चींटियों से प्रेरणा
एक व्यक्ति के कई लड़के थे, सभी बहुत चतुर। लेकिन वे सभी अपने को बुद्धिमान मानते थे। कुशलता पर अहंकार करते और एक-दूसरे से बात-बात में टकराते रहते थे। पिता ने उनका अहंकार उतारने की सोची। पिता ने एक कटोरी चीनी और मिट्टी मिलाकर वहां रख दी, जहां चींटियों का बिल था। लड़कों को बुलाकर कहा-वे लोग चीनी और मिट्टी के कण अलग-अलग कर दें। लड़के लगे रहे। बहुत समय बीत जाने पर भी अभी चौथाई काम नहीं निपटा और चले गए। रात गए व्यक्ति लौटा तो उनसे उसे चीनी व मिट्टी को अलग करने के काम को निपटाने की बाबत पूछताछ की। लड़कों ने अज्ञानता प्रकट कर दी। पिता वहां गया जहां सम्मिश्रण बिखरा पड़ा था। देखा तो उसमें से चीनी नदारद। पिता ने पूछा-बताओ तुम में से किसने चीनी निकाली। लड़कों ने फिर अपनी गैरजानकारी व्यक्त कर दी। पिता ने कहा-देखो, उसे छोटी-सी चींटियां मिल-जुलकर बीन ले गईं। तुम्हारे पास चींटी जितनी भी अक्ल नहीं है। उनकी तरह मिल-जुलकर काम नहीं कर सकते। लड़कों काे अपने अहंकार का अहसास हुआ।
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि