देव और मानव कल्याण के लिए कूर्म अवतार
राजेंद्र कुमार शर्मा
अयोध्या के राम मंदिर में आज प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम होना है। कुछ राज्यों ने अपने यहां 22 जनवरी को सरकारी छुट्टी घोषित की गई है। एक और जहां अयोध्या में विष्णु अवतार, भगवान राम के विशाल मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का आयोजन किया जा रहा है वहीं पंचांग के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार का अवतरण हुआ था। इस दिवस को कूर्म द्वादशी के रूप में मनाया जाता है।
कूर्म द्वादशी किसको समर्पित
कूर्म द्वादशी हिंदुओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन है। शास्त्रों के अनुसार पौष महीने में शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन में मदद करने हेतु इस दिन कछुए का रूप धारण किया था। हिंदुओं में यह दृढ़ विश्वास है कि इस दिन भगवान विष्णु के कछुए अवतार की पूजा करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
कूर्म द्वादशी के दिन चांदी और अष्टधातु से बने कछुए घर में लाना बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन कछुए को घर और दुकानों पर रखने से लाभ की प्राप्ति होती है। काला कछुआ भी शुभ माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह जीवन में सभी प्रकार की प्रगति की संभावना को बढ़ाता है। इसके साथ ही, कूर्म द्वादशी का व्रत करने से मनुष्य को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पौराणिक साक्ष्य
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय जब देवराज इंद्र ने अहंकार में आकर दुर्वासा ऋषि की बहुमूल्य माला का अपमान कर दिया था, तब दुर्वासा ऋषि ने देवराज इंद्र को श्राप दिया कि वह अपनी सारी शक्तियां और बल खो देंगे और निर्बल हो जाएंगे, जिसका प्रभाव समस्त देवताओं पर भी दिखाई देगा। कुछ समय बाद दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवराज इंद्र के साथ-साथ सभी देवताओं ने अपनी शक्तियां खो दीं। इस बात का फायदा उठाकर दैत्यराज बलि ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को हराकर स्वर्ण पर कब्ज़ा कर लिया। उसके बाद से दैत्यराज बलि का राज तीनों लोकों पर हो गया।
इससे हर तरफ हाहाकार मच गया। सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे मदद की गुहार लगाई। भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना सुनने के पश्चात, उन्हें अपनी खोई हुई शक्ति वापस पाने का रास्ता दिखाया। भगवान विष्णु ने देवताओं को बताया कि ‘समुद्र मंथन करके उससे प्राप्त हुए अमृत से सभी देवों की शक्ति उन्हें फिर मिल जायेगी।’ इस बात को सुन देवता खुश हो गए। परन्तु यह इतना आसान नहीं था, क्योंकि सभी देवता शक्तिहीन हो चुके थे और समुद्र मंथन करना उनके सामर्थ्य में नहीं था।
इस समस्या पर भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा, कि वह ‘समुद्र मंथन के बारे में असुरों को बताएं और असुरों को इस मंथन के लिए मनाएं।’ अब देवताओं के पास असुरों को मनाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था। तब सभी देवता असुरों को मनाने पहुंचे।
उन्होंने असुरों को समुद्र मंथन के बारे में बताया। यह सुन पहले तो असुरों ने मना कर दिया, लेकिन बाद में अमृत के लालच में आकर उन्होंने समुद्र मंथन के लिए ‘हां’ कह दी। इसके बाद, समुद्र मंथन के लिए देवता और असुर दोनों क्षीर सागर पहुंचे। तब मंथन के लिए मंद्राचल पर्वत को मंथी और वासुकी नाग का रस्सी के रूप में प्रयोग किया। मगर जैसे ही मंथन शुरू हुआ, वैसे ही मंद्राचल पर्वत समुद्र में धसने लगा। पर्वत को धसता देख भगवान विष्णु ने कूर्म यानी कछुए का अवतार धारण किया और मंद्राचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लिया। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से ही समुद्र मंथन पूरा हुआ और देवताओं को अमृत की प्राप्ति हुई।
इस वर्ष इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि अयोध्या नगरी में बहुप्रतीक्षित भगवान राम के मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण होकर उसमे प्राण-प्रतिष्ठा के अनुष्ठान के लिए भी इसी पावन दिवस का चयन किया गया है।