ज़िंदगी है बस अब तेरी यही कहानी
शमीम शर्मा
पहले सिर्फ विवाह-शादियों में रिश्ते करवाने या कोई जायदाद खरीदने में बिचौलिया हुआ करता या सिर्फ लड़ाई-झगड़ों के निपटान में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हुआ करती। पर अब प्यार-मोहब्बत, गाली-गलौज, ताने-उलाहने, गिले-शिकवे सबका एक मिडल-मैन है यानी बिचौलिया। और यह बिचौलिया हर पल आपके साथ रहने लगा है। इसके बिना जग सूना-सूना लगता है। यह कोई और नहीं आपकी हथेली पर पसरा आपका मोबाइल है। तभी तो आमने-सामने की बातें ही बंद हो गई हैं। बातचीत शब्द को ‘चैट’ ने निगल लिया है। यह और बात है कि कई लोग तो चैट भी चैटजीपीटी से पूछ-पूछ कर करने लग गये हैं। कॉल तो दुनिया करती आई पर अब दुनिया कॉल रिकॉर्डिंग भी करने लग गई है। जैसे कि सबूत देने के लिए कोर्ट-कचहरी करनी हो। घरेलू लड़ाई में भी ये रिकॉर्डिंग धमकी के तौर पर प्रयुक्त होती हैं। ‘दिखाऊं क्या रिकॉर्डिंग’ डायलॉग अब आम है।
कुल सार यह है कि या तो हर कोई अपने आप में गुम है या अपने मोबाइल में। ‘आहिस्ता-आहिस्ता’ फिल्म की ग़ज़ल का एक शे’र दिमाग में घूम रहा है :- जिसे भी देखिये अपने आप में गुम है। जुबां मिली है मगर हम-जुबां नहीं मिलता।
धरती के सारे जुबांधारी जीव मोबाइल की गिरफ्त में जकड़े जा चुके हैं। मजे की बात ये है कि कोई इस जकड़न से बाहर भी नहीं निकलना चाहता। गांवों के बुड्ढे-ठेरे तो सुन्ने हो गये क्योंकि किसी के पास उनसे बतियाने के लिये वक्त ही नहीं है। शहरी बुड्ढे-ठेरे जिन्हें अब ‘सीनियर सिटीजन’ कहा जाने लगा है, वे अपने पोते-पोती की मदद से मोबाइल और गूगल से दोस्ती कर चुके हैं और उनके पास अब अपने बच्चों के बच्चों से बात करने का समय भी नहीं बचा है।
किसी को खाने पर घर बुलाओ तो वह खाने में या आपमें कम ध्यान देगा और मोबाइल में ज्यादा। हर दो मिनट में हर जन अपने मोबाइल में यूं झांकता है जैसे अगर नहीं देखा तो कयामत आ जायेगी। किसी के घर आप जाओ तो वहां आपका भी यही हाल दिखेगा। मोबाइल के उस ओर ऐसा क्या है जो आपको अपने और अपनों के साथ होने ही नहीं देता। एक गाने की लाइन सुनकर अचानक अब यह लगता है कि यह मोबाइल के बारे में ही है— जिंदगी और कुछ भी नहीं तेरी मेरी कहानी है।
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एक बर की बात है अक ताना मारते होये नत्थू अपणी घरआली रामप्यारी तैं बोल्या- मेरे खात्तर तो दूर दूर तैं रिश्ते आया करते। रामप्यारी भी किमें घणीं ए भरी बैट्ठी थी, तपाक दे सी बोल्ली- हम्बै दूर तैं तो रिश्ते आने ही थे, धोरै आल्यां नैं तो खूब बेरा था अक तेरे लच्छण किसेक हैं।