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स्वाह होती जिंदगियां

06:46 AM May 30, 2022 IST

भ्रष्ट तंत्र जिम्मेदार

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मुंडका मेट्रो स्टेशन के पास एक चार मंजिला कमर्शियल बिल्डिंग में आग लगने से 27 बेकसूर लोगों की हृदय विदारक मौत ने उपहार सिनेमा त्रासदी को याद करने पर मजबूर कर दिया। कंपनी द्वारा अग्नि सुरक्षा मानदंडों को नहीं अपनाया गया था। हादसे के बाद सरकार को पता चला कि बिल्डिंग की एनओसी नहीं है। बिल्डिंग से निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं था, जिस वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यदि दूसरा रास्ता भी होता और दमकल विभाग को समय पर सूचना दी गई होती तो कुछ जानों को बचाया जा सकता था। इन मौतों के लिए इमारत के मालिक के साथ-साथ सरकार व प्रशासन का भ्रष्ट तंत्र जिम्मेदार है।

शमशेर शर्मा, करनाल

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सवालिया निशान

मुंडका कांड में 27 कामगारों की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर फैक्टरियों में आवश्यक जीवन रक्षक संसाधनों के होने पर सवालिया निशान लगा दिया है। प्रत्येक घटना से भविष्य के लिए सबक ले लिया जाना चाहिए। सरकार का दायित्व है कि दोषियों को दंडित किया जाए। समाज और सेवी संगठन भी आगे आएं ताकि पीड़ित परिवारों को सहारा मिल सके। प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि ऐसी घटनाओं की निंदा करे और दोषी वर्ग को समाज के सामने बेनकाब करे। केवल मुआवजा घोषित करना ही पर्याप्त नहीं है। समाज और सरकार को ऐसा प्रबंध करना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

श्रीमती केरा सिंह, नरवाना

आपराधिक लापरवाही

जीवन यापन के लिए कार्यरत लगभग 27 बेकसूर लोगों की दिल्ली की चार मंजिला इमारत में लगी आग में जान चली जाना एक हृदय विदारक घटना है। ऐसे हादसे अक्सर भवन निर्माण से लेकर अग्निशमन तक के तमाम सुरक्षा मानकों को ताक पर रखने की वजह से ही होते हैं। जबकि घनी आबादी वाले क्षेत्रों के भवनों में बचाव के सभी उपायों को दुरुस्त रखना और भी ज्यादा जरूरी है। आपराधिक लापरवाही में घूसखोरी जिम्मेदार लोगों की नजरों पर पर्दा डाल देती है। ‘सुरक्षा पहले, काम बाद में’ की नीति अपनाकर ही यूं स्वाह होती जिंदगियों को बचाया जा सकता है।

देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद

ताक पर नियम

सोचने वाली बात है कि बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण जब होता है तो सरकारी तंत्र कहां रहता है? विभाग के आला अफसर कहां सोये रहते हैं? क्यों नहीं सभी मानकों का गहराई से अध्ययन किया जाता? क्या सभी ने मानवीय जीवन से खेलने की कसम खा रखी है? कितनी शर्म की बात है कि सबकी नाक के नीचे सब कुछ होता है फिर भी सब मौन रहकर बड़ी दुर्घटना का इंतजार करते हैं। जिम्मेवार सभी अधिकारियों व मालिक को कठोर दंड से गुजारना चाहिए ताकि भविष्य में कोई इस प्रकार का दुस्साहस न कर सके।

सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम

मिलीभगत का परिणाम

दिल्ली की चार मंजिला इमारत में 27 लोगों की मौत से हमने कुछ नहीं सीखा। सवाल उठता है कि जब बहुमंजिली इमारतें बनाई जाती हैं तो उनमें सुरक्षा के प्रावधान क्यों नहीं रखे जाते। इस किस्म के हादसों का होना प्रशासन तथा मालिकों में आपसी मिलीभगत का परिणाम है। इमारतों को भवन निर्माण की सुरक्षा तकनीक के अनुसार बनाना चाहिए। आग लगने की स्थिति में बिल्डिंग से बाहर निकलने के कई वैकल्पिक रास्ते होने चाहिए। जो इमारतें अग्निशमन सुरक्षा सुविधाओं से रहित हों, उन्हें अवैध निर्माण मानकर गिरा देना चाहिए। भ्रष्ट अधिकारियों के लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए।

शामलाल कौशल, रोहतक

तंत्र की काहिली

दिल्ली की चार मंजिला इमारत में लगी आग में 27 लोगों का जिंदा जलना वास्तव में हृदय-विदारक है। इतने सारे लोगों के आने-जाने के लिए केवल एक दरवाजे व सीढ़ी का ही प्रावधान रखा। अग्निशमन व बचाव के उपाय नहीं रखे। एमसीडी की काहिली भी इसके लिए जिम्मेदार है। इस रिहायशी इमारत में वाणिज्यिक और औद्योगिक गतिविधियां इतने वर्षों से बिना किसी अनुमति और आवश्यक एनओसी के कैसे चल रही थीं? इस लापरवाही की जवाबदेही तो बिल्डिंग मालिक व एमसीडी के संबंधित अधिकारियों की ही बनती है। आये दिन होने वाले हादसे तभी रुकेंगे जब तंत्र सुरक्षा के लिए बने नियम-कानूनों का दृढ़ता से पालन करवाना सुनिश्चित करेगा।

शेर सिंह, हिसार

पुरस्कृत पत्र

व्यवस्था की नाकामी

शहरों की बहुमंजिली इमारतों में बेक़सूर जिंदगियां व्यवस्था की नाकामी की कहानी चीख-चीख कर सुना रही है। हाल ही में दिल्ली में बहुमंजिला इमारत में आग की घटना में करीब 27 लोग जिंदा जल गए। बहुमंजिलें फ्लैट्स और व्यावसायिक भवन निर्माण को सरकारी इजाजत होने का दावा किया जाता है। मगर सुरक्षा की अनदेखी और सरकारी लापरवाही जानलेवा हादसों की वजह बन रही है। यह सरकारी तंत्र की काहिली ही है जो नाक नीचे सुरक्षा मानकों का उल्लंघन होता है। निश्चित रूप से व्यवस्था की लापरवाही के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। वहीं समय-समय पर घने मकानों में सुरक्षा जांच सुनिश्चित हो ताकि स्वाह होती जिंदगियों को बचाया जा सके।

एमके मिश्रा, रांची, झारखंड

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