एक आस का दीया भी जले सूनी गली में
राकेश सोहम्
हे लक्ष्मी जी, फिर दिवाली निकल गई! मैं पूरी रात दीये जलाकर प्रतीक्षा करता रह गया! कहते हैं, लक्ष्मी चलायमान होती है। आप निकलती भी होंगी मेरे घर के सामने से। इस भक्त के घर का दरवाजा तक नहीं खटखटाया आपने? सीधे, सेठ लक्ष्मी दास की अट्टालिका में जा विराजीं! प्रतिवर्ष आप ऐसा क्यों करती हैं हमारे साथ? चुनाव की खींचतान में हम वैसे ही परेशान हैं। महंगाई मार रही है। प्याज रुला रहा है। क्या आम आदमी की यही नियति है कि वह दिनभर की गाढ़ी कमाई से घर-बार लीपे-पोते, खील-बतासे खरीदे, मन लगाकर आपकी पूजा-अर्चना करे, बस! ऐसा क्यों होता है कि हमारे हिस्से में केवल पूजा आती है और सेठ के घर धन वर्षा!
आप सर्वज्ञाता हैं। फिर भी मैं बता दूं कि आप जिन भी सेठों के घर विराजती हैं वे एक नंबर के छंटे हुए और कायदे-कानून ताक पर रखने वाले हैं। चुनाव जीतने के पीछे सबकी स्वार्थ सिद्धि का धंधा चल रहा है। जब से आपने ईमानदारों की ओर से मुंह फेरा है, वे हैरान-परेशान भटक रहे हैं। ऐसे में दिवाली पर लक्ष्मी-पूजन जैसा टोटका काम नहीं आ रहा। वे वास्तव में भगवान भरोसे हैं। शेष तो केवल आपको रिझाने में लगे हैं। पूजा-अर्चना जैसे कर्मकाण्डों में भिड़े हुए हैं!
हम हर साल आपको पारंपरिक तरीके से पूजते आ रहे हैं। माटी के दीयों में तेल भरकर जलाते हैं। पूजा पीठ पर बड़ी आशा से लिखते हैं- लक्ष्मी जी सदा सहायता करें। और आप हैं कि हमें असहाय छोड़ जाती हैं! गरीब व छोटे किसान परेशान हैं। जरूरतमंद ही मंद ज़रूरत समझा जा रहा है। उन्हीं पर वोट की बिसात बिछाई जाती है! दिवाली हो या चुनाव, बाद में आम आदमी के पास लकीर पीटना ही शेष रह जाता है।
सो आगे कहता हूं। आप रंग-बिरंगी जगमग लाइटों के आकर्षण में पड़कर पारंपरिक दीयों की रोशनी भूल गई हैं। आप नहीं जानतीं, सेठ जी के यहां सजावटी लाइटें उनके अपने घर के मीटर से नहीं जलती हैं। उन्होंने बिजली के खम्बे से डायरेक्ट कनेक्शन ले रखा था। उनके घर में सजीं लज़ीज़ मिठाइयां भी उनके मातहत देकर गए थे। रातभर चलाए जाने वाले कानफोड़ू पटाखे फ्री में कोई देकर गया था। हम तो फुस्सी पटाखा और फुलझड़ी ही फूंकते रहे हैं।
अच्छा लक्ष्मी जी, अगले साल आइएगा तो ध्यान से देखना क्योंकि हर सूनी गली में एक आस का दीया जलता है।