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पावन माह की पूर्णता का पर्व कार्तिक पूर्णिमा

06:42 AM Nov 27, 2023 IST

चेतनादित्य आलोक
सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व होता है। यह हिंदू पंचांग का आठवां चंद्र महीना होता है। वैसे तो यह महीना विशेष रूप से मंत्र जाप, स्नान, दान एवं ध्यान आदि करने के लिए प्रसिद्ध है, किंतु शास्त्र बताते हैं कि यह महीना भगवान श्रीहरि विष्णु की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। देखें तो यह पूरा कार्तिक माह ही अत्यंत पवित्र होता है, क्योंकि इस महीने में अनेक व्रतों एवं पर्व-त्योहारों का आयोजन होता है। हालांकि, इन सबमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्तिक पूर्णिमा का व्रत होता है। कार्तिक पूर्णिमा को ‘कार्तिक पूनम’, ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ एवं ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ के रूप में भी जाना जाता है।
शास्त्रों में बताया गया है कि इसी दिन भगवान श्रीहरि विष्णु ने प्रलय काल के दौरान वेदों की रक्षा करने के लिए पहला यानी मत्स्य अवतार लिया था। इसके अतिरिक्त भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध भी किया था। तब प्रसन्नतावश भगवान श्रीहरि विष्णु ने महादेव को ‘त्रिपुरारी’ नाम दिया था। इसीलिए कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि को ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ एवं ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के दौरान महादेव और कृतिकाओं की पूजा करने का शास्त्रों में विधान है। कहते हैं कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न हो, उपासकों पर आशीर्वाद वर्षा करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर वैदिक रीति से भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा करने पर भक्त के घर की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं तथा भक्त को उत्तम स्वास्थ्य एवं धन की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा का शुभ दिन यदि ‘कृतिका’ नक्षत्र में आता है, तो इसे ‘महाकार्तिक’ कहा जाता है।
सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का उत्सव पांच दिनों का होता है, जिसकी शुरुआत प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी के दिन से ही हो जाती है। इस पांच दिवसीय उत्सव में देवोत्थान एकादशी, तुलसी विवाह, भीष्म पंचक, वैकुंठ चतुर्दशी एवं देव दीपावली का त्योहार शामिल होता है। तुलसी विवाह सामान्यतः देवोत्थान एकादशी के दिन से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक महीने की एकादशी और पूर्णिमा के बीच किसी भी दिन तुलसी विवाह का पर्व मनाया जा सकता है। इस अवसर पर भगवान शालिग्राम के साथ देवी तुलसी के विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं।
भीष्म पंचक व्रत भी देवोत्थान एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा को समाप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक माह के अंतिम पांच दिनों के दौरान भीष्म पंचक उपवास का बड़ा महत्व होता है। इसे ‘विष्णु पंचक’ भी कहा जाता है। वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले की जाती है। सामान्यतः इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के भक्त उपवास रखते हैं।
पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि शुक्ल पक्ष में आने वाली वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु ने भगवान शिव की पूजा की थी और उन्हें एक हजार कमल के फूल चढ़ाये थे। यही कारण है कि इस दिन शिवालयों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जहां भगवान शिव के साथ भगवान श्रीहरि विष्णु की भी पूजा की जाती है।

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