उल्लास के मायने
हम अपनी परंपराओं व त्योहारों को आनंद, उल्लास से मनाते हैं। दिवाली, होली, दशहरा, राखी, गणपति उत्सव आदि ये सभी हमें अंदर से आत्मा को छूते हैं। हमारे रोम-रोम में बसकर भाव-विभोर करते हैं। खुशियों के बादल बन कर बरसते हैं और इस पर यदि कुछ शोर आतिशबाजी का हो जाता है तो ये उत्सव में चार चांद लगा देते हैं। जैसे संगीत आत्मा को मन को शांति प्रदान करता है, ठीक वैसे ही आतिशबाजी यदि ग्रीन पटाखों की हो तो सोने में सुहागा सिद्ध होती है। तब उत्सव यादगार बन जाते हैं।
भगवानदास छारिया, इंदौरनैतिक कर्तव्य
हमारे पर्व सुख समृद्धि के परिचायक होने के साथ-साथ, खुशियों के भी पर्याय हैं। दीपावली के अवसर पर पटाखे, आतिशबाजियों के धुएं से प्रदूषित वातावरण के मद्देनजर दिल्ली तथा एनसीआर में सुप्रीमकोर्ट का आतिशबाजियां चलाने पर रोक लगाना काबिले तारीफ हैं। उत्सवों पर खुशी का इजहार केवल आतिशबाजी ही नहीं अपितु दीपक जलाना, बिजली की लड़ियां, डिजिटल आतिशबाजी या ग्रीन दिवाली सभ्यता व्यवहार, परंपराओं, रीति-रिवाज को धरोहर समझकर करना चाहिए। प्रत्येक नागरिक को अपना नैतिक कर्तव्य समझकर त्योहारों का महत्व बरकरार रखना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथलसमता का कानून
सवाल उठता है कि कोर्ट का आदेश जनता के लिए है, सरकार के लिए क्यों नहीं। उससे भी अधिक विचारणीय बात यह कि नेताओं की विजय पर भी खूब आतिशबाजी होती है, नववर्ष एवं कुछ अन्य धर्मों के दिवस पर भी आतिशबाजी होती है, तब क्या प्रदूषण नहीं होता। अभिप्राय यह नहीं कि हिन्दू पर्वों पर आतिशबाजी की छूट दी जाये, किन्तु नियंत्रण समान रूप में किया जाना चाहिए। अतः इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए, जिससे आतिशबाज़ी का उत्पादन ही बन्द हो। कालांतर में आवश्यकतानुसार इन्हें किसी नये काम के लिए सरकार की ओर से सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए।
कविता सूद, गाज़ीपुर, जीरकपुर
तार्किक हो आधार
चाहे दिवाली हो या खुशी का और कोई मौका, इसे अभिव्यक्त करने के लिए आतिशबाजी का प्रयोग किया जाता है जो वायु प्रदूषण को बढ़ाकर मनुष्य के लिए समस्याएं पैदा करता है। प्रदूषण के अन्य कारणों पर प्रतिबंध लगाना ही चाहिए लेकिन आतिशबाजी के वैकल्पिक तरीके इस्तेमाल करने चाहिए। आजकल डिजिटल आतिशबाजी तथा ग्रीन आतिशबाजी का प्रयोग होने लगा है जिससे प्रदूषण को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। जो आतिशबाजी हम प्रयोग करें वह इको फ्रेंडली होनी चाहिए। जहां आतिशबाजी मनुष्य के लिए खतरा पैदा करे वहां इस पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है।
शामलाल कौशल, रोहतकगैर-जिम्मेदार व्यवहार
दिवाली वाले दिन दिल्ली व देश के अन्य क्षेत्रों में जमकर आतिशबाजी हुई। दीपावली के दिन सुप्रीमकोर्ट के आदेशों के बावजूद लोगों ने आतिशबाजी की कमी न रहने दी। लेकिन तथाकथित पढ़े-लिखे समाज ने भी गंभीरता का परिचय नहीं दिया। बारिश होने से जो प्रदूषण कुछ कम हुआ था वो भी खतरे के निशान के आसपास पहुंच गया। दिवाली के बाद अगली सुबह दर्ज आंकड़ों ने दिल्ली तथा आसपास की ज़हरीली हुई हवा की हकीकत बता दी। क्या समाज को जागरूक बनाने के प्रयास बेमानी ही हैं?
शिवरानी पुहाल, पानीपतहमारी जवाबदेही
दिवाली के अवसर पर सुप्रीमकोर्ट के निर्देश के बावजूद जमकर आतिशबाजी होना यह दर्शाता है कि अधिकतर लोगों को लगता है कि केवल पटाखों, आतिशबाजी आदि के माध्यम से ही इस त्योहार को सही तरीके से मनाया जा सकता है। वर्तमान समय में प्रदूषण की गंभीर होती जा रही समस्या के कारण यह उचित नहीं है। त्योहार को मनाने व खुशी प्रकट करने के लिए आतिशबाजी की कोई तार्किकता प्रतीत नहीं होती। देश का जिम्मेवार नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य बनता है कि त्योहार खुशी से मनायें परन्तु प्रदूषण की समस्या न बढ़े, इसका भी ध्यान रखें।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथलपुरस्कृत पत्र
घातक होगा कदम
हर बार की तरह इस बार भी दीपावली पर जमकर आतिशबाजी हुई। जबकि दीपावली से दो-चार दिन पहले ही दिल्ली व एनसीआर में वायु की गुणवत्ता बिगड़ जाने के कारण प्रशासन को छोटे बच्चों के स्कूल बंद करने के आदेश देने पड़े थे। दीपावली की खुशी मनाने के और भी तरीके हो सकते हैं। भला प्रदूषण फैलाकर अपने लिए ही ज़हरीला वातावरण तैयार करना कहां की समझदारी है? शासन-प्रशासन तो हमेशा से ही लचर प्रदर्शन करता है। उसकी सख्ती कागजों और भाषणों में ही होती है। वास्तविक धरातल पर कुछ और ही होता है। हमें अपने परिवेश की हर समस्या से अवगत रहकर उसके निराकरण में अपना योगदान देना चाहिए।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम