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अधकचरे ज्ञान से जीवन गति बाधित

07:39 AM Jul 29, 2024 IST
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रेनू सैनी

एक बहुत पुरानी कहावत है-नीम हकीम खतरा-ए-जान। इसका अर्थ यह है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास डॉक्टरी का अधूरा ज्ञान है, वह आपकी जान खतरे में डाल सकता है। इसलिए कभी भी ऐसे व्यक्ति से अपना इलाज न कराएं जिसे डॉक्टरी का पूरा ज्ञान नहीं है।
वहीं एक और बात भी सही है कि जीवन में सब कुछ समझने की कोशिश क्यों करनी? यहां यह अवश्य ध्यान दें कि दोनों बातों में अंतर है।
आधा-अधूरा ज्ञान सदैव खतरनाक होता है। जीवन में हर व्यक्ति सब कुछ नहीं जानता। न ही उसे जानने की जरूरत है। इसलिए आधे-अधूरे ज्ञान की प्राप्ति से बचें। इस दुनिया में यदि डॉक्टरी की बातें प्रत्येक व्यक्ति गहराई से जान जाएगा तो वह स्वयं ही अपना इलाज करने लगेगा। मगर यह संभव नहीं है क्योंकि डॉक्टर बनने के लिए डिग्री अनिवार्य होती है, जो हर कोई व्यक्ति नहीं ले सकता। लेकिन अक्सर लोग ज्ञान प्राप्ति की पिपासा में आधे-अधूरे ज्ञान को प्राप्त कर यह समझने लगते हैं कि उन्हें बहुत कुछ पता चल गया है।
आजकल हर विषय से संबंधित ज्ञान देने के लिए ढेर सारे प्लेटफॉर्म मौजूद हैं। इनमें गूगल, क्वोरा, एआई आदि प्रमुख हैं। कई बार लोगों को हल्का-सा खांसी-जुकाम, बुखार आदि होता है तो वे डॉक्टर के पास जाने के बजाय इधर-उधर से प्राप्त आधे-अधूरे ज्ञान से अपना इलाज करते हैं और बीमारी बढ़ा लेते हैं। वहीं कई लोग हल्के से खांसी-जुकाम या बुखार की भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ऐसी जानकारी पढ़ लेते हैं जिससे उनके होश उड़ जाते हैं और वे पहले से अधिक बीमार और चिड़चिड़े हो जाते हैं। जब तक शरीर की सही जांच नहीं होती, तब तक बीमारी का पता नहीं चल पाता। इसलिए इधर-उधर की बातों या लोगों पर विश्वास करने के बजाय प्रशिक्षित चिकित्सक से अपना इलाज कराएं और जीवन को खुशी से जिएं।
कई बार सब कुछ समझने और जानने की कोशिश में व्यक्ति अपने दिमाग में ऐसी अधकचरी बातें डाल लेते हैं जिससे उनका जीवन नासूर बन जाता है। आप सोच कर देखिए कि कई बार जब आप इधर-उधर से आधी-अधूरी बीमारी या बातों की जानकारी पढ़ लेते हैं तो चौबीस घंटे आपके मस्तिष्क में यही बातें दौड़ती रहती हैं कि कहीं आप तो ऐसी बीमारी का शिकार नहीं होने जा रहे। सामान्य बीमारी भी आपको डराने लगती है। आपके चेहरे से मुस्कुराहट गायब हो जाती है, आपका स्वस्थ तरह से खाना-पीना भी छूट जाता है।
इसी प्रयोग में एक कहानी है। एक पेड़ पर नर-मादा दो बंदर बैठे हुए थे। सूर्यास्त होने जा रहा था। दोनों टकटकी लगाकर वहीं देख रहे थे। एक बिंदु पर अचानक मादा बंदर बोली, ‘सुनो जी, जब सूर्य क्षितिज पर पहुंचता है तो, आकाश का रंग क्यों बदल जाता है?’
बंदर बहुत सोचने के बाद वह बंदरिया से बोला, ‘सुनो, अगर हमने सब कुछ समझने और समझाने की कोशिश की तो हम पागल हो जाएंगे, जीना मुश्किल हो जाएगा। बस चुपचाप इस खूबसूरत दृश्य को देखो और प्रसन्नता के सागर में गोते खाओ।’
इस पर बंदरिया क्रोधित होकर बंदर से बोली, ‘तुम तो बड़े अजीब हो। तुम्हारा सारा ध्यान जीवन का आनंद लेने पर टिका हुआ है।’
बंदर बोला, ‘जानकर क्या करोगी? क्या तुम आकाश के रंग को बदल दोगी।’ यह सुनकर बंदरिया रूठ कर बैठ गई। तभी वहां से एक कनखजूरा जा रहा था। बंदर ने आवाज लगाकर उसे रोका और कहा, ‘रुको! ज़रा एक बात तो बताते जाओ। तुम्हारे इतने सारे पैर हैं। तुम इतने सारे पैरों से बिल्कुल सही तालमेल बनाकर कैसे चल पाते हो। कभी लड़खड़ाते नहीं।’ कनखूजरे ने कुछ सोचकर अपने पैरों को देखा और फिर बोला, ‘पहले मैं अपनी मांसपेशी को हिलाऊंगा... नहीं-नहीं... मैं अपने शरीर को इस दिशा में ले जाऊंगा... अरे नहीं... यह भी नहीं, मैं शायद पहले के पैर आगे बढ़ाऊंगा... पहले के पैर आगे बढ़ेंगे तो पीछे के पैर कहां जाएंगे... यह सब करते-करते एक घंटा बीत गया। एक घंटे बाद कनखजूरा बंदर पर चिल्लाकर बोला, ‘उफ! तुम्हें यह समझाने के चक्कर में तो मैं आगे बढ़ना ही भूल गया। मैं जब यह नहीं जानता था, तब बड़े आराम से मस्त चाल में चल रहा था। अरे जब मैं बिना जाने आगे बढ़ रहा हूं, खुशी से रह रहा हूं तो इस बारे में जानकर क्यों अपना दिमाग और जीवन खराब करूं। आगे से मुझसे कभी ऐसा बेहूदा प्रश्न न करना।’

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