गंगा आगे बढ़ी। ऋषि दत्तात्रेय ने भगीरथ को इसी स्थान पर वरदान दिया था कि आगे चलकर भगवान विष्णु इसी वंश में रामावतार लेंगे। राम तब इसी घाट पर पितृ श्राद्ध करने आएंगे।
श्राद्ध के बाद भगवान राम ने गया तीर्थ और पिहोवा में भी श्राद्ध किए। तभी से तीनों स्थल आज तक श्राद्ध एवं पितृ कर्मकांड स्थल बने हुए हैं। श्रीराम के साथ आए उनके तीनों भाई उत्तर की यात्रा पर चले गए। उनके आगमन के गवाह लक्ष्मण कुंड, लक्ष्मण सिद्ध, लक्ष्मण झूला, भरत मंदिर, शत्रुघ्न मंदिर, देवप्रयाग का रघुनाथ मंदिर आदि आज भी मौजूद हैं।