For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.

महामारी के रोजनामचे से मिली सीख

06:40 AM Mar 10, 2024 IST
महामारी के रोजनामचे से मिली सीख
Advertisement

अरुण नैथानी

कहते हैं आम लोगों की याददाश्त दीर्घकालिक नहीं होती, वे बड़ी आपदाओं को वक्त के साथ भूलकर रोटी-कपड़ा-मकान के फेर में रम जाते हैं। शायद इसी सोच के मद्देनजर सोरित गुप्तो ने ‘महामारी का रोजनामचा’ पुस्तक के जरिये एक सदी बाद आई कोरोना महामारी के ब्योरा को सिलसिलेवार छापकर आपदा से सबक लेने की सलाह दी। ताकि भविष्य में आपदा आए तो हम असहाय नजर न आएं। संवेदनशील-जागरूक रचनाकार सोरित गुप्ता ने बच्चों के लिये तीस से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। वे नोटबंदी पर ‘नोटबंदी की ओट में’ में चर्चित पुस्तक लिख चुके हैं। वे जीवंत चित्रों के रचनाकार व सफल कार्टूनिस्ट हैं। उनके सृजन यात्रा के व्यापक अनुभवों की बानगी इस पुस्तक में शिद्दत के साथ उभरती है।
वर्ष 1918 में आई महामारी स्पेनिश-फ्लू समेत मानव सभ्यता करीब एक दर्जन महामारियां झेल चुकी है। निस्संदेह, महामारियों से इंसानियत को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। चलते-फिरते जीवंत इसानों को रोग व मरने वालों के संख्या सिर्फ आंकड़ों में बदल देती है। आसन्न पीढ़ियां भविष्य में कोरोना संकट में मरने वालों को सिर्फ आंकड़े में ही न गिने, इसे एक मानवीय त्रासदी के रूप में देखे, इसी कोशिश में सोरित गुप्तो ने ‘महामारी का रोजनामचा’ पुस्तक लिखी है।
महामारी के बाद अल्पकाल में लॉकडाउन की घोषणा के क्रियान्वयन से उपजी मानवीय त्रासदी, लाखों श्रमिकों का पलायन, राष्ट्रीय राजमार्गों पर भूखे-प्यासों की कतारें, संचार बंदी ने देश विभाजन सा दृश्य उपस्थित कर दिया था। लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी लोगों का अमानवीय होना था। रिश्ते नाते बिखर गए। लेखक ने लिखा कि इस दौरान जनप्रतिनिधि सुरक्षित स्थानों में चले गए, प्रशासन की संवदेनहीनता, तंत्र की काहिली भी उजागर हुई। यह दौर मानवीय संवेदनाओं के दम तोड़ने का भी था। देश-विदेश के परिवारों में घरेलू हिंसा का चरम भी दिखा।
लेकिन इसके बावजूद लेखक आशावादी है और उन खास लोगों का उल्लेख करना नहीं भूलता जिन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर अनजाने लोगों की मदद की। ऐसे लोग भी कि एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी के जेवर बेचकर अपने ऑटो को मरीजों के इलाज के लिये एंबुलेंस बना दिया। अपने बीमार पिता को साइकिल में बैठाकर गुडगांव से बिहार ले जाने वाली बिटिया, अपने पेंशन को रोगियों के उपचार देने वाली महिला, अपने शादी के लिये जमा पैंसे से श्रमिकों का खाना खिलाने वाले, लवारिश लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले महामानवों का उल्लेख भी लेखक ने किया। बेहद सुंदर चित्रों के जरिये अपनी बात को जीवंत ढंग से प्रस्तुत करने वाले सोरित गुप्तो ने ‘महामारी का रोजनामचा’ पुस्तक के जरिये समाज उपयोगी पहल की है। सही मायनों में पुस्तक संकट काल में मानवीय व्यवहार की विसंगतियों से सबक लेने को प्रेरित करती है।
पुस्तक : महामारी का रोजनामचा रचनाकार : सोरित गुप्तो प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, प्रा.लि, दिल्ली पृष्ठ : 254 मूल्य : रु. 599.

Advertisement

Advertisement
Advertisement
Advertisement
×