अफ़गान शरणार्थी त्रासदी पर चुप इस्लामिक देश
ख़बर भयावह है। ईरान अब तक साढ़े तीन लाख अफ़गान शरणार्थियों को भगा चुका है, इसके साथ ही 500 लाशें अफग़ानिस्तान के हवाले कर चुका है। अफग़ान शरणार्थियों को भगाने का सिलसिला सीमा पार पाकिस्तान से भी शुरू है। ऐसी मानव त्रासदी पर मुसलमान देशों, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग की चुप्पी से हैरान हों, या कि अफसोस करें? अधिकारियों ने कहा कि पिछले छह महीनों में ईरान में मारे गए पांच सौ अफगान आप्रवासियों के शवों को सीमावर्ती नगर, राह-ए-अबरीशम के बरास्ते अफ़गानिस्तान भेज दिया गया है।
दक्षिण-पश्चिम अफ़गानिस्तान का प्रांत निमरोज़ के स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, ये अफग़ान प्रवासी विभिन्न घटनाओं, विशेषकर तस्करी मार्गों में हुई दुर्घटनाओं की वजह से मारे गए हैं। निमरोज़ में आप्रवासी विभाग के प्रमुख अब्दुल्ला रियाज़ बताते हैं कि पिछले छह महीनों में ईरान से 500 शव अफ़गानिस्तान स्थानांतरित किए गए हैं। ये शव कई घटनाओं के कारण हैं, जिनमें ट्रैफिक एक्सीडेंट, प्राकृतिक मौत और गोलियों से हुई मौतें शामिल हैं। निमरोज़ की राजधानी जरंज में सुरक्षा कमांड के एक अधिकारी ने जानकारी दी कि 2023 में हमने डेढ़ सौ से अधिक मानव तस्कर पकड़े हैं।
बुधवार को ईरान में तथाकथित यातायात दुर्घटना में मारे गए 18 वर्षीय आमिर खान का शव अफगानिस्तान ले जाया गया है। आमिर खान के रिश्तेदारों ने बताया कि सगाई के बाद वह काम ढूंढ़ने और अपनी शादी का खर्च उठाने के लिए ईरान गए थे। उन्हें ईरान गए एक साल हो गया था, वह काम में व्यस्त रहते थे, अचानक दोपहर में दुर्घटना के शिकार हो गये। आमिर के एक अन्य रिश्तेदार अब्दुल वली ने कहा, हम ईरानियों से खुश नहीं हैं, वे हमारी मदद करने के बजाय हमें हर जगह परेशान कर रहे हैं। जब ईरान में कोई अफ़ग़ान मारा जाता है, तो उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता; यह ऐसा है जैसे कोई कीड़ा-मकोड़ा मारा गया हो।
कुछ अन्य पीड़ितों के परिवारों ने कहा कि उन्हें अपने रिश्तेदारों के शवों को देश ले जाने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये मौतें संयोग हैं, या सुनियोजित हत्याएं? 500 शव तीन महीनों में ईरान से सीमा पार अफ़गानिस्तान भेजे गये, उसे सही से खंगाला जाए तो संदेह होता है। ईरान से जो लोग ज़िंदा वापस लौट रहे हैं, उनके बयान सुनकर कोई भी सिहर जाए। ईरान से लौटने वालों के अनुसार, ‘हमें शारीरिक यातनाएं दी गईं, ईरानी सेना के दुर्व्यवहार ने हमारे मनोबल को तोड़ कर रख दिया। निमरोज़ प्रांत में इमिग्रेशन विभाग के प्रमुख अब्दुल्ला रियाज़ ने जानकारी दी कि पिछले दो महीनों में ईरान से लौटे 120,000 शरणार्थियों में से 90 फीसद को जबरन निर्वासित कर दिया गया है।
ज़्यादातर शरणार्थी पुल-ए अब्रीशम के रास्ते अफ़गानिस्तान में प्रवेश कर रहे हैं। कार्यवाहक शरणार्थी और प्रत्यावर्तन मंत्री खलील रहमान हक्कानी 8 दिसंबर को निमरोज़ आये, उन्होंने ईरानी बलों द्वारा अफगान शरणार्थियों के साथ दुर्व्यवहार की आलोचना की। खलील रहमान हक्कानी ने कहा कि हमारी सरकार देश में काम के अवसर सृजित कर पड़ोसियों और अन्य देशों में अवैध आप्रवासन को रोकने के प्रयास कर रही है। लेकिन जो व्यवहार ईरान के सैनिक हमारे नागरिकों के साथ कर रहे हैं, वो अमानवीय है।
