अफसोस है कि एक व्यक्ति को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए शीर्ष अदालत आना पड़ा : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली, 20 जनवरी (एजेंसी)
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उसे यह देखकर दुख हुआ कि छत्तीसगढ़ के एक गांव में रहने वाले व्यक्ति को पिता के शव को ईसाई रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाने के लिए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा क्योंकि अधिकारी इस मुद्दे को सुलझाने में विफल रहे। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ रमेश बघेल नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उसके पादरी पिता के शव को गांव के कब्रिस्तान में ईसाइयों को दफनाने के लिए निर्दिष्ट स्थान पर दफनाने की इजाजत न देते हुए याचिका निस्तारित कर दी थी। पीठ ने कहा, ‘किसी व्यक्ति को जो किसी विशेष गांव में रहता है, उसे उसी गांव में क्यों नहीं दफनाया जाना चाहिए? शव 7 जनवरी से मुर्दाघर में पड़ा है। यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि एक व्यक्ति को अपने पिता के अंतिम संस्कार के लिए सुप्रीम कोर्ट आना पड़ा। हमें अफसोस है कि न तो पंचायत, न ही राज्य सरकार या उच्च न्यायालय इस समस्या को हल कर सके। हम उच्च न्यायालय की टिप्पणी से हतप्रभ हैं कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या पैदा होगी। हमें यह देखकर दुख हो रहा है कि एक व्यक्ति अपने पिता को दफनाने में असमर्थ है और उसे उच्चतम न्यायालय आना पड़ रहा है।’