गुमशुदा सोने का नगीना लार्ड कर्जन का तोहफा देना
अंग्रेजी राज के दौरान ताजमहल के सबसे ज्यादा खैरख्वाह रहे वायसराय लार्ड कर्जन। वे खुद ताज की बारीकियों पर नज़र रखते थे। उन्होंने मुगल बादशाही के पतन के दौर में ताज से लापता वस्तुओं की फेहरिस्त बनाई थी। उन्हें बेगम मुमताज महल की कब्र के ऊपर कभी लटकने वाला सोने का झाड़फानूस गायब मिला। दरअसल, वह 17वीं सदी में ही चुरा लिया गया था। इसीलिए लार्ड कर्जन ने ताज को शाही झाड़फानूस तोहफे में देने की ठानी।
अमिताभ स.
लेखक स्तंभकार हैं
ताजमहल 1653 में बन गया था। इसे बने बेशक 370 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन बेगम मुमताज महल की कब्र के ऐन ऊपर लटकता झाड़फानूस महज 114 साल पुराना है। जानना दिलचस्प है कि कहां गायब हो गया शुरुआती झाड़फानूस और कहां से आया नया झाड़फानूस...
केंद्रीय पर्यटन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021- 22 के दौरान देश के टिकट से प्रवेश वाले पर्यटन स्थलों में से सबसे ज्यादा 32,94,611 लोगों ने ताजमहल के दीदार किए। हर देशी- विदेशी सैलानी बार- बार ताजमहल देखने जाना चाहता है। देश की शान ताज की सलामती और सौंदर्य के लिए हर हिंदुस्तानी फ़िक्रमंद रहता है। लेकिन क़रीब दो सौ साल की अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ताजमहल के सबसे ज्यादा खैरख्वाह रहे थे हिंदुस्तान के वायसराय लार्ड कर्जन। वह खुद ताज की बारीकियों पर अपनी नज़र रखते थे। जब लार्ड कर्जन हिंदुस्तान आए, तो ताजमहल के रखरखाव पर सालाना केवल 7,000 ब्रिटिश पौंड खर्च किए जाते थे। वर्ष 1904 में लार्ड कर्जन ने इसे बढ़ा कर 37,000 पौंड कर दिया। उन्होंने अपने दोस्त जान ब्रोडरिक्स को खत लिखा - 'ताज सचमुच अतुल्य है। देखने पर महल-सा लगता है और दमक नगीने- सी है.. करिश्माई क्योंकि इसके दीदार खूबसूरत हसीना को देखने के बराबर हैं। इसमें मोहब्बत और उदासी का अनुपम तालमेल है, जो खूबसूरती की इंतहा के लिए लाजिमी है।'
लार्ड कर्जन की पहल
कहते हैं कि लार्ड कर्जन ने खुद ताज जाकर मुगल बादशाही के पतन के दौर में ताज से लापता वस्तुओं की फेहरिस्त बनाई थी। बेगम मुमताज महल की कब्र के ऐन ऊपर से गायब लटकते सोने के झाड़फानूस की वीरानी उनकी निगाहों से बच नहीं सकीं। दरअसल, 17वीं सदी में ही आगरा पर कब्जे के दौरान असली झाड़फानूस चुरा लिया गया था। बस उसी पल लार्ड कर्जन ने ठान लिया कि वह ताज को एक शाही झाड़फानूस तोहफे में देंगे। लार्ड रोनाल्डशाप ने लार्ड कर्जन की जीवनी में उनकी इस मंशा का जिक्र किया है। उसी रोज से, लार्ड कर्जन ताजमहल की शान के मिज़ाज मुताबिक एक शाही झाड़फानूस की तलाश में जुट गए। साल 1905 में उन्होंने मिस्र के राजदूत लार्ड क्रूमर की मदद मांगी। लार्ड कर्जन ने लार्ड क्रूमर को लिखा, 'मेरी दिली ख्वाहिश है कि शाहजहां और मुमताज महल की कब्र के ऊपर चांदी का दिलकश झाड़फानूस लटकाऊं... मैं अर्से से लोगों से जानने की कोशिश करता रहा हूं कि असली शुरुआती झाड़फानूस का आकार-प्रकार कैसा था? लेकिन कुछ जानकारी हाथ नहीं लगी, इसलिए मैंने काहिरा का रुख किया है। मैं जानता हूं कि अरब के मकबरों में एक से एक झाड़फानूस लटकते हैं।' करीब छह महीनों तक लार्ड कर्जन और लार्ड क्रूमर के बीच चिट्ठी-पत्री का सिलसिला जारी रहा। लेकिन मिस्र नहीं भांप सका कि लार्ड कैसा झाड़फानूस तलाश रहा है? तलाश के सिलसिले में उन्होंने खुद काहिरा जाने का मन बनाया। काहिरा से खासतौर से लार्ड कर्जन द्वारा लाया खूबसूरत झाड़फानूस आज भी ताजमहल के मध्य कक्ष में लटक रहा है।
