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खिलौनों के वैश्विक बाज़ार में भारतीय दस्तक

06:33 AM Apr 12, 2024 IST
जयंतीलाल भंडारी

हाल ही में केंद्रीय व्यापार एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक भारत के खिलौना उद्योग ने वित्त वर्ष 2014-15 से वित्त वर्ष 2022-23 के बीच तेजी से प्रगति की है और निर्यात में 239 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी ओर आयात में 52 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। नि:संदेह इस समय पूरी दुनिया में यह रेखांकित हो रहा है कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान से भारत का खिलौना उद्योग नई ऊंचाई पर है। स्थिति यह है कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान ने खिलौना विनिर्माण क्षेत्र में चीन को झटका देते हुए खिलौना निर्माण को भारत के लिए फायदे का सौदा साबित कर दिया है।
गौरतलब है कि चीन से खिलौनों की खरीदारी करने वाले कई खरीदार अब तेजी से भारत की ओर रुख कर रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है कि दुनिया में कोई एक दशक पहले खिलौनों की भारत से मुश्किल से ही किसी तरह की खरीदारी होती थी। लेकिन मेक इन इंडिया के कारण कई बड़ी-बड़ी खिलौना कंपनियों ने भारत में खासतौर से दिल्ली में अपना आधार तैयार किया है, जो आज अंतर्राष्ट्रीय खिलौना कंपनियों को भी आपूर्ति करती है। इस समय हैस्ब्रो, मैटल, स्पिन मास्टर और अर्ली लर्निंग सेंटर जैसे खिलौनों के वैश्विक ब्रांड आपूर्ति के लिए भारत पर अधिक निर्भर हैं। साथ ही खिलौनों के लिए विश्व प्रसिद्ध इटली की दिग्गज कंपनी ड्रीम प्लास्ट, माइक्रोप्लास्ट और इंकास आदि खिलौनों के लिए अपना ध्यान धीरे-धीरे चीन से भारत पर केंद्रित कर रही हैं।
अब वह समय बीत गया है कि जब पांच-छह वर्ष पहले तक भारत खिलौनों के लिए बहुत कुछ दूसरे देशों पर निर्भर था और भारत में 80 फीसदी से अधिक खिलौने चीन से आयात किए जाते थे। साथ ही लगातार विभिन्न सर्वेक्षणों में कहा जा रहा था कि चीन से आयातित दो-तिहाई खिलौने असुरक्षित थे। चीनी खिलौने में सीसा, कैडमियम और बेरियम के असुरक्षित तत्व पाए गए थे। अब भारत से खिलौनों के तेजी से बढ़ते हुए निर्यात और घटते हुए आयात का नया लाभप्रद अध्याय भी रेखांकित हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस समय देश और दुनिया में भारतीय खिलौना उद्योग की बहुत कम समय में हासिल ऐसी सफलता रेखांकित हो रही है, जिसकी कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। इस समय चारों ओर भारत के सस्ते और गुणवत्तापूर्ण खिलौना उद्योग का सुकूनदेह परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है। साथ ही भारत का खिलौना निर्यात पांच-छह वर्षों में तेजी से बढ़कर 2600 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है। भारत से अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, आस्ट्रेलिया, यूएई, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों को खिलौने निर्यात किए जा रहे हैं। इस समय भारतीय खिलौना उद्योग का कारोबार करीब 1.5 अरब डॉलर का है जो वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का 0.5 फीसदी मात्र है। लेकिन जिस तरह भारत में खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है, उससे खिलौना उद्योग छलांगें लगाकर बढ़ते हुए इसी वर्ष 2024 में 3 अरब डॉलर तक की ऊंचाई पर पहुंचने की संभावनाएं रखता है।
यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि देश और दुनिया में भारतीय खिलौना बाजार को ऊंचाई मिलने के कई कारण हैं। इसमें कोई मत नहीं है कि ‘मन की बात’ के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार देश के लोगों को स्वदेशी भारतीय खिलौनों को खरीदने, घरेलू डिजाइनिंग को सुदृढ़ बनाने, भारत को खिलौनों के लिए एक वैश्विक विनिर्माण हब बनाने की अपील की। खिलौनों की बिक्री के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की मंजूरी जरूरी होना, संरक्षणवाद, चीन-प्लस-वन रणनीति और मूल सीमा शुल्क बढ़ाकर 70 प्रतिशत किए जाने से भारत के खिलौना उद्योग में तेजी आई है। बीआईएस मानक चिन्ह वाले खिलौनों के निर्माण के लिए बीआईएस ने घरेलू निर्माताओं को 1200 से अधिक लाइसेंस और विदेशी निर्माताओं को 30 से अधिक लाइसेंस प्रदान किए हैं।
सरकार के प्रयासों से भारतीय खिलौना उद्योग के लिए अधिक अनुकूल विनिर्माण परितंत्र बनाने में मदद मिली है। 2014 से 2020 तक 6 वर्षों की अवधि में सरकार के समर्पित प्रयासों से विनिर्माण इकाइयों की संख्या दोगुनी हो गई है, आयातित वस्तुओं पर निर्भरता 33 प्रतिशत से घटकर 12 प्रतिशत हो गई है। वर्तमान में एमएसएमई मंत्रालय 19 खिलौना उत्पादन केंद्रों की मदद कर रहा है, और वस्त्र मंत्रालय 13 खिलौना उत्पादन केंद्रों को खिलौनों का डिजाइनिंग तैयार करने और जरूरी साधन मुहैया कराने में मदद कर रहा है। स्वदेशी खिलौनों को बढ़ावा देने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रचार पहल भी की गई हैं, जिनमें द इंडियन टॉय फेयर 2021, टॉयकैथॉन आदि शामिल हैं। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने घटिया स्तर के खिलौनों के आयात पर अंकुश लगाने के लिए प्रत्येक आयात खेप का नमूना परीक्षण अनिवार्य कर दिया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014-15 के बाद से लगातार वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट तक में सरकार ने खिलौना उद्योग के विकास के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन और समर्थन देने की रणनीतिक पहल की है। सरकार ने खिलौना उद्योग को देश के 24 प्रमुख सेक्टर में स्थान दिया है।
भारतीय खिलौनों को वैश्विक खिलौना बाजार में बड़ी भूमिका निभाने हेतु खिलौना उद्यमियों को प्रेरित किया गया है। निश्चित रूप से मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत सरकार की नीतिगत पहलों के साथ-साथ घरेलू निर्माताओं के प्रयासों से भारतीय खिलौना उद्योग में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यद्यपि देश का खिलौना उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन अभी भी देश के खिलौना सेक्टर को चमकीली ऊंचाई देने के लिए खिलौना क्षेत्र के तहत एक लम्बे समय से चल आ रही कई बाधाओं को हटाया जाना जरूरी है। भारतीय खिलौना उद्योग में विकास को बढ़ावा देने के लिए एक रणनीतिक कार्ययोजना की जरूरत है। खिलौना उद्योग के विकास से संबंधित विभिन्न एजेंसियों के बीच उपयुक्त तालमेल बनाया जाना जरूरी है।
देश में चीन की तरह खिलौने के विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) को आकार देने की जरूरत है। अभी खिलौनों पर जीएसटी की दर में कटौती की जानी चाहिए। जिससे खिलौनों की कीमत में और कमी आएगी। अधिकांश भारतीय खिलौने ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर उपलब्ध कराए जाने चाहिए, ताकि घरेलू खिलौनों की बिक्री को और बढ़ाया सके। यह भी जरूरी है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित की गई पारंपरिक और यांत्रिक खिलौनों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शीघ्र शुरू की जाए। देश में सुगठित खिलौना प्रशिक्षण और डिजाइन संस्थान की स्थापना को मूर्तरूप देना होगा। इसके अलावा खिलौना उद्योग के लिए बैंकों से ऋण तथा वित्तीय सहायता संबंधी बाधाओं को दूर करना होगा।
खिलौनों के अधिक निर्यात से अधिक विदेशी मुद्रा की कमाई की जा सकेगी। साथ ही खिलौना उद्योग में रोजगार के मौके देश के कोने-कोने में और तेजी से बढ़ेंगे।

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लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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