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रोहतक छोड़ना पड़ा ताऊ देवीलाल को भारी, जनता ने कर लिया था किनारा

08:20 AM Apr 15, 2024 IST
रोहतक छोड़ना पड़ा ताऊ देवीलाल को भारी  जनता ने कर लिया था किनारा
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 14 अप्रैल
हरियाणा की राजनीतिक राजधानी - रोहतक ने पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ़ देवीलाल को पहली ही बार में सिर आंखों पर बैठाया था। लेकिन देवीलाल का एक फैसला उन पर इतना भारी पड़ गया कि रोहतक के लोगों ने उन्हें फिर कभी गले नहीं लगाया। बेशक, उस समय उनका फैसला राजनीतिक तौर पर सही रहा होगा, लेकिन ‘मरोड़ काढ़ने’ के लिए अलग पहचान रखने वाले इस क्षेत्र के मतदाताओं को देवीलाल का वह फैसला रास नहीं आया था।
जी हां, यहां बात हो रही है 1989 के लोकसभा चुनावों की। यह वही चुनाव था, जिसने देवीलाल को राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर पहचान दी थी। चौ़ देवीलाल ने 1989 में एक साथ तीन संसदीय सीटों से चुनाव लड़ा। हरियाणा में वे रोहतक, राजस्थान में सीकर और पंजाब में फिरोजपुर संसदीय क्षेत्र से जनता दल (जेडी) की टिकट पर चुनाव लड़े। तीनों ही जगहों पर देवीलाल का यह पहला चुनाव था। रोहतक और सीकर के लोगों ने उनके सिर जीत का सेहरा बांधा।
प्रदेश की राजनीति के जानकारों का कहना है कि उस समय देवीलाल ने एक साथ तीन राज्यों से चुनाव भी इसलिए लड़ा था ताकि वे पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिला सकें। इस चुनाव के नतीजों ने देवीलाल को बड़ी पहचान दी। वे पहली बार उपप्रधानमंत्री भी बने लेकिन रोहतक सीट से इस्तीफा देकर सीकर का प्रतिनिधित्व करना उनके लिए मुश्िकल खड़ी कर गया। रोहतक के लोगों ने देवीलाल के फैसले को एक तरह से अपने लिए ‘अपमान’ माना। इसका नतीजा यह हुआ कि इसके बाद देवीलाल रोहतक से लगातार तीन – 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव हारे। तीनों ही चुनावों में उनका मुकाबला भूपेंद्र सिंह हुड्डा से हुआ और हुड्डा, देवीलाल के खिलाफ जीत की हैट्रिक लगाकर कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनने में कामयाब रहे। ऐसा भी कहा जाता है कि देवीलाल को तीन बार शिकस्त देने की वजह से ही हुड्डा का पार्टी नेतृत्व में राजनीतिक कद बढ़ा और 2005 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब हुए।
इससे पहले 1989 में चौ़ देवीलाल ने रोहतक सीट से 3 लाख 90 हजार 243 वोट हासिल करके कांग्रेस के हरद्वारी लाल को परास्त किया था। हरद्वारी लाल को 2 लाख 1 हजार 238 वोट हासिल हुए। देवीलाल के इस्तीफा देने के बाद हरद्वारी लाल ने कोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें विजेता घोषित करने की मांग की। इसी वजह से इस सीट पर उपचुनाव भी नहीं हो सका। इसके बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनावों में देवीलाल ने फिर रोहतक से किस्मत आजमाई। देवीलाल के मुकाबले कांग्रेस ने चेहरा बदलते हुए पहली बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मौका दिया। हुड्डा अपने पहले ही चुनाव में देवीलाल जैसे दिग्गज को बड़े अंतर से हराने में कामयाब रहे। हुड्डा को 2 लाख 41 हजार 235 वोट हासिल हुए वहीं देवीलाल को 2 लाख 10 हजार 662 मत मिले। देवीलाल रोहतक के राजनीतिक महत्व काे समझते थे। इसलिए वे हारने के बाद भी पीछे नहीं हटे। 1996 में उन्होंने फिर रोहतक से दांव ठोका। हुड्डा ने दूसरी बार भी देवीलाल के रोहतक से संसद नहीं पहुंचने दिया।
1996 के चुनावों में हुड्डा ने 1 लाख 98 हजार 154 वोट हासिल किए और देवीलाल को 1 लाख 95 हजार 490 मत मिले। इस बार का चुनाव त्रिकोणीय भी बना हुआ था। चूंकि भाजपा के प्रदीप कुमार भी पूरी मजबूती से चुनाव में डटे थे। भाजपा के प्रदीप कुमार ने इस चुनाव में 1 लाख 58 हजार 376 वोट लेकर सम्मानजनक प्रदर्शन किया। इसके बाद चौधरी देवीलाल ने 1998 में फिर रोहतक से ही ताल ठोक दी। कांग्रेस ने भी हुड्डा पर अपना भरोसा बरकरार रखा।

1998 में हुआ नजदीकी मुकाबला

1998 के चुनाव में चौ. देवीलाल जहां हुड्डा से हार का बदला लेने के लिए पूरी मजबूती से मैदान में आए वहीं इस बार हुड्डा भी जीत की हैट्रिक लगाने की ठान चुके थे। 1998 में रोहतक के चुनाव में आमने-सामने की टक्कर देखने को मिली। कौन हारेगा और कौन जीतेगा, इसका अनुमान लगाना आसान नहीं था। यह चुनाव कितने कांटे का था, इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि हुड्डा के मुकाबले देवीलाल लगातार तीसरी बार महज 383 मतों से चुनाव हारे। हुड्डा को 2 लाख 54 हजार 951 और देवीलाल को 2 लाख 54 हजार 568 वोट मिले। देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला उचाना, महम सहित कई हलकों से चुनाव लड़ चुके हैं। चौटाला पुत्र अजय सिंह भिवानी से सांसद रहे हैं। वे राजस्थान के दो हलकों से विधायक रह चुके हैं और हिसार से भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। उनके छोटे बेटे व ऐलनाबाद विधायक अभय चौटाला पहले भी कुरुक्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं।

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चुनाव से पीछे नहीं हटा परिवार

खुद चौ. देवीलाल कई चुनाव हारे, लेकिन उनका परिवार कभी भी चुनाव से पीछे नहीं हटा। देवीलाल परिवार ने अपने गृह क्षेत्र सिरसा के अलावा प्रदेश के दूसरे जिलों व अन्य प्रदेशों में जाकर चुनाव लड़ने से कभी गुरेज नहीं किया। देवीलाल 1980 में सोनीपत से भी सांसद रहे। उन्होंने जनता पार्टी (सेक्युलर) की टिकट पर कांग्रेस के रणधीर सिंह को हराया। इसके बाद 1984 के चुनावों में चौ. देवीलाल सोनीपत से कांग्रेस के धर्मपाल सिंह से शिकस्त खा बैठे।

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