दाग मुक्ति के लिए जेल टूरिज्म
हेमंत कुमार पारीक
आजकल बड़े दागी लोगों के लिए हवाखोरी हेतु जेल सबसे अच्छी जगह मानी जाती है। वैसे पहले वाली जेल अब कहां? पहले जली-कटी मय कंकड़ रोटियां मिलती थीं। मगर अब तो पर्यटन स्थल है। शुद्ध घी का हलवा और हैदराबादी कबाब। जेल तो सुकूनभरी जगह हो गयी है। वहां तो बिन मौसम वसंत-बहार होती है। यह अनुभव जेल जाने और वहां से बाहर आने वाला ही बता सकता है। हवा के हिसाब से जेल के वर्ग भी होते हैं। इन सबमें तिहाड़ नम्बर वन! सबसे ज्यादा मुफीद है। और आजकल तो पर्यटन लायक सर्वसुविधायुक्त हो गयी है। सब कुछ उपलब्ध है वहां। खाने-पीने के अलावा मालिश और पालिश की अंतर्राष्ट्रीय सुविधा भी है।
लिखने-लिखाने की बात तो कीजिए मत। पहले किताब लिखा करते थे वे अज्ञानी थे। फालतू में कागज, स्याही बर्बाद करते थे। साथ में टाइम भी खोटा करते। जबकि अब जेल में रहकर बॉडी सॉलिड बनाते हैं। और चेहरा ऐसे कि देखते ही आंखें चौंधियाने लगे। सौदा कहीं से नुकसान का नहीं है। नंबर दो के करोड़ों कमा लिए। बंगला, गाड़ी और बैंक-बैलेंस बन जाता है। इसके सिवाय लाइफ में क्या रखा है? दो बातें हुईं, मजे में रहे और बेदाग बाहर निकले। चंद दिनों की जेल से और क्या लोगे? बाहर की गंगा मैली और जेल के अंदर पावन गंगा, जमुना, सरस्वती! इन्हीं के पानी के स्पर्श से हवा भी एकदम साफ-सुथरी वसंत बहार मानो।
पाप-मुक्ति का एक तरीका, तीर्थाटन छोड़ एक बार तिहाड़ में हो आइये। तिहाड़ जेल में एक रात भी कट जाए तो मान लो भवसागर से तर गए। गाय की पूंछ पकड़ने की जरूरत ही न होगी। फिर चलता रहे सालो-साल मुकदमा। देश की राजधानी में देखने की तो बहुत-सी चीजें हैं। मसलन कुतुबमीनार, लालकिला, चांदनी चौक, सरोजनी नगर, परांठेवाली गली और ढेर सारे मंदिर और मकबरे वगैरा वगैरा, पर तिहाड़ की बात और है। स्टेशन की दीवार पर लिखा ‘एक बार मिल तो लें’ नयी हवा में बदल गया है। अब लिखा होगा एक बार तिहाड़ हो आएं। पहले चोर-उचक्कों और हत्यारों से भरी होती थी तिहाड़। लेकिन अब शालीन-शाहीन जाते हैं। आजकल मौज-मस्ती का आलम रहता है। इसीलिए माननीय सिर उठाए, हंसते-मुस्कुराते हाथ हिलाते जाते हैं। मालूम है कि लौटते वक्त चेहरा ऊर्जा से देदीप्यमान चमकता होगा।