शहीद की बेटी का कन्यादान
क्रांतिकारियों ने काकोरी रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से सरकारी खजाना छीना तो पं. रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी तथा अशफाक उल्ला खां को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। ठाकुर रोशन सिंह के परिवार में उनकी पत्नी तथा विवाह योग्य बेटी थी। उनकी पत्नी के सामने बेटी के विवाह की समस्या आ खड़ी हुई। एक तो उनके पास धन का अभाव था, दूसरे जिस युवक के साथ उसके विवाह की बात चलती कि पुलिस का दरोगा उसे धमकी दे आता कि यदि राजद्रोही की बेटी से विवाह किया तो खैर नहीं। एक पड़ोसी युवक यह जानता था कि इस समस्या का हल तेजस्वी व राष्ट्रभक्त पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की सहायता से निकाला जा सकता है। वह कानपुर गया तथा ‘दैनिक प्रताप’ के कार्यालय पहुंचा। उसने विद्यार्थी जी को सारी घटना से अवगत कराया। विद्यार्थी जी ने यह सुना तो उनकी आंखें सजल हो गईं। अगले दिन वे युवक को साथ लेकर दरोगा के पास गए और अपना परिचय देकर कहा, ‘तुम स्वयं हिन्दुस्तानी हो, क्या तुम्हें एक राष्ट्रभक्त शहीद की बेटी के विवाह में अड़चन डालते हुए शर्म नहीं आती? और फिर बेटी चाहे किसी की भी हो उसके विवाह में बाधा डालना घोर पाप है।’ दरोगा का सिर शर्म से झुक गया। उसने उनके चरणों में पड़कर कहा, ‘उस बेटी के विवाह का खर्च मैं वहन करूंगा।’ जब रोशन सिंह की बेटी का विवाह हुआ तो गणेश जी वहां स्वयं उपस्थित थे। पिता शहीद रोशन सिंह की जगह उन्होंने बेटी के कन्यादान की परंपरा निभाई।
प्रस्तुति : डॉ. जयभगवान शर्मा