पीयू को अपना सही स्थान पाने में लगे 25 साल
चंडीगढ़, 7 नवंबर(ट्रिन्यू)
पंजाब विश्वविद्यालय कैसे वजूद में आया और लाहौर से लेकर चंडीगढ़ कैंपस तक विज्ञान और रिसर्च शुरू करने और उसके वर्तमान दौर तक का सफर कैसा रहा। आज के पीयू को बनाने में रसायनविद प्रोफेसर करतार सिंह बावा व अन्य एलूमनाई का क्या योगदान रहा, इस पर केएस बावा व्याख्यान के तहत पीयू के पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर ने प्रकाश डाला। प्रो. ग्रोवर ने उत्तर पश्चिम भारत खासतौर से संयुक्त पंजाब में उच्च शिक्षा और अनुसंधान के विकास पर रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि गुरुदत्त और स्वामी विवेकानंद दोनों समकालीन थे। पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर में रसायन विज्ञान विभाग शुरू हुआ तब गुरुदत्त मल सडाना और उनके समकालीनों जैसे रुचि राम, हंस राज, लाजपत राय, जॉन कैंपबेल ओमान, एक इंडोलॉजिस्ट और प्राकृतिक विज्ञान के पहले प्रोफेसर द्वारा विज्ञान विषयों को पढ़ाने की शुरुआत की याद दिलाता है।
गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर (जीसीएल) विज्ञान में एमए की डिग्री पूरी करने के बाद गुरु दत्त और रुचि राम साहनी को क्रमशः 1886 और 1887 में इसी कालेज में फैकल्टी के रूप में नियुक्त कर दिया गया। स्वतंत्र भारत में चंडीगढ़ में पीयू को देश के प्रमुख अनुसंधान विश्वविद्यालय के रूप में अपना सही स्थान पाने में 25 साल लग गए। 1953 में यूजीसी के पहले चेयरमैन बने प्रो. एसएस भटनागर ने ही टीचर्स की सैलरी में इजाफा किया। उन्हीं के प्रयासों से कौंसिल फार साइटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) बनी और उनके छात्र रहे ब्रह्मप्रकाश ने यूरेनियम फ्यूल पहली बार इंट्रोड्यूज किया।