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कविता का उजाला

06:47 AM Aug 11, 2024 IST

पुरुषोत्तम व्यास

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मुझे लगने लगा है
करना पड़ेगा बड़े
जोर-शोर से कविता का प्रचार...

हर कोई भूलते जा रहा
प्यार करना और मुस्कुराना
दो और दो चार के चक्कर में
स्वार्थपरक होते जा रहा..

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न समझ पा रहा सुमनों का खिलना
तितलियों का उड़ना
पक्षियों का चहकना
मालूम नहीं किस सोच में जिए जा रहा

बादलों का बरसना
इंद्रधनुष के सात रंग
उगता सूरज,चंदा पूनम का
चार दीवारों में कैद किए जा रहा

सरिता बहना, नाव का डोलना
पर्वतों की चोटियां
झरनों का झरना
जानवरों की उछल-कूद
अपने-आप में रोए जा रहा...

उन चीजों का प्रचार किऐ जा रहे
जिनका मूल्य ही नहीं
चकाचौंध के भीतर कितना अंधकार
समझ नहीं पा रहा

भावों का होगा सम्मान
छोटी-छोटी बातों में खुशियां होंगी अपार
हिम्मत न कोई हारेगा
धूप या छांव में चलते चले जाएगा
इस पर लगने लगा
कविता का प्रचार
जोर-शोर से करना पड़ेगा...

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