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मत्स्य पालन इकोसिस्टम को बढ़ावा देने की पहल

08:41 AM Feb 13, 2024 IST
मत्स्य पालन इकोसिस्टम को बढ़ावा देने की पहल
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अभिलक्ष लिखी
वित्तीय साल 2024-25 के लिए अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के क्रियान्वयन में तेजी लाना एक उल्लेखनीय बिंदु है। इसका प्रयोजन मौसम में हो रहे बदलावों के प्रति सहनीय जल-कृषि, समुद्री उत्पादन, निर्यात में बढ़ोतरी और रोजगार के अवसर पैदा करना है। पिछले 10 सालों में, मछली उत्पादन दर में सालाना 8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है, जो कि वर्ष 2022-23 में सर्वोच्च मात्रा को छूते हुए 175.45 लाख टन रही, जबकि 2013-14 में उत्पादन 95.79 लाख टन था (इसमें 75 फीसदी उत्पादन योगदान देश के के भीतर मीठे, कम खारे और खारे पानी के मछली पालन का है)। बड़ी बात कि 2022-23 में प्रति हेक्टेयर मछली उत्पादन 4.7 टन रहा, जो कि 2013-14 में 3 टन था। दूसरी ओर, हमारे सी फूड निर्यात में मुख्यतः बर्फ में लगा झींगा– 111 प्रतिशत का इजाफा दर्ज हुआ है।
इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत अनेकानेक सफलता गाथाएं फली-फूलीं। इस केंद्रीय योजना और राज्य सरकारों एवं केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों के सहयोग से मत्स्य उत्पादन संवर्धन में प्राथमिक एवं उच्चतर स्तर पर 2.8 करोड़ मछुआरों-मछली पालकों को पेश आ रही समस्याओं को दूर किया गया। उदाहरणार्थ सौम्या सत्यानारायणा कर्नाटक के एक मछली पालक हैं और रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम तकनीक को अपनाकर, बहुत महंगी बिकने वाली मछली, जैसे कि तिलापिया का उत्पादन सफलतापूर्वक कर रहे हैं। इस तकनीक से जहां मछली घनत्व बढ़ता है वहीं पानी की बचत भी होती है। झारखंड से नवकिशर गोप एक मछली पालक हैं, जो केज-कल्चर के जरिये पैंगसियस किस्म की मछली का उत्पादन कर रहे हैं, इस तकनीक में चारा डालने, पानी बदलते रहने और समय पर फसल लेने पर ध्यान देना शामिल है। हरियाणा के सिरसा की कुलदीप कौर अपने 1 हेक्टेयर के खारे खेत में बनाए मछली तालाब में झींगा उत्पादन कर रही हैं।
मत्स्य पालन विकास गाथा में महत्वपूर्ण अवयव है बुनियादी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना जैसे कि तटीय सूबों में मछली बंदरगाह और आगत-निर्गम केंद्र स्थापना। जल के भीतर कृत्रिम चट्टानों के निर्माण और समुद्र-नदियों में बाड़ाबंदी कर मछली का बीज डालकर मूल भंडार का घनत्व बढ़ाने पर सतत ध्यान दिया गया। ठीक इसी वक्त, मछुआरे महिला-पुरुषों के लिए अनेक सामाजिक कल्याण पहलकदमियों के लिए जरूरत के अवयव मुहैय्ाा करवाए गए। इनमें मछली के प्रजनन काल के दौरान शिकार पर प्रतिबंध वाले महीनों में जीवनयापन सहायता, दुर्घटना जीवन बीमा रकम में बढ़ोतरी और मत्स्य क्षेत्र में किसान क्रेडिट कार्ड से संस्थागत उधार मुहैया कराना शामिल है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना ने इस पुनीत विकास में तेजी के लिए पूर्णरूपेण सरकारी प्रयासों को सम्बल दिया है। छोटे स्तर के मछुआरों या मछली पालकों के जीवन को बेहतर बनाने, अंतरदेशीय और समुद्री मत्स्य उत्पादन क्षेत्र को आगे विकसित करने के लिए विशेषज्ञ कुछ अन्य विषयक जरूरतों को सुदृढ़ करने पर जोर देते हैं।
प्रथम, प्रतिस्पर्धा और पैमाने की बचतों में इजाफे के लिए क्लस्टर अथवा क्षेत्र आधारित तरीके अपनाना। एक्वापार्क बनाने की शुरुआत इन उपायों को अपनाने का प्रमाण है। इन पार्कों के जरिये सकल उत्पादन तंत्र का स्वरूप पहिए में धुरे और तीलियों की तर्ज पर सोचा गया है जिसमें केंद्र में धुरे के तौर पर है उत्तम गुणवत्ता वाली मछली का उत्पादन और तीलियों के रूप में बीज, चारे, फसल उपरांत प्रसंस्करण तंत्र, खरीद-फरोख्त सुविधा इत्यादि। यह मत्स्य संवर्धन पार्क अन्य वैकल्पिक आमदनी जैसे कि जल-बूटी, एक्वेरियम में रखी जाने वाली सुंदर मछलियों और मोतियों का उत्पादन के मौके भी प्रदान करेंगे। इस प्रकार के पार्क तमिलनाडु, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड में निर्माणाधीन हैं।
द्वितीय, नवउद्यमों के लिए उद्यमित्ता एवं नवाचार के जरिये निजी क्षेत्र की भागीदारी वाला सक्रिय माहौल बनाना। ज़ारा बायोटेक नामक स्टार्टअप इसका एक उदाहरण है, जो प्रशासनिक एवं विभागीय मदद से, जल-बूटी और प्रवाल-आधारित उत्पादन कर रहा है। उत्पादों की बिक्री ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के जरिये हो रही है, यहां तक कि यूके, ऑस्ट्रेलिया, जापान को निर्यात हो रहा है। मछलियों की बीमारियों की शिनाख्त, जल गुणवत्ता निगरानी और स्वचालित चारा मशीन प्रणाली बनाने वाले संलग्न नवउद्यमों की उपस्थिति में भी इजाफा होने लगा है।
तृतीय, उत्पादक और सहकारी संगठनों के जरिये प्रभावी भागीदारी बनाकर मछली भावों की सौदेबाजी में मछुआरों व मछली पालकों का हाथ ऊपर किया जा सकता है। ऑरोफिश नामक सहकारी संगठन इसका एक उदाहरण है, जो पुड्डुचेरी के अनिथा मुत्थूवेल द्वारा चलाया 20 मछुआरा समूहों का नेटवर्क है। सहकारी उद्यम मछली की खरीद जिम्मेवारीपूर्वक करते हुए बाजार में ‘रेडी टू ईट’ उत्पाद पेश करते हैं। ऐसे सहकारी और मछली उत्पादन संघों का आपस में समन्वय बनवाकर, डिजिटल व्यापार हेतु ओपन नेटवर्क बनाने के यत्न भी हो रहे हैं।
चतुर्थ, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने और तकनीकी रूप से उन्नत और नवीनतम संपर्क व्यवस्था से लैस मछली पकड़ने वाले जहाज निर्माण को बढ़ावा। कोचिन शिपयार्ड ऐसे उन्नत जहाजों का निर्माण कर रहा है तो स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने स्वदेशी तकनीक से विकसित करके आपातकालीन संदेश प्रेषण, मछली की बहुतायत वाले जलक्षेत्र की शिनाख्त और रियल टाइम में संपर्क बनाए रखने वाला तंत्र विकसित किया है। सतततापूर्ण मछली उत्पादन और बंदरगाहों पर साफ-सफाई पूर्ण उठान-लदान-भंडारण बनाने के साथ ही समुद्र में गए मछुआरों की सुरक्षा यकीनी बनाना जरूरी है।
पंचम, शृंखला के अंतिम छोर तक उत्पाद पहुंचाने हेतु संलग्न सेवाओं वाला तंत्र स्थापित करना। इसके लिए तटीय जिलों में ‘सागर मित्र’ योजना के तहत युवाओं को साथ जोड़ने की योजना शुरू की गई है। वे बंदरगाहों और लदान केंद्रों पर सामान्य कार्यों के अलावा प्राप्त मछली का हिसाब-किताब रखने में सहायक होंगे। साथ ही, तटीय जिलों में ‘सागर परिक्रमा’ नामक एक प्रेरक पहलकदमी हुई है, उद्देश्य है, सरकार के उच्चतम स्तर पर बैठे अधिकारियों द्वारा सामुदायिक बैठकों के जरिये मछुआरों से रूबरू होकर वास्तविक स्थिति जानना। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि मत्स्य प्रबंधन एवं नियामक तंत्र ऐसा बनाना होगा जिससे कि ईज ऑफ डुइंग बिजनेस प्रभावशाली ढंग से फलीभूत हो सके। तटीय जल-कृषि प्राधिकरण (संशोधन) कानून 2023 में मत्स्य फार्म और मछली-बीज उत्पादन का पंजीकरण सरल बनाया गया है। इसमें झींगा और मत्स्य कृषि निर्यात में हो रहे इजाफे के मद्देनज़र बीमारियों की निगरानी की जरूरत पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।
इसके अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में मत्स्य जैविकी सुधार, प्रजाति विविधीकरण और मछली उत्पादन पर मौसम में हो रहे बदलावों के असर पर अग्रणी खोज जारी है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के क्रियान्वयन में तेजी लाने के लिए केंद्रीय कैबिनेट ने विश्व बैंक के सहयोग से 6000 करोड़ रुपये की उप-योजना को मंजूरी दी है। इससे कार्य शिनाख्त में डिजिटल तकनीक के समावेश को सम्बल मिलेगा। इस राह से नवउद्यमों सहित सूक्ष्म, लघु उद्यमों को उत्पादन मूल्य शृंखला कार्यकुशलता व तलाश क्षमता सुदृढ़ करने को प्रोत्साहन दिया जाएगा। संस्थागत उधार तक पहुंच में इजाफा करने और फसल का बीमा करवाने को प्रोत्साहित करना ध्यान का एक अन्य बिंदु होगा। यह सब भारत में आजीविका और पौष्टिकता प्रदान करने वाले इस ‘सूर्योदय क्षेत्र’ के लिए बड़ा बदलावकारी सिद्ध होगा।

लेखक केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन एवं डेरी मंत्रालय में सचिव हैं, व्यक्त विचार निजी हैं।

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