अमर कहानी ताज की
ताजमहल के बनने की अमर कहानी तो हर किसी ने बार-बार पढ़ी और सुनी है। लेकिन ज्यादातर झाड़फानूस की दास्तान से अनजान हैं। इतिहास के पन्नों पर दर्ज है कि 30 अप्रैल, 1612 को मुगल बादशाह शाहजहां का निकाह अर्जुमंद बेगम से हुआ था। बाद में शाहजहां ने अपनी बेगम का नाम मुमताज महल रखा। मुमताज महल की अचानक मौत से शाहजहां को गहरा सदमा लगा। गम में वह दो साल तक अज्ञातवास में रहे और जब बाहर निकले, तो आंखों पर मोटा चश्मा और बाल सफेद थे। साल 1631 और 1648 के बीच ताजमहल बना, और इसी बीच बेगम मुमताज महल को ताजमहल में दफन किया गया। फिर साल 1666 में उनके बगल में ही शाहजहां की कब्र बन गई। ताज का जलवा सुबह-सवेरे, दोपहर-शाम और चांदनी रात में खासतौर से देखते ही बनता है।
झाड़फानूस की दास्तान
झाड़फानूस बनने का इतिहास कहीं ज्यादा दिलचस्प है। काहिरा में लार्ड कर्जन को सुल्तान बेफोर्स द्वितीय के मकबरे का झाड़फानूस भा गया। लेकिन जब तक बनने की बारी आई, वह झाड़फानूस गायब हो गया। फिर चश्मदीदों की मार्फत इसकी बारीकियों के मुताबिक झाड़फानूस की रूपरेख चित्रकारी के जरिये बनाई गई। डिजाइनिंग के मसले पर लार्ड कर्जन ने खुद काहिरा स्थित अरबी म्यूजियम के निर्देशक हेंज और मिस्र के सार्वजनिक कार्य विभाग के ई. स्विमांड सरीखे तजुर्बेकारों से सलाह-मशविरा किया। दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि मिस्र के दो माहिर कारीगर ही बेजोड़ झाड़फानूस बनाने में सक्षम हैं। आख़िरकार उनमें से एक खासमखास कारीगर तोद्रोह बादिर को जिम्मेदारी सौंपी गई। उसने दो साल की कड़ी मेहनत-मशक़्क़त के बाद कांस्य का झाड़फानूस बनाया, जिसपर सोने और चांदी का पतरा चढ़ा था। बताया गया, 'इस कदर लुभावना झाड़फानूस सदियों पहले ताजमहल में ही देखा गया था।' लार्ड कर्जन ने आगरा के शाही इमाम से फारसी में संदेश का अनुवाद करवाया, जिसका मतलब था, 'मुमताज महल के मकबरे को वायसराय ऑफ इंडिया लार्ड कर्जन ने 1906 में भेंट किया।'
10,000 रुपए कीमत का था ‘तोहफा’
फिर ताज की दीवारों पर यहां-वहां अंकित शैली में इसे लिखवाया गया और लिखावट को काहिरा भेजा गया। काहिरा में झाड़फानूस के डिजाइन के अनुसार शैली में मामूली फेरबदल किए। अंततः संदेश को धातु पर छिदवाकर झाड़फानूस के गोलधारे पर पक्का लिपटा दिया गया। अंग्रेज वायसराय लार्ड कर्जन की घोर बदनसीबी रही कि ताज में झाड़फानूस लटकाने के विधिवत समारोह में वह शामिल नहीं हो सके। क्योंकि राजनीतिक उथल-पुथल के चलते उन्हें वायसराय पद छोड़ना पड़ा। वर्ष 1909 में भारतीय सेना के कमांडर-इन-चीफ लार्ड किचनर और यूनाइटेड प्रोविंस के उपराज्यपाल सर जॉन हैवेट ने झाड़फानूस ताज को भेंट किया। भारी भीड़ की मौजूदगी में तोहफा समारोह आयोजित किया गया। बताते हैं कि 1909 में झाड़फानूस की कीमत करीब 10,000 रुपए थी और आज तो अमूल्य समझिए। अफसोस की बात है कि झाड़फानूस पर लगातार धूल-मिट्टी जमने से इसकी वास्तविक आभा धूमिल होती रही है। लार्ड कर्जन ने अपने दोस्त सर जॉन हैवेट को यूं लिखा, 'मेरा आग्रह है कि ताजमहल में मेरे दिलकश तोहफे को खासी हिफाजत से रखा जाए। आगरे की शान को यह तोहफा मेरा आखिरी सलाम माना जाए, जिसकी खुशनुमां यादें मेरे भीतर गहरी समाई हैं।’ ज़ाहिर है कि ब्रिटिश वायसराय के मुगल बेगम को दिए बेमिसाल और बेशकीमती तोहफे के चर्चे सदियों तक गूंजते रहेंगे।