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घरेलू बाजार में महंगाई नियंत्रण की कवायद

07:48 AM Aug 09, 2023 IST

चावल निर्यात पर रोक

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नंदकिशोर सोमानी

भारत सरकार द्वारा गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद वैश्विक खाद्यान्न संकट और अधिक गहरा गया है। रूस के काला सागर अनाज समझौते से बाहर निकल जाने के कारण दुनिया के बाजार पहले से ही खाद्यान्न संकट से जूझ रहे थे। अब भारत सरकार के इस फैसले ने बाजार की नींद उड़ा दी है। प्रतिबंध की खबर आते ही वैश्विक बाजारों में हलचल बढ़ गई। जनता से लेकर व्यापारियों तक ने चावल का भंडारण करना शुरू कर दिया है। अमेरिका के सुपर मार्केट्स में चावल की कीमतें आसमान पर पहुंच गई हैं। दुकानों के बाहर ग्राहकों की लंबी कतारें दिख रही हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि जो माल रास्ते में है, उसकी कीमत भी 50-100 डॉलर प्रति टन तक बढ़ गई है। पूरे घटनाक्रम पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने आक्रामक रुख दिखाया है और कहा है कि भारत को प्रतिबंध हटा लेना चाहिए अन्यथा जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए।
दरअसल, पिछले कुछ समय से देश के भीतर खाद्य पदार्थों की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। चावल की घरेलू कीमतों में साल भर में करीब 11.5 फीसदी का इजाफा हुआ है। विपक्ष महंगाई के नाम पर सरकार को कठघरे में खड़े कर रहा है। टमाटर की कीमतों को लेकर लोग सरकार से सवाल कर रहे हैं। अगले कुछ महीनों में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार को अंदेशा था कि अनाज की बढ़ती हुई कीमतें चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकती हैं। इसलिए सरकार ने घरेलू बाजार में गैर-बासमती चावल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने और कीमतों पर लगाम लगाने के लिए तत्काल प्रभाव से चावल के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया। हालांकि, इससे पहले सरकार ने पिछले साल अगस्त में गैर-बासमती चावल के निर्यात पर 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगा कर देश में चावल की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिश की थी। लेकिन स्थिति में बहुत ज्यादा परिवर्तन न देखकर अब इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
हालांकि, सरकार के इस निर्णय को सियासी लाभ की दृष्टि से उठाया हुआ कदम कहा जा रहा है। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल की बढ़ती कीमतों के लिए अकेले भारत को ही जिम्मेदार ठहरना सही नहीं है। दरअसल, दुनियाभर में निर्यात होने वाले चावल की 90 फीसदी फसल एशिया में पैदा होती है। पिछले कुछ समय से अल-नीनो और मौसम में बदलाव की वजह से चावल उत्पादन में कमी आने की आशंका व्यक्त की जा रही थी। उत्पादन से जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण बड़े अनाज व्यापारियों ने चावल का स्टॉक करना शुरू कर दिया। परिणाम स्वरूप कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई। द्वितीय, रूस के काला सागर अनाज समझौते से बाहर निकलने के निर्णय के चलते खाद्यान्न की कीमतें बढ़ी। अब भारत सरकार के इस फैसले के बाद उसमंे और तेजी आ गई। तृतीय, चावल निर्यात करने वाले देशों की सूची में भारत के बाद क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर थाईलैंड और वियतनाम आते हैं। चावल निर्यात के मामले में दोनों देशों को भारत का प्रतिस्पर्धी कहा जाता है। जुलाई अंत में भारत ने जैसे ही चावल निर्यात पर रोक का ऐलान किया वैसे ही इन दोनों देशों ने निर्यात पर 10 फीसदी कीमतें बढ़ा दी। नतीजतन अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चावल महंगा हो गया। वहीं देश के भीतर चावल की कीमतें बढ़ने की बड़ी वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य में हुए इजाफे को कहा जा रहा है।
भारत पिछले कुछ वर्षों से दुनिया का शीर्ष चावल निर्यातक देश बना हुआ है। विश्व के कुल चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। करीब 140 देश भारत से गैर बासमती चावल खरीदते हैं। साल 2022 में भारत ने रिकॉर्ड 22.2 मिलियन टन चावल का निर्यात किया था। देश से गैर-बासमती चावल का कुल निर्यात 2022-23 में 4.2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था। जो इससे पहले वित्त वर्ष 2021-22 में 3.3 मिलियन डॉलर का था। मौजूदा वित्त वर्ष 2023-24 (अप्रैल-जून) में 15.54 लाख टन गैर बासमती चावल का निर्यात किया गया है, जो पिछले साल के मुकाबले 35 फीसदी ज्यादा है। दरअसल, दुनिया के चार सबसे बड़े निर्यातक देश थाईलैंड, वियतनाम, पाकिस्तान और अमेरिका चावल का जितना निर्यात करते हैं, भारत अकेला उनसे अधिक निर्यात करता है। ऐसे में भारत द्वारा चावल निर्यात पर रोक लगाए जाने के फैसले बाद वैश्विक आपूर्ति में करीब एक करोड़ टन की कमी आ सकती है। थाईलैंड और वियतनाम की स्थिति ऐसी नहीं है कि इस बड़ी कमी को पूरा कर सकें। यही वजह है कि खाद्यान्न संकट से जूझ रहे देशों के माथे पर चिंता की लकीरें उभरने लगी हैं। खासतौर से उन छोटे अफ्रीकी देशों के जो भारत से आने वाले अनाज पर निर्भर करते हैं।
हालांकि, देश के भीतर भी सरकार के इस फैसले को बहुत अच्छा नहीं माना जा रहा है। अनुमान है कि प्रतिबंध के इस फैसले से भारत को कई मोर्चों पर नुकसान उठाना पड़ सकता है। जानकारों का कहना है कि थाईलैंड और वियतनाम की तर्ज पर भारत को भी निर्यात मूल्य में वृद्धि कर बढ़ी हुई कीमतों का फायदा उठाना चाहिए था। दूसरा, इस कदम से देश के किसानों को निराशा होगी। निर्यात पर प्रतिबंध के फैसले के कारण देश के किसान उस लाभ से वंचित रह जाएंगे जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ी हुई कीमतों के चलते उन्हें मिल सकता था। इससे किसान धान की खेती से मुंह फेरने लगेंगे। तृतीय, सबसे अहम बात यह है कि सरकार के इस फैसले से वैश्विक बाजार में भारत की विश्वसनीय व्यापारिक साझेदार की छवि पर बट्टा लग सकता है। ऐसे में भारत को अपने फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए।

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