उन्होंने कहा कि इस्लामिक अमीरात ने देश के अंदर रोजगार के अवसर प्रदान करने के प्रयास शुरू कर दिए हैं, ताकि इन युवाओं को देश छोड़ना न पड़े। हक्कानी ने कहा, ‘हम उनके लिए देश के अंदर काम के अवसर प्रदान करना चाहते हैं ताकि इन युवाओं को देश छोड़ना न पड़े और वे अपनी पढ़ाई भी जारी रख सकें।
ईरान से निकाले गए कई शरणार्थियों ने उस देश में पुलिस के दुर्व्यवहार के बारे में बात की। एक पीड़ित बेस्मेल्ला आपबीती बताते हैं, ‘हमने सब कुछ खो दिया। जहां हम गए, उन्होंने हमारे पैसे छीने और हमें बुरी तरह पीटा, अफ़गानों की वहां औकात नहीं है। वे हमें गिरफ्तार करते हैं, हमारे पैसे ले लेते हैं और हमें पीटते हैं। हमें अपने देश में काम नहीं मिलता है, हम अपने परिवारों को छोड़कर ईरान चले जाते हैं।’
लेकिन यह गंभीर हालात केवल ईरान सीमा पर नहीं है, पाकिस्तान भी अफ़गान शरणार्थियों के साथ ऐसा ही सुलूक कर रहा है। शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) के अनुसार, पाकिस्तान में लगभग 13 लाख अफ़गान शरणार्थी हैं, जिनमें से 8 लाख 40 हज़ार रिफ्यूज़ी को पाकिस्तान ने नागरिकता कार्ड जारी कर रखा है। लेकिन अफ़गान शरणार्थियों की यह संख्या सटीक नहीं है। यूएनएचसीआर के हवाले से कुछ ख़बरें बताती हैं कि पाकिस्तान में 17 लाख अफ़ग़ान शरणार्थी हैं।
पाकिस्तान सरकार ने 1 नवंबर, 2023 तक बिना सिटीजनशिप कार्ड वाले अफ़गान शरणार्थियों को वतन वापसी की समय सीमा निर्धारित कर दी थी। कुछ मानवाधिकार संगठन इस आदेश के खि़लाफ़ अदालत भी गये, लेकिन वहां से कोई राहत नहीं मिली। पाकिस्तान में एक्टिव मानवाधिकार संस्थाओं के अनुसार, 2023 मंे 3 लाख 70 हज़ार अफग़ान शरणार्थियों को उनके वतन बलपूर्वक भेजा जा चुका है।
एमनेस्टी इंटरनेशनल के डेप्युटी रिजनल डायरेक्टर लीविया सकार्दी ने जानकारी दी कि पाकिस्तान ने 49 हिरासत केंद्र बना रखे हैं, जहां अफग़ान शरणार्थी रखे गये थे। ऐसे डिटेंशन सेंटरों में शरणार्थी महीनों दुर्गति झेलते रहे, अब उन्हें वहां से निकालकर सीमा पार अफ़गानिस्तान जबरन भेजा जा रहा है। लीविया सकार्दी ने यह भी कहा, ‘2021 में अमीरात के सत्ता में आने के बाद से 200 से अधिक अफ़गान पत्रकार पाकिस्तान में हैं। उनके साथ भी शासन का रवैया अमानवीय रहा है।’
जो सबसे भयावह है, वो ये कि इन डिटेंशन सेंटरों में औरतें और टीन एज बच्चे सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तानी पुलिस अधिकारी या सेना वाले उन्हें जबरन उठा ले जाते हैं, ऐसी कई घटनाओं का हवाला एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिया है। अब सवाल है कि ऐसे सितम रोकने की ज़िम्मेदारी किसकी है? ज़ेरे बहस यह भी होनी चाहिए कि दुनियाभर में मुसलमानों पर होने वाले सितम पर जो संगठन मुखर होते हैं, सड़कों पर उतर आते हैं, वो इस मानव त्रासदी पर चुप क्यों हैं? आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (ओआईसी) की बैठकों में अफग़ानिस्तान से विस्थापन पर बात नहीं होती। ईरान से 500 अफग़ानों के शव आना कोई साधारण घटना नहीं है। ईरान ग़ाजा में नरसंहार पर चिंता करता है, लेकिन अपने यहां से अफ़गानिस्तान से आबोदाना आशियाना के लिए शरण में आये लोगों को भगा रहा है। तुर्की इस सवाल को लेकर संज़ीदा नहीं है। अफ़गान नागरिक जिस त्रासदी के शिकार हुए, उसके लिए अमेरिका भी कम ज़िम्मेदार नहीं है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।