गारंटियों का औचित्य
पुरस्कृत पत्र
सक्षम बनाने की गारंटी
सभी सियासी दलों ने यह मान लिया है कि मुफ्त की सरकारी सुविधाएं वोट दिलाती हैं। तभी तो सभी राजनीतिक दल, चुनाव आयोग, कानून, राजकोषीय सीमाओं और नैतिक मूल्यों को ठेंगे पर रखकर रेवड़ी राजनीति का खेल खुलकर खेल रहे हैं। मतदाताओं ने भी इस रवैये को अपना खुला समर्थन दे दिया है। जनमानस के व्यवहार में आई इस विकृति पर उपराष्ट्रपति ने भी गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि ज़रूरत जेबों को नहीं, मानवीय मस्तिष्क को सशक्त करने की है। एक तरफ़ उपराष्ट्रपति की यह चिंता और दूसरी तरफ प्रलोभनों को पूरा करने की ‘गारंटी’ और प्रत्युत्तर में ‘गारंटी की गारंटी’। ऐसे में तात्कालिक लाभ लोभ की गारंटियों के औचित्य की बाबत सोचना किसकी प्राथमिकता में रह गया है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
दीर्घकालीन नुकसान
निश्चय ही हालिया विधानसभा चुनावों के परिणामों ने सभी को चौंकाया है। ठीक चुनाव से पहले नया शब्द ‘गारंटी’ आया तो नेताओं ने जमकर खेल खेला। कह सकते हैं कि आज राजनेता ‘गारंटी’ के रूप में अप्रत्यक्ष भ्रष्टाचार द्वारा लोगों के वोटों को अपने पाले में डालने का प्रयास कर रहे हैं। इससे चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ऐसे में उम्मीदवार की योग्यता-अयोग्यता को दरकिनार कर दिया है। इन लाभ-लोभ की गारंटियों का खमियाजा आम जनता से लेकर समाज और देश के आर्थिक तंत्र को भी भुगतना पड़ेगा। बेशक इसका लाभ वर्तमान में जरूर दिख रहा हो, लेकिन दूरगामी परिणाम नुकसानदायक होंगे।
गणेशदत्त शर्मा, होशियारपुर
राष्ट्रीय हित में नहीं
देश में जैसे ही चुनाव की घोषणा होती है, सत्ताधारी व विपक्षी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए तात्कालिक लाभ वाली योजनाओं की बौछार कर देते हैं। वोट लेने के लिए दलों द्वारा राजनीतिक वादे करना गलत नहीं है। सभी दल वादे करते हैं मगर सत्ता में आने के बाद वादे पूरे नहीं किए जाते। मतदाताओं का भी दायित्व बनता है कि वे छोटी-छोटी लाभकारी योजनाओं के आकर्षण से दूर रहें। राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए योग्य उम्मीदवारों को ही मतदान करें। तभी स्थाई लोकतंत्र की नींव पड़ेगी।
श्रीमती केरा सिंह, नरवाना
लोभ लाभ की नीति
हालिया विधानसभा चुनाव में मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी दलों ने गारंटियों की झड़ी लगा दी थी। लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मतदाता गारंटियों के लालच में नहीं आया। मतदान तो दलों की विचारधारा में निरंतरता एवं स्पष्टता, दलों द्वारा केंद्र व अन्य राज्यों में चलाई जा रही सरकारों के गुण-दोष के आकलन के आधार पर हुआ। तेलंगाना में कांग्रेस को कमजोर भाजपा और सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिला। यदि मतदाता इसी तरह गुण दोष परख कर सरकार चुने तो लोभ-लाभ की नीति कभी सफल नहीं होगी।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ.प्र.
जनादेश के निहितार्थ
चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने कांग्रेस की गारंटियों के मुकाबले भाजपा खासकर प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी को चुना। अगले पांच साल का राजनीतिक भविष्य तय हो गया। भाजपा ने उम्मीद से ज्यादा सीटें पा यह साबित कर दिया कि चुनाव में रणनीति ही सबसे ज्यादा कामयाब है। प्रत्याशियों की जल्दी घोषणा करना चुनाव से पहले एक बड़ी जनहितकारी योजना की घोषणा और प्रत्याशी चयन में सतर्कता ही भाजपा की कामयाबी का सबसे बड़ा कारण रहा। महासमर का सेमीफाइनल कहे जा रहे हालिया विधानसभा चुनावों के अप्रत्याशित परिणामों ने सभी को चौंकाया है।
कु. नन्दिनी पुहाल, पानीपत
दूरगामी हित नहीं
नि:संदेह चुनाव से पहले लाभ-लोभ की गारंटियों ने विधानसभा चुनावों में अप्रत्याशित परिणामों के रूप में चौंकाया है। लेकिन इन गारंटियों के चलते चुनाव जातीय संकीर्णताओं व अन्य कटुताओं से मुक्त रहा। हालांकि, विकास को प्राथमिकता की बात कही जा रही है लेकिन अब लगता है कि लाभ-लोभ की गारंटियों वाली खाद से वोटों की फसल उगाना राज्य-देश के विकास पर भारी पड़ता दिख रहा है। गारंटियों के जरिये पार्टियों का मकसद केवल सत्ता हथियाने तक सीमित रह गया है। आम जनता को समझना होगा कि ऐसी गारंटी केवल समाज में असंतोष पैदा करेगी। वहीं इसका खमियाजा भारी करों के रूप में चुकाना पड़ेगा।
रामभज गहलावत, रोहतक
निष्पक्षता पर प्रश्न
चुनाव के नजदीक आते ही हर दल द्वारा लाभ-लोभ की घोषणाओं का अम्बार लग जाता है। एक-दूसरे दल से होड़ लग जाती है। लेकिन मुफ्त के वादों-गारंटियों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त पैसा चाहिए। जिसकी वजह से राज्यों की आर्थिक स्थिति बिगड़ सकती है। बेशक इस तरह की गारंटियों ने विधानसभा चुनावों के परिणामों से सभी को हैरत में डाला लेकिन कीमत जनता को ही नए टैक्स के रूप में चुकानी होगी। ऐसे वायदों से चुनाव भी प्रभावित होते हैं और उनकी निष्पक्षता पर भी सवाल उठता है।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली