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इंटरनेट प्रतिबंध से ठप होता जनजीवन

07:30 AM Mar 04, 2024 IST

जन संसद की राय है कि बार-बार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाना जनजीवन ठप करने जैसा है। जब स्थिति अपरिहार्य हो तब सीमित समय के लिये ही रोक होनी चाहिए। इस तरह की रोक से डिजिटल अभियान को भी झटका लगता है।

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पुरस्कृत पत्र

नीति में विरोधाभास
भारत में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने की प्रवृत्ति इतनी अधिक देखी गई है कि भारत को इंटरनेट प्रतिबंध का बादशाह तक कहने पर लोग मजबूर हो गए हैं? एक तरफ तो सरकार डिजिटल इंडिया की कामयाबी पर इतराती है। लोगों को ज्यादा से ज्यादा बैंकिंग, कारोबार, लेन-देन और पढ़ाई को ऑनलाइन करने की दुहाई देती है। वहीं दूसरी ओर एक झटके में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा देती है। इंटरनेट के इस्तेमाल पर प्रतिबंध सीमित, कानूनी तौर पर वैध और अपरिहार्य होना चाहिए।
रिया पुहाल, पानीपत

न्यायसंगत नहीं

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अभी तो डिजिटल युग की शुरुआत है। भविष्य के युद्ध पारंपरिक न होकर डिजिटल या साइबर युद्ध होंगे। दुश्मन देश डिजिटल व्यवस्था पर साइबर हमले कर के आपको हराने की कोशिश करेंगे। क्या तब भी आप इंटरनेट बंद करके बैठ जाएंगे? नहीं। तब आप साइबर हमले रोकने और हमले करने की कोशिश करेंगे। आंतरिक मामलों में इंटरनेट के दुरुपयोग पर सरकार को न्यायसंगत होना चाहिए। बार-बार इंटरनेट का दुरुपयोग करने वालों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
बृजेश माथुर, गाजियाबाद, उ‍.प्र.

मौलिक अधिकारों का हनन


किसान आंदोलन के चलते पंजाब-हरियाणा के कुछ जिलों में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगाना मौलिक अधिकारों की अनदेखी है। सरकार के अनुसार कानून व्यवस्था में ऐसा करना जरूरी है। प्रतिबंध से मानव दिनचर्या से जुड़े व्यापार, ऑनलाइन बैंकिंग, परीक्षा साक्षात्कार, स्वास्थ्य सेवाओं के प्रभावित होने से जनजीवन थम जाता है। इंटरनेट बंद होना विकास का पहिया रुकना है। अर्थव्यवस्था के नुकसान के मद्देनजर तथा जनहित में इंटरनेट बंद नहीं होना चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल

प्रतिबंध से बचें


किसान आंदोलन के मद्देनजर पंजाब तथा हरियाणा के कुछ जिलों में इंटरनेट का बंद करना मौलिक अधिकार का हनन है। सरकार इसे कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी समझती है। परंतु इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाने से सामान्य जनजीवन ठप हो जाता है, व्यापार तथा ऑनलाइन भुगतान पर बुरा असर पड़ता है, विद्यार्थियों की परीक्षा तथा नौकरी के लिए इंटरव्यू देने वालों को भी परेशानी उठानी पड़ती है। इससे करोड़ों लोगों को दिक्कत होती है। जहां तक हो सके सरकार इस प्रकार के प्रतिबंध से बचे।
शामलाल कौशल, रोहतक

अन्याय क्यों


डिजिटल युग में बिना इंटरनेट जीवनयापन संभव नहीं है। आम आदमी के लिए इंटरनेट पर प्रतिबंध मुश्किल खड़ी कर देता है। लेकिन इसमें कहीं न कहीं आम आदमी के साथ ही खेल खेला जा रहा है। पूंजीपति वर्ग वाईफाई के जरिए अपना हर काम करता है। उसे जरा भी फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो आम आदमी को पड़ता है जिनके छोटे-मोटे कामकाज हैं और वाईफाई की सुविधा नहीं ले सकते। अगर सरकार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाती है तो पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती। आखिर आम आदमी के साथ ही अन्याय क्यों होता है।
सतपाल, कुरुक्षेत्र

गैर-लोकतांत्रिक कदम


आधुनिक काल में इंटरनेट जीवन जीने का पर्याय बन गया है। वर्तमान समय में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगने से नागरिकों की दिनचर्या प्रभावित होती है। व्यापार को भी करोड़ों का नुक़सान उठाना पड़ता है। विद्यार्थियों की पढ़ाई में अत्यधिक व्यवधान उत्पन्न होता है। इंटरनेट सेवा बंद करने को गैर लोकतांत्रिक कदम के तौर पर देखा जाता है। इंटरनेट सेवा बंद हो जाए तो जनजीवन ठप हो जाता है। सरकार दुष्प्रभाव और साइबर हमलों को रोकने की दलील देती है। सरकार को जनता के हितों को ध्यान में रखकर इंटरनेट सेवा पर आवश्यकता अनुसार कदम उठाने चाहिए।
जयभगवान भारद्वाज, नाहड़

नियमन जरूरी
सरकारी तंत्र द्वारा बात बात पर इंटरनेट सुविधा को स्थगित करने के कदम ने नागरिकों की दिनचर्या, कारोबार, शिक्षा जगत और मौलिक अधिकारों को बुरी तरह प्रभावित किया है। नि:संदेह सोशल मीडिया पर नफ़रत फैलाने वाले कंटेंट प्रसारित करके कुछ अवसरवादी लोग सामाजिक समरसता को नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं। वहीं सरकारी तंत्र ऐसे कुत्सित कदमों से निपटने के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ इंटरनेट सेवाओं के स्थगन का सहारा लेते हैं। इस रस्साकशी में ठप होता जन-जीवन किसी को दिखाई नहीं देता। अब समय आ गया है कि इंटरनेट पर प्रतिबंध कब, क्यों और कितने समय के लिए लगाया जाए, ऐसा कोई ठोस निर्णय ले लिया जाए। ताकि नागरिकों के मौलिक अधिकारों को अक्षुण्ण रखा जा सके।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल

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