स्वामी विवेकानंद की सीख से आइये ऊर्जावान होकर लक्ष्य साधें
ओमप्रकाश धनखड़
स्वामी विवेकानंद जी युवाओं के आदर्श हैं। राष्ट्र उनकी जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है। उनका बहुत प्रेरक वाक्य है, ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्पष्ट लक्ष्य का अभाव दुनिया की बहुत बड़ी ख़ामी है।
डायना न्याद प्रसिद्ध तैराक हैं, जो 64 वर्ष की आयु में क्यूबा से फ़्लोरिडा के तट तक तैर कर आती हैं। विफल प्रयासों में जब उनकी टीम बिखरने लगती है, तब वह टीम से कहती हैं, जाओ यदि आप सबके पास कोई लक्ष्य है तो पूरा करो। लक्ष्य विहीनता का अहसास कर टीम वापस डायना न्याद पर लौट आती है। क्योंकि डायना के पास प्रेरक लक्ष्य था। सबसे बड़ा संकट स्पष्ट एवं प्रेरक लक्ष्य का अभाव है जो व्यक्तिगत, संगठनों व राष्ट्र के समक्ष होता है।
कैसी हो दूर दृष्टि : विजन यानी दूर दृष्टि यह है कि दस या बीस वर्षों बाद मुझे, मेरे संगठन या राष्ट्र को कहां पहुंचना है। एक राष्ट्र रूप में, आज भारत के पास लक्ष्य है 2047 में विकसित भारत का, जो युवाओं व संगठनों को भी इससे जुड़ने के लिये प्रेरित कर रहा है। लाखों युवा इस लक्ष्य के साथ अपने व्यक्तिगत लक्ष्य खोज पा रहे हैं। जिस तरह आज़ादी के लक्ष्य ने करोड़ों लोगों को प्रेरित किया था, लाखों लोग निकल पड़े थे उस राह पर जिसने हमें 1947 में पहुंचाया। आज 2047 विकसित भारत के लिये प्रेरित कर रहा है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को इस स्पष्ट व प्रेरक लक्ष्य के लिये साधुवाद!
फ़ोकस एवं निरंतरता जरूरी : लक्ष्य की प्राप्ति में फ़ोकस होने व निरंतरता दोनों का ही महत्वपूर्ण योगदान है। ऊर्जा के संकेंद्रण के बिना परिणाम प्राप्त नहीं होते। संसार की समस्त उपलब्धियां मनुष्य की ऊर्जा का ही बदला हुआ रूप है। आपकी व्यक्तिगत उपलब्धियां, आपकी गाड़ी, घर और पद आपकी ऊर्जा का परिवर्तित स्वरूप है। यह तभी हो पाता है जब किसी कार्य के लिये आप अपना पूर्णांक देने लगते हैं। कोई उत्तल लैंस तभी आग लगा पाता है जब उसे बिना हिलाये, पदार्थ पर सूर्य के प्रकाश में केंद्रित किया जाता है। यानी ग़ैर फ़ोकस्ड व्यक्ति व समाज परिणाम उत्पन्न नहीं कर सकता। इसी तरह निरंतरता ही उपलब्धि का मंत्र है। भगीरथ प्रयास इसी निरंतर परिश्रम का प्रतिनिधि शब्द है। मानवता ने जहां निरंतर प्रयासों से महामारियों से छुटकारा पाया, वहीं विकास के सतत प्रयासों से अंतरिक्ष तक में सफलता अर्जित की है।
प्रेरणा के सूर्य : आज़ादी के महानायक आज भी हमारी प्रेरणा के सूर्य हैं। स्वामी विवेकानंद जी की दीप्ति ही लेख लिखने को प्रेरित कर रही है। हमने सरदार वल्लभ भाई पटेल का स्टैच्यू बनाया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा कर्तव्य पथ पर सुसज्जित की। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के व्यक्तित्व व कृतित्व को संविधान की 75वीं वर्षगांठ के निमित्त याद कर रहे हैं। वर्तमान राजनीतिक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी जी हमारे युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं। अंतरिक्ष में भारत की सफलता, विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति की तरफ़ जाती अर्थव्यवस्था। जोश व सपनों से भरी कौशलयुक्त, कार्यशील, उद्यमशील युवा पीढ़ी नयी ऊंचाइयों को छूने को आतुर है। लक्ष्य भी है और ऊर्जा भी। आइए फ़ोकस करें, कम्फ़र्ट ज़ोन छोड़कर सतत प्रयासरत रहें। यही स्वामी विवेकानंद जी का सच्चा अनुकरण है।
लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सचिव हैं
लक्ष्य कैसे तय हो
लक्ष्य, स्वधर्म व विजन दोनों की धुरी पर तय होता है। स्वधर्म यह खोजने के लिये कि मैं किस लिये बना हूं, मेरे लिये सर्वाधिक करणीय क्या है- उद्योग, खेती, आईटी, मीडिया, सर्विसेज़, फैशन, अध्यापन, शोध, विज्ञान, नये स्टार्टअप, खेल, संगीत या समाज सेवा। कौन सा क्षेत्र है जो मुझे पूरा खपा लेता है, जहां कर्म मेरा आनंद बन जाता है। यदि वह जीविकोपार्जन, समाज उपयोगी व मेरे व्यक्तित्व को विस्तार व पहचान देने वाला है तब वह निश्चित रूप से मेरा स्वधर्म हो सकता है।
सफलता का इको सिस्टम
एक समय हमारे वैज्ञानिक व प्रतिभावान लोग विदेशों में जाकर अपने योग्य काम ढूंढ़ कर योगदान दे रहे थे। आज भारत समस्त प्रतिभाशाली लोगों को भारत निर्माण के लिये प्रेरित व कार्यरत कर रहा है। आज हम दवा उद्योग का हब बने हैं। ऑटोमोबाइल उद्योग में आगे बढ़े हैं। नये स्टार्टअप बढ़ रहे हैं। यह सब अनुकूल इको सिस्टम के कारण है। हम वर्तमान सरकार को इसके लिये श्रेय दें, लेकिन यात्रा अभी और तीव्रता से अपेक्षित है।