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बदलाव की बयार से घाटी में जीवन संवार

06:57 AM Dec 21, 2023 IST
हरीश मलिक

श्रीनगर एयरपोर्ट के बाहर ड्राइवरों का हुजूम है। आगन्तुक मेहमानों के नामों की तख्तियां हाथों में हैं। इन पर एक नजर डालें तो सत्तर फीसदी नाम हिंदू, दो-चार विदेशी और बाकी कश्मीर मूल के हैं। ये तख्तियां सिर्फ नामों का संकेत भर नहीं हैं, बल्कि बताती हैं कि कभी आतंक से जूझ रहा राज्य जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद किस तेजी से अमन की डगर पर आगे बढ़ चला है। यही वजह है कि धरती के स्वर्ग का दीदार करने के लिए यहां आने वाले पर्यटकों के आंकड़े नित नये रिकॉर्ड बना रहे हैं। जिन हाथों में तख्तियां हैं, उनमें अधिकांश युवा हैं और वे तहेदिल से अपने मेहमानों का इस्तकबाल कर रहे हैं। कभी युवाओं के हाथों में पत्थर-हथियार हुआ करते थे। मगर अब कश्मीर घाटी का युवा पत्थरबाजी-प्रदर्शन और हिंसा को छोड़कर शांति की बयार में रोजगार से जीवन संवार रहा है। अब उसके दिल में सिर्फ कश्मीर और कश्मीरियत की चाहत ही नहीं, बल्कि वह भारत को भी लख्ते-जिगर की तरह चाहता है। तभी तो आर्टिकल-370 के निरस्त होने के बाद बड़ी संख्या में कश्मीरी युवा भारतीय सेना में भर्ती होकर देश सेवा करने को भी आतुर हैं।
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 और 35-ए को निरस्त किए जाने की चौथी सालगिरह के चार महीने बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने संसद के फैसले पर संवैधानिक मुहर लगा दी है। लेकिन कश्मीर घाटी की आबोहवा संसद के फैसले के साथ ही बदलनी शुरू हो गई थी। पूरे जम्मू कश्मीर से सरहद तक अब आतंक की नहीं बल्कि तरक्की की बातें हो रही हैं। श्रीनगर के लाल चौक से लेकर गांवों-शहरों में सरकारी इमारतों और सरहद तक हर ओर तिरंगा लहरा रहा है। कश्मीर में अब सड़कों पर न पत्थरबाज दिखते हैं और न ही राष्ट्र विरोधी प्रदर्शन करने वाले। एक समय वह भी था जबकि पत्थरबाजी की घटनाएं आम होती थीं। यहां तक कि इनमें लोगों की मौत भी हो जाती थी। लेकिन आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद पत्थरबाजी में लगातार कमी आई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, आतंकवादी-अलगाववादी एजेंडा के तहत 2018 में जहां 1767 संगठित पत्थर फेंकने की घटनाएं हुईं, वहीं इस साल ये नगण्य हैं।
कश्मीर घाटी में बदलाव की बयार के पीछे जो सबसे बड़ी वजह बने हैं, उन्हीं कुछ युवाओं से गुफ्तगू करते हैं तो फॉग की तरह बातें भी साफ होने लगी हैं। श्रीनगर से गुलमर्ग जाते हुए युवा वसीम आरिफ साफ-साफ स्वीकार करते हैं कि केंद्र सरकार के निर्णय ने पिछले करीब साढ़े चार वर्षों में जम्मू-कश्मीर की तसवीर और यहां के लोगों की तकदीर बदलने का काम किया है। जम्मू-कश्मीर में चाहे जिस पार्टी की भी सरकार रही हो, जिस भी दल के नेता रहे हों, उन्होंने सिर्फ अपना और अपने परिवार का ही भला किया है। कश्मीर के अवाम, युवाओं के भविष्य और रोजगार पर कभी फोकस नहीं किया। रही-सही कसर कश्मीर पुलिस ने पूरी कर दी। उसने सिर्फ अपना गुड वर्क दिखाने और प्रमोशन पाने के लिए ऐसे-ऐसे निर्दोष युवाओं को पकड़ा, जिनका अपराध या आतंक से दूर-दूर तक वास्ता न था। वे बतातेे हैं कि इंडियन आर्मी ने कभी ऐसा काम नहीं किया, इसलिए हम कश्मीरी भारतीय फौज का बहुत सम्मान करते हैं। वसीम की ही बात को डल झील में शिकारे पर कहवा बेच रहा आदिल आगे बढ़ाता है। वो पढ़ाई कर रहा है और समय मिलने पर कहवा से कोचिंग फीस का खर्च निकाल लेता है। आदिल का लक्ष्य इंडियन आर्मी की सर्विस है। उसका चचेरा बड़ा भाई भी फौज में है।
गुलमर्ग के पढ़े-लिखे गाइड अमहद खान के मुताबिक, पहले तो अच्छी नौकरी के अभाव में ये हालात थे कि इंजीनियरिंग, पीएचडी करने के बाद भी युवा यहां किराये की गाड़ी चलाने को मजबूर थे। तब सियासतदानों को युवाओं के भविष्य से कोई लेना- देना नहीं था। लेकिन अब केंद्र शासित प्रदेश बनने, भारत सरकार के कानून और योजनाएं लागू होने से महिलाओं को अधिकार और युवाओं को रोजगार के अवसर मिलने लगे हैं। यही वजह है कि अब युवा पत्थरबाजी या हथियार उठाने के बजाय अमन और खुद को आर्थिक रूप से समृद्ध करने के जतन कर रहा है।
आंकड़ों में बात करें तो उनकी बात सच के बेहद करीब है। कुछ इलाकों में आतंकी घटनाएं हो रही हैं, लेकिन सुरक्षा बलों के सख्त रुख के चलते ज्यादातर अलगाववादी और उनके मददगार गायब होने लगे हैं। बदले हालात में एलओसी पर भी शांति है और सरहद पार की बंदूकें खामोश हैं। आतंकी घटनाओं के खिलाफ जीरो-टॉलरेंस की नीति, चाक-चौबंद सुरक्षा बंदोबस्त के चलते आतंकियों ने घुटने टेक दिए हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 से 2022 के बीच आतंकी गतिविधियों में 45.2 फीसदी की कमी आई है। आतंकी भर्ती से भी युवाओं ने मुंह मोड़ लिया है। यह आंकड़ा 2018 में 199 था, जो 2023 में घटकर सिर्फ 12 रह गया है। यही नहीं इससे घुसपैठ पर भी करारा प्रहार हुआ। घुसपैठ की घटनाएं भी 2018 में 143 के मुकाबले 2022 में सिर्फ 14 ही रह गई हैं।
श्रीनगर से पहलगाम जाते हुए कश्मीरी केसर के खेतों के पास झेलम प्लाजा में बादामवीर शोरूम के मालिक आफताब आर्टिकल 370 के खातमे पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लगने से खुश हैं। वे कहते हैं कि इस फैसले से पहले अलगाववादियों की शह पर सूबे में होने वाले बंद, हड़ताल और पत्थरबाजी से न केवल राज्य की आर्थिक सेहत पर बल्कि पूरे समाज पर बुरा असर पड़ता था। तब स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, और इंडस्ट्रीज का बंद होना रोज की बात थी। लेकिन अब स्कूल, कॉलेज और व्यापार बदस्तूर चल रहे हैं। यहां के छात्र और व्यापारी वर्ग देश की मुख्यधारा से जुड़ते दिख रहे हैं। दरअसल, ऐसा इसलिए भी संभव हुआ है, क्योंकि सरकार ने जनता की बेहतरी की कई योजनाएं शुरू की हैं। घाटी में औद्योगिक विकास के लिए केंद्र ने 28400 करोड़ रुपये का बजट रखा है। आर्थिक नीति का असर है कि जम्मू-कश्मीर में 78000 करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश के प्रस्ताव आ चुके हैं। इस निवेश और आर्टिकल 370 के खातमे से निश्चित रूप से युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे।
यह सही है कि आर्टिकल 370 अस्थायी था और इसका प्रावधान तत्कालीन युद्ध की स्थिति के चलते किया गया। यही कारण है कि इसे संविधान के भाग 21 में रखा गया था। लेकिन बाद में सियासतदानों ने स्वार्थ की राजनीति के चलते इसे हटाने की कोई मंशा नहीं दिखाई। बहरहाल, संसद के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि कश्मीर पर हर भारतीय का और कश्मीरियों का संपूर्ण देश पर समान हक है। शीर्ष अदालत के इस आदेश ने ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना को और मजबूत किया है।

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लेखक वरिष्ठ संपादक हैं।

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