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व्यवस्थागत बदलावों से ही  समय पर न्याय

09:57 AM Oct 04, 2023 IST

श्रीगोपाल नारसन
देश में कई जगह जिला उपभोक्ता आयोग में उपभोक्ता शिकायतों की सुनवाई नहीं हो पा रही है या फिर बहुत देरी से हो रही है जिसकी वजह है उपभोक्ता अदालतों में कोरम यानी पर्याप्त संख्या का अभाव। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में लंबे समय से अध्यक्ष या पीठासीन अधिकारियों के पद रिक्त हैं, जिस कारण उपभोक्ता शिकायतों का पंजीकरण तो होता है लेकिन सुनवाई नहीं होती है। कोरम से अभिप्राय है, प्रत्येक उपभोक्ता आयोग में एक अध्यक्ष व दो सदस्य होते हैं जिनमें से एक अध्यक्ष व एक सदस्य का होना आवश्यक है, तभी सुनवाई हो सकती है।

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फैसले का लंबा इंतजार

यदि तीन में से दो पीठासीन न हों तो कोरम यानी संख्या बल पूरा नहीं माना जाता और सुनवाई नहीं हो पाती। यह सच है उपभोक्ताओं के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 बेहद प्रभावी कानून हैं और उपभोक्ता अधिकारों के प्रति जागरूक भी हुए हैं, लेकिन विभिन्न कारणों से न्याय में विलंब हो रहा है। नियमानुसार उपभोक्ता संरक्षण से जुड़े मामलों का निपटारा 90 दिन में हो जाना चाहिए, इसके बावजूद बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जो सालों से फैसले का इंतजार कर रहे हैं। कहीं कोरम का अभाव, कहीं स्टाफ की कमी,कहीं वकीलों की हड़ताल और कहीं उपभोक्ता वादों की अत्यधिक संख्या के कारण उपभोक्ताओं को समय पर न्याय नहीं मिल पा रहा है।

लंबित शिकायतों का अंबार

उत्तराखंड राज्य के कई जिलों की भी हालत यह है कि जिला उपभोक्ता आयोग का कोरम पूरा नहीं है। ऐसे ही मध्यप्रदेश में 51 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों में से 29 जिला उपभोक्ता आयोगों में अध्यक्ष पद ही रिक्त चल रहा है। खाली पड़े इन 29 पदों के लिए मध्यप्रदेश शासन ने हाल ही में कुछ वैकेंसी भी निकाली हैं। मध्य प्रदेश में जिला उपभोक्ता आयोगों में 50 हजार से अधिक शिकायतें सुनवाई के लिए लंबित हैं, लेकिन कोरम के अभाव में इन शिकायतों का निराकरण नहीं हो पा रहा है। अस्थायी व्यवस्था के रूप में पड़ोसी जिलों के आयोगों के अध्यक्षों को 2 से 3 जिलों का प्रभार दिया हुआ है। फाइव-डे वर्किंग और कुछ जिलों में अधिक दूरी होने के कारण औसतन एक दिन से ज्यादा किसी एक जिले में उपभोक्ता आयोग की अदालत नहीं लग पा रही है। कई जिलों में अध्यक्ष के अभाव में जिला उपभोक्ता आयोग ठप है।

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सुनवाई और निस्तारण दर

विभिन्न तकनीकी कारणों से राष्ट्रीय, राज्य व जिला उपभोक्ता आयोगों में समयबद्ध सुनवाई न हो पाने के कारण असम, बिहार, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तराखंड में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों की वादों,अपीलों व निगरानियों की सुनवाई दर 50 प्रतिशत से कहीं कम है, जिससे राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर की उपभोक्ता अदालतों में करीब 700,000 से अधिक मामले लंबित हैं। हालांकि तमिलनाडु, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य आयोगों की सुनवाई दर सबसे अधिक है, जबकि महाराष्ट्र, हरियाणा, तेलंगाना, उत्तराखंड, कर्नाटक, असम, झारखंड और बिहार में विभिन्न कारणों से उपभोक्ता वादों की सुनवाई में शिथिलता आ रही है। जबकि 89 प्रतिशत निस्तारण दर के साथ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में करीब 23 हजार मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं,वही विभिन्न राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों में यह संख्या डेढ़ लाख के पार जा पहुंची हैं। जबकि जिला उपभोक्ता आयोगों में सबसे अधिक करीब 5 लाख मामले सुनवाई के लिए लंबित हैं।
ई-फाइलिंग, ई-सुनवाई आदि की सुविधाओं में समय-समय पर तकनीकी व्यवधान, राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर पर्याप्त पीठासीन अधिकारियों की उपलब्धता न होना, बार-बार स्थगन और अन्य कारणों से उत्पन्न बाधाएं उपभोक्ता अदालतों में न्याय में देरी का कारण बन रही हैं जो गम्भीर चिंता का विषय है।

लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के  वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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